आजादी के इतने साल बीतने के बाद भी सभी को न्याय नहीं मिल सका है। अमीर और गरीब के बीच की खाईर् बढ़ी है। ऐसे ही और मसलों के साथ शिखा शालिनी ने केंद्रीय सामाजिक न्याय और आधिकारिता मंत्री मीरा कुमार से बातचीत की।
सामाजिक विषमता को दूर करने का गांधी जी का सपना कितना पूरा हो पाया है?
यह सच है कि आजादी के कई दशक बीत जाने के बाद भी देश में कुछ ऐसे वर्ग हैं जो गरीबी और उपेक्षा से उबर नहीं पाए हैं। ये उपेक्षित वर्ग अब भी समाज की मुख्यधारा से कटकर हाशिए पर अपनी जिंदगी बिताने को मजबूर हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह तो उनमें बड़े पैमाने पर शिक्षा का अभाव है क्योंकि इसके बगैर सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक सशक्तिकरण संभव नहीं होगा।
गांधी जी के विचारों को सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के साथ कैसे परिभाषित करेंगी आप?
गांधी जी मानवता को मानते थे उनके लिए मानवमात्र का महत्व था। उनका विचार यह था कि मानवता की दृष्टि से किसी भी आदमी के साथ भेदभाव बरतना ठीक नहीं है। सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय भी मानवता के लिए ही काम करता है और इसका लक्ष्य सामाजिक भेदभाव को खत्म करने का हैं।
क्या आपका मंत्रालय सचमुच सामाजिक सशक्तिकरण के लक्ष्य की ओर बढ़ रहा है?
देखिए हम पूरी ईमानदारी से उपेक्षित वर्ग के सशक्तिकरण के लिए काम कर रहे हैं। मंत्रालय अनुसूचित जातियों के शैक्षिक और आर्थिक विकास के लिए लगातार प्रयास करता रहता है। इसके तहत इन जातियों के बच्चों को उच्च स्कूली शिक्षा मुहैया कराने की कोशिश की जा रही है। हम मैट्रिक के बाद छात्रवृति का इंतजाम कर रहे हैं। अनुसूचित जातियों के लड़कों और लड़कियों के लिए होस्टल बनाने की योजना का विस्तार किया गया है। बीपीओ सेक्टर में काम करने के लिए उनमें व्यवसायिक क्षमता देने के लिए मंत्रालय ने कॉल सेंटर संबंधी प्रशिक्षण देने की एक महत्वपूर्ण पहल की है। इसके लिए दो प्रमुख आईटी कंपनियों को अंग्रेजी भाषा का प्रशिक्षण देने और कंप्यूटर की जानकारी देने का काम सौंपा गया है। हमने अनुसूचित जातियों के प्रतिभाशाली छात्रों को विदेशों में अध्ययन के मौके दिलाने के लिए मंत्रालय राष्ट्रीय विदेशी छात्रवृति योजना भी चला रहा है। इस योजना के तहत अनुसूचित जाति के छात्रों को इंजीनियरी, विज्ञान और टेक् नोलॉजी की पढ़ाई करने के लिए वित्तीय सहायता मुहैया कराती है।
आपके इन कदमों से किस हद तक सामाजिक समानता की स्थिति बनी है?
समाज के पिछड़े लोग जो बेहद घृणित कार्य करते हैं उन्हें उस काम से मुक्त करने की हमारी पूरी कोशिश की है। अस्पृश्यता के लिए हमने कड़े कानूनों का प्रावधान किया है। अब कम से कम गांवों में भी कुछ बदलाव नजर आ रहा है। लेकिन यह तो हम सब जानते हैं कि मंत्रालय किसी की मानसिकता में बदलाव तो नहीं ला सकता है।
सामाजिक समता की राह में कौन सी चुनौतियां देखती हैं आप और उसके क्या उपाय नजर आते हैं आपको?
हम यह महसूस कर रहे हैं कि बिना शिक्षा के आर्थिक लाभ और रोजगार के अवसरों की बढ़ोतरी नहीं हो सकती। इसीलिए हमारी कोशिश है कि हम अनुसूचित जातियों और अन्य उपेक्षित वर्गों को राष्ट्र निर्माण और देश के विकास में समानता के आधार पर अवसर मुहैया कराएं। यह छोटी पहल जरूर हो सकती है लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि यह एक महत्वपूर्ण पहल है। सबसे बड़ी चुनौती तो पढ़े लिखे लोगों से भी है जो काफी संक ीर्ण मानसिकता के हैं। आज राष्ट्रीय अखबारों में शादी के विज्ञापनों में जाति के मुताबिक वर–वधु ढूंढने वाले लोग भी तथाकथित पढ़े लिखे वर्ग से ही आते हैं। जब पढ़े लिखे लोग इस तरह सोचेंगे तो सामाजिक समता कैसे आ पाएगी। महिला साक्षरता दर बढ़ाने के लिए मंत्रालय अनुसूचित जातियों और अन्य पिछड़ी जातियों की लड़कियों के होस्टलों के निर्माण को बढ़ावा दे रहा है। इसके लिए 100 प्रतिशत अनुदान भी दिया जा रहा है।