खेल के सामान की बिक्री और मीडिया का साथ अब चोली दामन जैसा हो गया है।
दिल्ली में खुदरा तौर पर खेल का सामान बेचने वाले कारोबारियों का कहना है कि जब भी मीडिया किसी खेल टूर्नामेंट को तरजीह देता है तो उस खेल के बाजार में लगभग डेढ़ से दो फीसदी तक की बढ़ोतरी हो जाती है।
कैंपस स्पोटर्स के मालिक राजेन्द्र ने बताया कि मीडिया खेलों को ग्लैमर से जोड़ देती है। ऐसे में टीवी और अखबारों में खेल की खबरों से रोमांचित होने के बाद उपभोक्ताओं द्वारा खेल उत्पादों की मांग बहुत बढ़ जाती है। राजेन्द्र ने बताया कि आईपीएल मैचों के प्रसारण के दौरान ही क्रिके ट से संबधित किट की बिक्री में सीधे तौर पर 30 से 40 फीसदी की बढ़ोतरी हो गई थी।
यही नही मीडिया प्रमोशन के कारण ही तीन सालों के भीतर दिल्ली में क्रिकेट का बाजार लगभग दोगुना हो गया है। साथ ही आज देश में बास्केटबॉल की ब्रांडेड किट का कारोबार भी 500 करोड़ रुपये का हो गया है। टेनिस और गोल्फ की तरफ भी लोगों का रुझान लगातार बढ़ रहा है। अनुमानों के हिसाब से देश में प्रमुख खेलों (क्रिकेट, टेनिस, फुटबाल, हॉकी, बैडमिटंन, कैरम, एथेलेटिक्स और जिम) के सामानों का बाजार 3000 हजार करोड़ रुपये का है और राष्ट्रमंडल खेलों के समय इसके 5000 हजार करोड़ तक होने का अनुमान लगाया जा रहा है।
मीडिया द्वारा युवाओं में शारीरिक फिटनेस को लेकर दिये गये कार्यक्रमों और खबरों के बाद पिछले पांच सालों में जिम के कारोबार में भी 3 गुनी बढ़ोतरी हुई है। दक्षिणी दिल्ली में जिम चलाने वाले अभिषेक मानते है कि पिछले पांच से छह सालों के दौरान लोगों में शारीरिक फिटनेस को लेकर जितना रुझान पैदा हुआ है, वैसा शायद ही पहले कभी हुआ हो। आज हर लड़का सलमान खान और लड़की करीना कपूर बनना चाहती है। इसलिए हमारे ग्राहकों में प्रतिमाह 20 से 25 फीसदी की बढ़ोतरी हो जाती है।
वाल्वो स्पोटर्स के मालिक डेविड कहते है कि मुख्य तौर पर खेल का 60 फीसदी कारोबार क्रिकेट, बैंडमिटन , टेनिस , कैरम और जिम तक ही सीमित रहता है। केन्द्रीय खेल मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी का मानना है कि वास्तव में कई खेलों को अभी भी मीडिया प्रमोशन की तलाश है क्योकि खेलों का हिट होना और न होना मीडिया के ऊपर ही निर्भर करता है। लेकिन मीडिया सभी खेलों को कभी भी समान नजरिया नहीं देता है। उन्होंने कहा कि सिर्फ कुछ खास खेलों के आगे बढ़ने से खेलों का समग्र नहीं किया जा सकता है।