मध्य प्रदेश की छोटी और मझोली दवा कंपनियों को आज कल समय से आवश्यक मंजूरियां नहीं मिल पाने के कारण कारोबार से हाथ धोना पड़ रहा है।
राज्य के दवा नियंत्रक विभाग से आवश्यक मंजूरी नहीं मिल पाने के कारण ऐसा हो रहा है। इनमें से अधिकांश कंपनियां इंदौर और पीथमपुर में हैं।दवा नियंत्रक का पद पिछले कुछ महीनों से खाली पड़ा है। इस कारण फार्मास्युटिकल्स कंपनियों को वस्तु विनिर्माण व्यवहार प्रमाणपत्र, नए दवा लाइसेंस, लाइसेंस का नवीनीकरण, बाजार प्रमाण पत्र और अन्य आवश्यक मंजूरियां हासिल करने में देरी हो रही है।
पीथमपुर औद्योगिक संगठन के महासचिव दर्शन कटारिया ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि राज्य दवा नियंत्रक की मंजूरी हासिल किए बिना दवा विनिर्माता नए टेंडर में शामिल नहीं हो सकते हैं, निर्यात या किसी नए कारोबार की शुरूआत नहीं कर सकते हैं। उन्होंने बताया कि राज्य की दवा बनाने वाली कंपनियां मोटे तौर पर छोटे और मझोले आकार की हैं और मंजूरी मिलने में देरी के कारण उन्हें अन्य राज्यों की कंपनियों के हाथों कारोबार को खोना पड़ रहा है।
पीथमपुर में दवा की 100 से अधिक विनिर्माण इकाइयां हैं। इनमें से करीब 10 इकाइयां नई हैं। इन इकाइयों ने पीथमपुर विशेष आर्थिक क्षेत्र में निवेश की योजना बनाई है। लेकिन दवा विभाग से आवश्यक मंजूरी मिलने में देरी के कारण इनकी योजनाएं लंबित पड़ी हैं।
राज्य के मुख्य सचिव राकेश साहनी ने बताया कि ‘हमने पूर्णकालिक दवा नियंत्रक की नियुक्त कर दी है और हम आगे दवा कारोबार से जुड़ी समस्याओं और सवालों का ध्यार रखेंगे।’ मध्य प्रदेश देश का एक मात्र ऐसा राज्य है जहां वस्तु विनिर्माण प्रमाणपत्र एक साल के लिए जारी किया जाता है, जबकि अंतरराष्ट्रीय मानकों के मुताबिक यह प्रमाणपत्र 5 वर्षो के लिए जारी किया जाना चाहिए।
सूत्रों ने बताया कि केवल एक साल के प्रमाणपत्र के साथ दवा कंपनियों के लिए विदेशी कंपनियों का मुकाबला कर पाना काफी मुश्किल है। राज्य के स्वास्थ्य मंत्री अजय विश्नोई, प्रधान सचिव अश्विन दानी और सचिव ओ मुंद्रा से बात करने की कोशिश की गईं, हालांकि उनकी टिप्पणी नहीं मिल सकी है।