उत्तर प्रदेश चीनी मिलों के निजीकरण का मामला काफी उलझता जा रहा है। उप्र सरकार ने इस संबंध में अभिरुचि पत्र की अवधि लगभग 15 दिनों तक के लिए बढ़ा दी है।
इन चीनी मिलों के निजीकरण के लिए सरकार ने पिछले माह अभिरुचि पत्र आमंत्रित करने की घोषणा की थी। ये चीनी मिल काफी प्रमुख स्थलों पर हैं। हालांकि अंतरराष्ट्रीय कंसल्टेंसी कंपनी अर्नस्ट एंड यंग ने राज्य सरकार को यह सलाह दी थी कि अगर निजी क्षेत्रों ने इस दिशा में रुचि नही दिखाई, तो चीनी विभाग सकते में आ सकता है।
हुआ भी कुछ ऐसा हीं। बोली की पहली तारीख 13 जून तक मात्र दो निजी कंपनियों बजाज हिंदुस्तान और डालमिया ग्रुप ने ही अपने आवेदन जमा किए थे। जबकि बजाज के राज्य में 16 चीनी मिलें हैं और डालमिया की तीन चीनी मिलें रामगढ़, जवाहरपुर (सीतापुर जिला) और निगोही (शाहजहांपुर) में पहले से है।
इन चीनी मिलों में निवेश करने वाली निजी क्षेत्र की कंपनियों को 20 जून को दिल्ली में बातचीत के लिए आमंत्रित किया गया है। इन निवेशकों से उत्तर प्रदेश सचिव (विनिवेश), मुख्य सचिव (गन्ना और चीनी विकास), निगमों के प्रबंध निदेशक और कई वरिष्ठ अधिकारी बात करेंगे।
शुगर कॉरपोरेशन के प्रबंध निदेशक विनय प्रिया दुबे ने बताया कि सरकार निजीकरण के मामले पर उद्योगों के विचार लेना चाहती है और जानना चाहती है कि क्या बोली की शर्तों में क्या कठिनाइयां है जिसकी वजह से निजी कंपनियां इसमें रुचि नहीं दिखा रही है। नाम न बताने की शर्त पर एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि निजी कंपनियां इन चीनी मिलों में रुचि नही दिखा रही है।
उन्होंने कहा कि अगर ये कंपनियां रुचि दिखाते तो बाली की अंतिम तारीख तक हमारे पास कई बोलियों के आवेदन आ चुके होते। बहुत सारी चीनी मिल तो काफी पुरानी है और इसके मशीन जर्जर हो चुके हैं। कुल 33 चीनी मिलों में केवल 22 ही काम करने की स्थिति में है जबकि इनमें से मात्र 17 से ही 2009-08 में गन्ने से चीनी निकालने का काम लिया गया था।