मुजफ्फरनगर की पहचान, यहां के खास किस्म के गुड़ से जुड़ी है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश का यह शहर और इसके आसपास के इलाके बेहतरीन किस्म का गुड़ बनाने के लिए मशहूर रहे हैं।
लेकिन बदलते वक्त के साथ गुड़ रंग बदलने के साथ-साथ अपना कुदरती स्वाद भी खोता जा रहा है। अगर यह सिलसिला यूं ही बदस्तूर चलता रहा तो इसमें कोई शक नहीं कि आने वाले वक्त में मुजफ्फरनगर का गुड़ बस अतीत की याद भर बनकर रह जाएगा।
यहां की मशहूर गुड़ मंडी के एक कारोबारी घनश्याम दास गोयल कहते हैं, ‘गुड़ का असल रंग लाल-भूरा होता है, लेकिन अब ज्यादातर कोल्हू वाले गुड़ को दिखने में अच्छा बनाने के लिए तमाम तरह के रसायन डालने लगे हैं, जिससे इसका कुदरती स्वाद बिगड़ता जा रहा है।’
गोयल अपनी तीसरी पीढ़ी के प्रतिनिधि हैं जो गुड़ का कारोबार कर रहे हैं। पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात, मुजफ्फरनगर के गुड़ के बड़े खरीदार राज्य हैं। काफी तादाद में इन राज्यों को यहां से गुड़ की आपूर्ति की जाती है।
मंडी के एक कारोबारी रोशन लाल कहते हैं, ‘इन राज्यों के लोग भी अब शिकायत करते हैं कि गुड़ का स्वाद बिगड़ता जा रहा है।’ दरअसल, गुड़ बनाने के लिए वैसे तो कोई तय मानक नहीं हैं और जो परंपरागत मानक हैं, मौजूदा दौर के कोल्हू उनका मखौल उड़ा रहे हैं।
गुड़ बनाने के दौरान शुद्धिकारक (प्यूरीफायर) के तौर पर अरंडी का तेल, सुकलाई का तेल, दूध और अन्य हर्बल उत्पाद डाले जाने चाहिए और पहले ऐसा ही होता था। लेकिन, अफसोस अब ऐसा नहीं हो रहा है।
कोल्हू वाले अब हाइड्रो सल्फाइट जैसे रसायनों का इस्तेमाल करने लगे हैं जिससे गुड़ का रंग, लाल-भूरा होने के बजाय पीला हो जाता है। मंडी के कुछ कारोबारियों की शिकायत है कि कुछ कोल्हू वाले तो गुड़ में उर्वरक और डिटजर्ट पाउडर तक का इस्तेमाल करते हैं।
इसके चलते यहां के गुड़ का नाम बदनाम होता जा रहा है। अभी कुछ दिन पहले ही पंजाब की स्वास्थ्य मंत्री ने यहां से भेजे गए गुड़ के ट्रकों को अपने सूबे मे नहीं घुसने दिया। मामला अदालत पहुंचा, लेकिन फैसला पंजाब की स्वास्थ्य मंत्री के पक्ष में ही आया और मोटी रकम के गुड़ को नष्ट करना पड़ा।
इस बात को लेकर तमाम तरह के सवाल उठ रहे हैं कि इन गुड़ निर्माता कोल्हूओं के लिए मानक तय किए जाएं लेकिन कोल्हू वाले इस बात को लेकर तैयार नहीं। वजह साफ है कि वह आदर्श तरीके अपनाकर अपनी लागत नहीं बढ़ाना चाहते।
कारोबारियों का एक तबका यहां के गुड़ की पहचान को कायम रखने के लिए पुरजोर कोशिशों में लगा हुआ है। फेडरेशन ऑफ गुड़ टे्रडर्स के अध्यक्ष अरुण खंडेलवाल कहते हैं, ‘हमारी कई पीढ़ियों ने गुड़ के जरिये आजीविका कमाई है और हम चाहते हैं कि आने वाली पुश्तें भी इस कारोबार से जुड़ें, तो यहां के गुड़ की पहचान को कायम रखना आसान होगा।’
रंग बदलने के लिए उपयोग किए जा रहे रसायनों से बिगड़ रहा है गुड़ का जायका
कारोबारियों की शिकायत नुकसानदायक रसायनों का भी हो रहा है इस्तेमाल
कोल्हुओं के लिए नियामक बनाने का प्रस्ताव दे रहे हैं कारोबारी