एनसीआर, मेट्रो शहरों और प्रमुख औद्योगिक क्षेत्रों में कूरियर क्षेत्र के लिए बढ़ती संभावनाओं को देखते हुए अर्द्धसंगठित और असंगठित क्षेत्र की कंपनियां अपने पंखों को फैलाने लगी हैं।
ये अंसगठित क्षेत्र की कंपनियां देश के आर्थिक विकास से पूरा फायदा उठाने की फिराक में है। बाजार के अनुमानों के हिसाब से पिछले चार सालों के भीतर कूरियर क्षेत्र की असंगठित कंपनियों ने बाजार में अपनी पकड़ को 10 फीसदी से बढ़ाकर 40 फीसदी के आस पास कर लिया है।
बाजार के आंकड़ों के हिसाब से देखें तो पता चलता है कि इस समय देश में लगभग 3 से 4 हजार कूरियर कंपनियां हैं। इन कंपनियों के केवल 2 से 3 फीसदी हिस्से में ही संगठित कंपनियां आती हैं। इसके अलावा 60 फीसदी के आस-पास अर्द्धसंगठित कंपनियां और बाकी असंगठित कंपनियां हैं।
एक अंसगठित क्षेत्र की कूरियर कंपनी के मालिक राजेन्द्र सहगल का मानना है कि मेट्रो शहरों के होते औद्योगिक विकास से बड़ी संख्या में पार्सल देश और विदेश में भेजे जा रहे हैं। लगातार मांग के बढ़ने से कूरियर कंपनियों का कारोबार बढ़ता ही जा रहा है। ऐसे में अगर आप जल्द से जल्द पार्सल को लक्ष्य तक पहुंचा सकते हैं तो निश्चित तौर पर इस क्षेत्र में आपके लिए काफी संभावनाएं हैं। असंगठित क्षेत्र की एक दूसरी कंपनी के वरिष्ठ प्रंबधक राजेश कुमार मानते हैं कि वैसे तो इस क्षेत्र में अच्छी संभावनाओं के होने के बावजूद सबसे बड़ी समस्या इस क्षेत्र में संगठित कंपनियों का वर्चस्व है।
आज से दस साल पहले तक संगठित कंपनियों ने कूरियर क्षेत्र के बाजार में अपनी अच्छी खासी पकड़ बना ली थी। लेकिन धीरे-धीरे असंगठित कंपनियां भी उपभोक्ताओं पर अपनी पकड़ को मजबूत कर रही है। बाजार विश्लेषकों का मानना है कि भले ही देश में कूरियर के क्षेत्र में संगठित कंपनियां की संख्या गिनती में बहुत कम हो।
लेकिन कूरियर कारोबार के सबसे बड़े हिस्से में भागीदारी संगठित कंपनियों की ही है। इस बाबत ब्लू डार्ट के विपणन और कार्पोरेट कम्युनिकेशन प्रमुख केतन कुलकर्णी ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि वास्वतिकता में कूरियर इंडस्ट्री में उपभोक्ता केवल सेवा प्रदाता की क्षमता, तीव्रता, कनेक्टिविटी और विश्वसनीयता देखता है। यही नहीं इस उद्योग में कंपनी की परिवहन क्षमता, यांत्रिक पृष्ठभूमि, भंडार गृहों की क्षमता और अन्य बुनियादी क्षमताओं का आकलन भी किया जाता है। इन सभी विशेषताओं के चलते बहुराष्ट्रीय कंपनियों में ज्यादा विश्वास किया जाता है। यही कारण है कि भारत के कूरियर क्षेत्र में संगठित कंपनियों का बोलबाला है।
ए टी कियर्नी की रिपोर्ट के हिसाब से भारत का घरेलू कूरियर बाजार लगभग 9.5 हजार करोड़ रुपये का है। इसमें 55 से 60 फीसदी हिस्से पर संगठित कंपनियों का वर्चस्व है। जबकि बाकी के हिस्से का कारोबार अर्द्धसंगठित और अंसगठित कंपनियों के हिस्से में आता है। कुलकर्णी का कहना है कि देश के आर्थिक विकास के चलते कूरियर क्षेत्र में हर खिलाड़ी के लिए भारी संभावनाएं हैं।
लेकिन बढ़ते बाजार को देखते हुए कई और बहुराष्ट्रीय कंपनियां भी इस क्षेत्र में आ रही हैं। ऐसी स्थिति में प्रतिस्पर्धा का और भी कड़ा होना तय है। अब देखना यह है कि बढ़ती प्रतिस्पर्धा के इस माहौल में असंगठित क्षेत्र की कंपनियां अपने कारोबार का विस्तार कैसे करती हैं।
चिट्ठी आई है
कूरियर कारोबार में असंगठित क्षेत्र की हिस्सेदारी 10 से बढ़कर 40 प्रतिशत हुई
एक रिपोर्ट के मुताबिक घरेलू कुरियर का बाजार लगभग 9500 करोड़ रुपये का है