भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर (आईआईटी-के) ने इंजीनियरिंग शोध को प्रोत्साहित करने के लिए कुछ ठोस कदम उठा रही है।
संस्थान से आए दिन इंजीनियरिंग में शोधार्थियों की संख्या कम होती जा रही है। संस्थान ने पहली बार इस साल के दीक्षांत समारोह में 100 से अधिक पीएचडी वितरित की हैं। संस्थान के कर्मचारी और छात्र दोनों इंजीनियरिंग तकनीक में शोध की तरफ आकर्षित हो रहे हैं और इस बाबत कई तरह के डिजाइन तैयार कर रहे हैं।
शोध करने वाले छात्रों की संख्या में हो रही बढोतरी की वजह शोध के लिए दी जा रही बेहतर सुविधाओं को माना जाता है। इसके तहत शोधार्थियों को उचित पारिश्रमिक और इनाम दिया जाना भी आकर्षण की मुख्य वजह है। संस्थान के निदेशक प्रो. संजय गोविंद धंडे का कहना है कि संस्थान का लक्ष्य अगले दो वर्षों में शोधार्थियों की संख्या को बढ़ाकर 300 करना है। संख्या में यह बढ़ोतरी देश में हो रही तकनीकी विकास के मद्देनजर जरुरी भी है।
संस्थान के छात्रों ने हाल ही में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान परिषद (इसरो) के साथ मिलकर एक तीन पांवों वाला रोबोट बनाया है जिसे चांद पर भेजा जाएगा और यह रोबोट वहां से मिट्टियों के नमूने इकट्ठे करेगा। यह रोबोट चंद्रयान-2 के 2010 और 2015 के अभियान के साथ भेजा जाएगा। यह रोबोट संस्थान के यांत्रिकी, कंप्यूटर और इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभागों के छात्रों ने मिलकर तैयार किया है।
इस शोध टीम के छात्र रविश कुमार ने कहा कि इस डिजाइन के साथ सबसे बड़ी चुनौती यह है कि यह 4000 डिग्री सेल्सियस पर भी अपना काम करते रहे। वैसे रोबोट ऐसी धातुओं से बनाया गया है जो अत्यधिक ताप पर भी भली भांति काम करने में सक्षम है। इसी तरह के कई उल्लेखनीय शोध कार्यों में संस्थान के छात्र संलग्न हैं। प्रो. धंडे का कहना है कि कुछ उद्योगों ने भी संस्थान के शोध कार्यों में रुचि दिखाई है और शोधार्थियों को वित्तीय मदद देने की पेशकश की है।
उन्होंने कहा कि शोध के संपन्न होने के बाद इन शोधार्थियों को इन बड़ी कंपनियों में नौकरी भी देने में संस्थान मदद करेगी। देश में अभी 10,000 इंजीनियरिंग डॉक्टरेट की जरुरत है और महज 100 छात्र इस क्षेत्र को चुनते हैं। वैसे विकसित देशों में इससे दस गुना ज्यादा छात्र इस तरह के शोध कार्यों को चुनते हैं।