फिर नीतीश कुमार लेकिन सीमित होंगे अधिकार!

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 14, 2022 | 9:12 PM IST

नीतीश कुमार ने चौथे कार्यकाल के लिए बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली लेकिन उनके साथ केवल 10 मंत्रियों ने शपथ ग्रहण की। विधानसभा के आकार के हिसाब से उन्हें 20 मंत्री बनाने की इजाजत है। ऐसे में अनुमान लगाया जा सकता है कि मंत्रिमंडल विस्तार भी जल्दी देखने को मिल सकता है। राज्य के इतिहास में पहली बार दो उपमुख्यमंत्री भी बनाए गए हैं। दोनों उपमुख्यमंत्री तारकिशोर प्रसाद और रेणु देवी भाजपा के सदस्य हैं। प्रदेश के पूर्व उपमुख्यमंत्री और पूर्व वित्त मंत्री सुशील मोदी इस बार नीतीश के बाजू में नजर नहीं आए।
मंत्रिमंडल में भी मंत्रियों को राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में सदस्यों की हैसियत के मुताबिक ही प्रतिनिधित्व दिया गया है। प्रसाद और रेणु देवी इससे पहले कभी मंत्री भी नहीं रहे। जाहिर है भाजपा ने एक राजनीतिक एजेंडे के तहत उन्हें उपमुख्यमंत्री बनवाया है। पार्टी चाहती है कि प्रशासनिक नीतियां उसकी मंशा के अनुरूप बनें। दोनों नेता कई बार के  विधायक हैं। प्रसाद जहां वैश्य (मोदी के समान) समुदाय से आते हैं, वहीं रेणु देवी अति पिछड़ा वर्ग के नोनिया समुदाय से हैं।
इस सरकार में प्रदर्शन करने वाले मंत्री जनता दल यूनाइटेड के विजय कुमार चौधरी, विजेंद्र प्रसाद यादव और अशोक चौधरी होंगे। विजय चौधरी पांच बार के विधायक हैं और पिछली जदयू-भाजपा सरकार में वह विधानसभा अध्यक्ष थे। विजेंद्र प्रसाद यादव पिछली सरकार में ऊर्जा और बिजली मंत्री थे जबकि अशोक चौधरी दलित हैं। वह सन 2000 से 2005 तक की राबड़ी देवी सरकार में मंत्री रहे, उसके बाद वह कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रहे और फिर जदयू में शामिल हो गए। कांग्रेस से वह कड़वाहट के साथ अलग हुए थे।
राहुल गांधी ने साल 2013 में पार्टी के चुनाव हारने के बावजूद उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बनाया था। 25 सालों में वह प्रदेश कांग्रेस के पहले दलित अध्यक्ष थे। जब नीतीश राजद गठबंधन से बाहर हुए और भाजपा के साथ गए तो अशोक चौधरी उनके साथ रहे। उन पर कांग्रेस को दो फाड़ करने की कोशिश का आरोप भी लगा। उन्होंने कहा कि उन्हें दलित होने की वजह से निशाना बनाया जा रहा है। वह 2018 में तीन एमएलसी के साथ कांग्रेस से अलग हो गए। नीतीश ने उन्हें जदयू का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया। यह अति पिछड़ा वर्ग को साथ लेने की दृष्टि से कारगर कदम था। वह पीएचडी हैं और उन्हें गोल्फ पसंद है।
भाजपा के पास मंगल पांडेय और अमरेंद्र प्रताप सिंह के रूप में दो कैबिनेट मंत्री हैं। दोनों वरिष्ठ भाजपा नेता हैं। गठबंधन साझेदारों में से विकासशील इंसान पार्टी के मुकेश साहनी को मंत्री बनाया गया है जो अंतिम समय में महागठबंधन छोड़कर भाजपानीत गठबंधन में शामिल हुए। पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के बेटे संतोष कुमार सुमन को भी मंत्री बनाया गया है।
सरकार बनने की कहानी यहीं समाप्त नहीं होती। कई अन्य मोर्चों पर भी चिंताएं हैं। नीतीश कुमार की राजनीतिक गुणाभाग करने की क्षमता पांच साल पहले की तुलना में काफी कम है। वह 70 वर्ष के हैं और पांच साल बाद 75 के होंगे। वह कह चुके हैं कि यह उनका आखिरी चुनाव है ऐसे में उनके साथी विकल्प तलाश करेंगे। भाजपा सबसे बेहतर विकल्प होगी। लेकिन महागठबंधन भी एक विकल्प है क्योंकि मौजूदा सरकार के पास बहुमत से बस दो सीट अधिक हैं। ऐसे में
विधानसभा अध्यक्ष की भूमिका अहम होगी।
तमाम पर्यवेक्षक कह चुके हैं कि नीतीश मुख्यमंत्री हैं लेकिन उनकी निर्णय क्षमता गहरे तक प्रभावित हो चुकी है। उनके दूसरे कार्यकाल को याद करें तो एक वक्त था जब नीतीश भाजपा को कोई काम नहीं करने देते थे। उन्होंने सरकारी विद्यालयों में वंदे मातरम गाए जाने की मांग पर कोई ध्यान नहीं दिया था और तमाम अन्य मांगें भी ठुकरा दी थीं। पिछले कार्यकाल में उन्होंने कहा था कि बिहार नैशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस पर केंद्र का निर्देश नहीं मानेगा। लेकिन अब 49 विधायकों के साथ ऐसा करना मुश्किल होगा।
प्रदेश में अब एमआईएम भी सक्रिय है और जदयू-भाजपा सरकार को एक आक्रामक विपक्ष का भी सामना करना होगा। जातीय और सांप्रदायिक दंगे रोकने होंगे। राजनीतिक विश्लेषक राम सहायक कहते हैं कि नीतीश ने जो काम बीते 15 वर्ष में किए वे अब पांच साल में करने होंगे। इस बार लोगों ने रोजगार के लिए वोट दिया है।
सुशील मोदी के बारे में एक बात तो तय है कि राज्य की राजनीति से उनकी विदाई कर दी गई है। वह तमाम प्रलोभनों के बावजूद राज्य की राजनीति छोडऩे को राजी नहीं हुए। परंतु जीएसटी परिषद में बतौर वित्त मंत्री उनके काम की अनदेखी नहीं की जा सकती। उनको शामिल करने के लिए केंद्रीय मंत्रिमंडल का पुनर्गठन भी आसन्न नजर आता है।

First Published : November 16, 2020 | 11:56 PM IST