मामला न्यायालय गया तो संघीय ढांचे पर असर

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 15, 2022 | 2:51 AM IST

बीएस बातचीत
जीएसटी मुआवजा जरूरतों को पूरा करने के लिए केंद्र सरकार ने राज्यों के लिए एफआरबीएम सीमा में आधे प्रतिशत बढ़ोतरी का प्रस्ताव किया है, जिससे ज्यादा उधारी ली जा सके। केरल का तर्क है कि इसे 0.75 प्रतिशत बढ़ाया जाना चाहिए, वर्ना राज्यों को नुकसान होगा। केरल के वित्त मंत्री थॉमस आइजक ने दिलाशा सेठ से बात की। प्रमुख अंश..

मुआवजे को लेकर केंद्र के प्रस्ताव की जांच करने के लिए आपने 7 दिन वक्त मांगा है, लेकिन आपकी शुरुआती प्रतिक्रिया क्या है? क्या यह व्यावहारिक लगता है?
करीब 3 लाख करोड़ रुपये मुआवजा की जरूरत है, जिसमें से 70,000 करोड़ रुपये उपकर संग्रह से आएंगे। शेष  2.3 लाख करोड़ रुपये कमी को केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने दो हिस्सों में बांटा है- जीएसटी लागू होने के कारण और कोविड के कारण। केंद्र सरकार 1.65 लाख करोड़ रुपये उधारी लेगी, जबकि शेष राशि राज्यों के ऊपर छोड़ दिया गया है। इसके लिए राज्यों के राजकोषीय घाटे की सीमा 0.75 प्रतिशत बढ़ाए जाने की जरूरत है। केंद्र 0.5 प्रतिशत बढ़ाने की बात कर रहा है। इससे हमारी सामान्य उधारी घट जाएगी। मैं ऐसा क्यों करूंगा? राज्य को 50,000 करोड़ रुपये नुकसान होगा। यह बहुत पेचीदा है, ऐसे में मैंने एक हफ्ते में अध्ययन कर जवाब देने की बात कही है।

यह पहला विकल्प है, दूसरे के बारे में क्या कहना है?
मान लीजिए कि दूसरा विकल्प अपनाया जाता है और पूरा 2.3 लाख करोड़ रुपये राज्य उधारी लेते हैं।  ऐसी स्थिति में राज्य सरकारें राज्यों को जीडीपी का 0.5 प्रतिशत गंवाना होगा,  अगर एफआरबीएम सीमा 1 प्रतिशत बढ़ाई जाती है। ऐसे में केंद्र को राजकोषीय सीमा 1.5 प्रतिशत बढ़ानी होगी।     

केंद्र ने कहा है कि राज्यों पर कोई बोझ नहीं होगा क्योंकि ब्याज का भुगतान उपकर से किया जाएगा। ऐसे में क्या समस्या है?
समस्या यह है कि राज्यों के मुआवजा छोडऩे और इसे मानक के रूप में स्वीकार करने को कहा जा रहा है।

क्या आपका भी मानना है कि पूरी उधारी केंद्र ले?
निश्चित रूप से। जब राज्य उधारी लेंगे तो उन्हें 1 से 2 प्रतिशत ज्यादाा ब्याज देना होगा। साथ ही एफआरबीएम ऐक्ट भी हैै। केंद्र रिजर्व बैंक से उधारी ले सकता है और इसका राजकोषीय घाटे पर भी कोई असर नहीं होगा।  

अगर 7 दिन बाद आम राय नहीं बनती तो क्या होगा?
तब केंद्र व राज्यों में विवाद होगा। विवाद निपटारा व्यवस्था बनानी होगी। अगर इससे भी मामला नहीं बनता तो राज्य उच्चतम न्यायालय जाएंगे। इससे संघीय ढांचे को नुकसान होगा।

First Published : August 28, 2020 | 11:37 PM IST