उत्तर प्रदेश सरकार ने कोला और मिनरल वॉटर बनाने वाली कंपनियों पर नकेल कसने की पूरी तैयारी कर ली है।
जल्दी ही सरकार इस मामले में एक कानून बना कर भूगर्भ जल के दोहन को रोकने का प्यास करेगी।अभी सरकार के पास ऐसा कोई कानून नहीं है, जो भूजल के दोहन को रोक सके।
मायावती सरकार ने तमिलनाडु, गोवा, आंध्र प्रदेश और उड़ीसा के कानूनों के आधार पर इस कानून को बनाया है। जल्द ही कैबिनेट को मंजूरी के लिए भेजे जाने वाले इस कानून में जिलाधिकारी को कोला और मिनरल वॉटर कंपनी के लाइसेंस को भूजल को अंधाधुंध दोहन पर खारिज करने का अधिकार होगा।
प्रदेश में फिलहाल 1200 से अधिक मिनरल वॉटर बनाने वाली कंपनियां और एक दर्जन के करीब कोला कंपनियां कारोबार कर रही हैं। फिलहाल इन कंपनियों को केवल नगर निगम से और स्वास्थ्य विभाग से अनुमति लेनी होती है।
प्रदेश सरकार के भूगर्भ जल विभाग के निदेशक एम. एम. अंसारी ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि कोई कानून नही होने को चलते प्रदेश में भूगर्भ जल का जम के दोहन हो रहा है, जिसे रोका जाना आवश्यक है। कानून बन जाने के बाद कोला और मिनरल वॉटर कंपनियों पर लगाम कसना आसान हो जाएगा। साथ ही प्देश के लोगों के स्वास्थ्य की भी चिंता की जा सकेगी।
निदेशक के मुताबिक, प्रदेश में कई जगह पर पेयजल दूषित है। कुछ स्थानों पर तो भूगर्भ जल में खतरनाक आर्सेनिक भारी तादाद में मौजूद पाया गया है। प्रदेश के बलिया जिले में खतरनाक आर्सेनिक सबसे पहले पाया गया था, जो बाद में कई और शहरों में भी मिला है। समूचे प्देश में केवल गाजियाबाद एक ऐसा शहर है, जो आर्सेनिक से पूरी तरह से मुक्त है। पर मिनरल वॉटर बना रही कंपनियां इन सबसे बेपरवाह हैं।
विश्व स्वास्थ संगठन के तय मानकों के मुताबिक पानी में 0.001 मिलीग्राम तक आर्सेनिक की मात्रा चल सकती है। ऐसे मानक पर केवल प्रदेश के नौ जिले ही खरे उतरते हैं। यहां तक की प्देश की राजधानी लखनऊ में भी आर्सेनिक की मात्रा तय मानक से ज्यादा है, जहां 52 कंपनियां मिनरल वॉटर बना रही हैं।
निदेशक के मुताबिक कानून बन जाने का बाद इन पर नकेल कस पाना आसान होगा।भूगर्भ जल विभाग आर्सेनिक के मामले में प्रदेश सरकार को पत्र लिख कर चेतावनी भी दे चुका है।