भई वाह! कमाल का आलू है

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 05, 2022 | 4:44 PM IST


पंजाब का कृषि क्षेत्र इन दिनों एक अनोखी क्रांति से रूबरू है। अमेरिका से पादप मनोविज्ञान और पैथोलॉजी में स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी करने वाले जंग बहादुर सिंह सांघा ने पंजाब के एक गांव में प्रयोगशाला बनाई है और टिश्यु कल्चर के जरिए आलू की क्लोनिंग कर रहे हैं। पूरी कवायद का मकसद आलू की बीमारी मुक्त फसल तैयार करना है। जंग बहादुर इन संकर बीजों की आपूर्ति पूरे देश में कर रहे हैं और उनका दावा है कि इनके इस्तेमाल से आलू के उत्पादन में

25 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी होती है।


जंग बहादुर ने अमेरिका की कॉर्नेल विश्वविद्यालय ने

1994 में स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी की थी। इस दौरान उन्होंने आलू के उत्पादन में विशेष महारत हासिल की। इस समय उन्हें कई बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने नौकरी की पेशकश की लेकिन जंग बहादुर ने अपने देश वापस आना और अपने खेतों में आलू की अलग–अलग किस्मों से जूझने का फैसला किया। इस तरह जंग बहादुर के पैतृक गांव ओदीनवाली में आलू की प्रयोगशाला चल पड़ी। लंबे अर्से तक शोध करने के बाद 1996 में इस प्रयोगशाला से ऐसे उन्नत बीज बाहर निकलने लगे, जिनमें किसानों के सपनों को पूरा करने की काबिलियत थी।

सांगा ने बताया कि उनके पिता लंबे अर्से से आलू की खेती करते रहे हैं और उन्होंने हमेशा नए प्रयोगों को तरजीह दी है लेकिन कई बार सरकार के व्यवहार के कारण कठिनाईयां पेश आती हैं। इस कारण उन्होंने देश में आलू की अच्छी किस्मों को तैयार करने के लिए लिमिटेड जेनरेशन बीज आलू उत्पादन प्रौद्योगिकी पर काम करने का फैसला किया। उन्होंने अपनी प्रयोगशाला में इस प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल से आलू का उत्पादन शुरू किया। इसके लिए कुछ मशीनों का विदेशों से आयात किया गया जबकि कुछ देश में ही खरीदी गई। सांगा पंजाब कृषि विश्वविद्यालय

(पीएयू) के प्रबंधन बोर्ड के सदस्य भी हैं।

सांगा ने बताया कि आलू के उत्पादन के लिए सबसे जरूरी है कि आलू के बीज बीमारी से पूरी तरह से मुक्त हों। इसके लिए उनमें फफूंद

, बैकटीरिया और वायरस नहीं होने चाहिए। उन्होंने बताया कि आलू में वायरस का लगना काफी नुकसानदेह होता है और इसे कीटनाशन के जरिए दूर नहीं किया जा सकता है। वायरस के प्रकोप को केवल प्रयोगशाला में ही दूर किया जा सकता है। वायरस को नष्ट करके टिश्यु कल्चर के जरिए प्रयोगशाला में बीजों का संकरण किया जाता है और फिर उन्हें ग्रीन हाउस प्रभाव में रखा जाता है। उन्होंने बताया कि क्लोनिंग या संकरण के जरिए एक बीच से करीब एक लाख पौधे तैयार किए जा सकते हैं।

सांगा ने बताया कि अन्य जानी

–पहचानी किस्मों की क्लोनिंग करने के अलावा उन्होंने एस1 और एस6 नाम से दो किस्में तैयार की हैं। इन बीजों की देश के सभी हिस्सों में काफी मांग है। सांगा आलू उत्पादों के संगठन पेस्कॉन के महासचिव ने की हैं। उन्होंने बताया कि वह प्रतिवर्ष 55,000 से 60,000 मेट्रिक टन बीज तैयार करते हैं। इसके लिए किसानों से करीब 6,000 एकड़ जमीन किसानों से पट्टे पर ली गई है। उन्होंने आगे बताया कि कुल उपज में से दो तिहाई की बिक्री देश भर में किसानों को की जाती है जबकि एक तिहाई उपज को आगे बीज तैयार करने के लिए बचा लिया जाता है। उन्होंने बताया कि ‘मेरे द्वारा तैयार बीज किसानों को बेहतर उपज दिलाने में सहायक होते हैं और इस बात की खुशी है कि मेरे प्रयास सफल हैं।‘
First Published : March 19, 2008 | 12:53 AM IST