राय बरेली स्थित नेशनल इंस्टीच्यूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजीज (निफ्ट) उत्तर प्रदेश के परंपरागत हस्तशिल्पों को भौगोलिक संकेतक कानून के तहत पंजीकृत करने की तैयारी कर रहा है।
ये हस्तशिल्प दुनिया भर में पहले ही मशहूर हैं। इसके अलावा संस्थान इन हस्तशिल्पों के लिए एक लोगो भी तैयार कर रहा है और बेहतर वाणिज्यिक मूल्य और मार्केटिंग क्षमता तैयार करने के लिए इन्हें एक मजबूत ब्रांड के तौर पर स्थापित किया जाएगा।
निफ्ट के पंजीयक आर के शर्मा ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि सर्वेक्षण और दस्तावेजीकरण की प्रक्रिया को पहले ही पूरा किया जा चुका है और प्रत्येक हस्तशिल्प के लिए विस्तृत रिपोर्ट तैयार की जा चुकी है। उन्होंने बताया कि ‘हमने उत्तर प्रदेश की सभी प्रमुख हस्तशिल्पों के लिए दस्तावेज तैयार कर रहे हैं। इन हस्तशिल्पों में लखनवी चिकन, बनारसी सिल्क, मुरादाबाद का बर्तन का काम और आगरा की शिल्पकारी शामिल है।’
सर्वेक्षण को संस्थान के पहले साल के छात्रों ने अपने प्रोजेक्ट के तहत पूरा किया है। इन छात्रों ने इन क्षेत्रों ने प्रत्येक हस्तशिल्प से जुड़े हुए क्षेत्रों में जाकर शिल्पकारों और अन्य संबंधित लोगों से बातचीत की। प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार होने के बाद अब दो ऐसे शिल्पों को चुना जाएगा जिन्हें संरक्षण और पेटेंट की सबसे अधिक जरुरत है।
शर्मा ने बताया कि ‘पंजीकरण के लिए हम राज्य और केन्द्र सरकार को पंजीकरण की रिपोर्ट सौंपेंगे। इस प्रक्रिया में काफी समय लगेगा।’ पेटेंट के जरिए इन हस्तशिल्पों की नकल को रोकने में मदद मिलेगी और कारीगरों को अपने माल की बेहतर कीमत मिल सकेगी। भौगोलिक संकेतक कानून के तहत ऐसे उत्पादों को संरक्षण दिया जा सकता है जो किसी खास भौगोलिक क्षेत्र के साथ गहरा जुड़ाव रखते हैं।
निफ्ट के सहायक प्रोफेसर और सेंटर कॉर्डिनेटर आशीष देवनाथ ने बताया कि ‘हमारे ऊपर उत्तर प्रदेश की टेक्सटाइल और हस्तशिल्प से जुड़े कारीगरी को बढ़ावा देने का उत्तरदायित्व है। जीआई कानून के तहत निफ्ट अनुपालक एजेंसी है।’ भारत ने कारीगरों और बुनकारों के हितों की रक्षा के लिए 1999 में वस्तुओं के भौगोलिक संकेतक कानून को पास किया था।
इस कानून के अस्तित्व में आने से हस्तशिल्पों की मार्केटिंग और निर्यात में काफी मदद मिली है। रायबरेली निफ्ट का उद्धाटन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने 2007 में किया था और बीते साल जुलाई में संस्थान का पहला अकादमिक सत्र शुरू हुआ था।