उत्तर प्रदेश में बिजली की किल्लत को कुछ हद तक दूर करने के लिए उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड 500 मेगावाट प्रत्येक की क्षमता वाली दो ताप विद्युत संयंत्र लगाएगी।
ओबरा सी नाम की इन परियोजनाओं का विकास राज्य के सोनभद्र जिले में किया जाएगा। इस परियोजना के विकास पर करीब 6,175 करोड़ रुपये का खर्च आने का अनुमान है। परियोजना के लिए फंड जुटाने का जिम्मा राज्य सरकार के साथ साथ कुछ वित्तीय संस्थानों का भी होगा।
निगम के प्रबंध निदेशक आलोक टंडन ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘इस परियोजना के लिए तीन फीसदी इक्विटी राज्य सरकार उपलब्ध कराएगी और बाकी की रकम बैंकों और दूसरी वित्तीय संस्थानों से उगाही जाएगी।
इस परियोजना को करीब चार साल में पूरा किया जाएगा।’ राज्य मंत्रिमंडल ने गुरुवार को इन दो विद्युत इकाइयों के गठन को मंजूरी दी थी जिनसे संयुक्त रूप से 1,000 मेगावॉट बिजली का उत्पादन किया जाएगा।
इस परियोजना के विकास के लिए निगम के पास 200 हेक्टेयर जमीन है और साथ ही उसं रिहांड से 37 क्यूसेक पानी के इस्तेमाल का अधिकार भी मिला हुआ है। परियोजना के विकास के लिए चेंदीपाड़ा खदान से कोयले की आपूर्ति को लेकर भी गठजोड़ किया गया है।
राज्य में निकट भविष्य में तीन ताप विद्युत परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है। इलाहाबाद में 1,320 मेगावॉट की करछना परियोजना का जिम्मा जेपी समूह को सौंपा गया है।
कंपनी ने इस परियोजना के लिए रिलायंस पावर, अडानी और लैंको को पीछे छोड़ते हुए 2.97 रुपये प्रति यूनिट की दर से सबसे कम की बोली लगाई थी।
इधर उत्तर प्रदेश ऊर्जा निगम लिमिटेड (यूपीपीसीएल) ने इलाहाबाद की ही बारा विद्युत परियोजना के लिए लैंको, जेपी और रिलायंस से फिर से बोलियां मंगाई हैं। 1,980 मेगावॉट वाली इस परियोजना के लिए और कम दर पर बोली मंगाने के लिए निगम ने ऐसा किया है।
दरअसल, बारा परियोजना के लिए लैंको ने 3.09 रुपये प्रति यूनिट, जेपी ने 3.39 रुपये प्रति यूनिट और रिलायंस पावर ने 3.90 रुपये प्रति यूनिट की दर से बोली लगाई थी।
वहीं, निजी क्षेत्र की नेवली लिग्नाइट कॉरपोरेशन (एनएलसी) यूपीपीसीएल के सहयोग से फतेहपुर जिले में 2,000 मेगावॉट क्षमता की तापविद्युत परियोजना लगा रही है। इसमें एनएलसी और यूपीपीसीएल की क्रमश: 76 और 24 फीसदी इक्विटी हिस्सेदारी होगी।
उत्तर प्रदेश गंभीर बिजली संकट से जूझ रहा है और व्यस्त घंटों में तो मांग और आपूर्ति के बीच का अंतर 2,500 मेगावॉट तक पहुंच जाता है। यह हालत तब है जब सेंटल ग्रिड से 3,000 मेगावॉट बिजली का आयात किया जाता है।