उत्तराखंड सरकार ने राज्य के लिए अलग विशेष आर्थिक क्षेत्र (सेज) कानून बनाने और कुमाऊं क्षेत्र के सितारगंज में विशेष आर्थिक जोन की स्थापना करने का फैसला किया है।
अधिकारिक सूत्रों ने बताया कि सेज कानून के मसौदे को तैयार करने के लिए अतिरिक्त मुख्य सचिव आई के पाण्डे की अध्यक्षता में चार सदस्यों की एक समिति का गठन किया गया है। उत्तराखंड राज्य ढांचागत और औद्योगिक विकास निगम लिमिटेड (सिडकुल) के निदेशक मंडलों की एक उच्च स्तरीय बैठक में यह फैसला किया गया।
हाल ही में हुई इस बैठक में सितारगंज शहर के उधम सिंह नगर जिले में सेज की स्थापना संबंधी मामले को रखा गया था। सितारगंज जिले में पर्याप्त जमीन उपबल्ध है। यह माना जा रहा था कि बैठक में नए सेज नियमों का मसौदा तैयार करने और तौर-तरीके बनाने के लिए किसी समिति की स्थापना से पहले सितारगंज में प्रस्तावित सेज को मंजूरी दे दी जाएगी।
सेज के लिए बनाई गई समिति में मुख्य वित्त सचिव आलोक जैन, उद्योग सचिव पी सी शर्मा और सिडकुल के एमडी कुणाल शर्मा भी शामिल हैं। पश्चिम बंगाल और देश के अन्य जगहों में सेज पर हुए विवादों को देखते हुए बोर्ड विभिन्न राज्यों के सेज नियमों के अध्ययन करने की जरूरत महसूस कर रहा है। इसके बाद ही बोर्ड उपयुक्त मॉडल को पहाड़ी राज्य में अपनाएगी।
बोर्ड की अध्यक्षता कर रहे मुख्य सचिव एस के दास ने बताया, ‘विशेष उद्देश्यीय कंपनी (एसपीवी) और पीपीपी मॉडलों के पहले अनुभवों पर भी विचार-विमर्श किया जाना चाहिए।’ सूत्रों ने बताया कि बोर्ड को महसूस हुआ कि सेज अधिनियम का मसौदा पहले तैयार कर लिया जाए और सितारगंज में सेज की स्थापना संबंधी फसले को दूसरे चरण में लिया जाए।
उल्लेखनीय है कि सरकार सितारगंज में सेज के अलावा देहरादून स्थित सहस्त्रधारा रोड पर भी आईटी सेज की स्थापना करेगी। यही नहीं, पार्श्वनाथ जैसी निजी कंपनियां भी इस पहाड़ी राज्य में एक अलग सेज की स्थापना की जुगत में हैं। हालांकि उत्तराखंड की नई कृषि नीति कृषि भूमि पर किसी भी तरह की औद्योगीकरण और सेज परियोजनाओं पर प्रतिबंध लगाती है, जिसके मसौदे को तैयार कर लिया गया है।
उल्लेखनीय है कि नई कृषि नीति का प्रारूप कृषि वैज्ञानिकों की एक समिति द्वारा तैयार की गई है। कृषि वैज्ञानिक मुख्यत: पंतनगर एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी से हैं। मसौदे में कहा गया है कि कृषि भूमि पर किसी भी तरह की औद्योगीकरण और सेज परियोजनाओं को विकसित नहीं किया जाएगा।
पिछले कुछ सालों में राज्य की बहुत सारी कृषि योग्य भूमि बिल्डरों और उद्योगपतियों के हाथों में चली गई है और इसके परिणामस्वरूप कृषि भूमि में जबदरस्त गिरावट देखने को मिली है। पिछले कुछ सालों में टाटा मोटर्स सहित अन्य शीर्ष उद्योगों को उत्तराखंड में नई इकाइयां स्थापित करने के लिए अत्याधिक उपजाऊ जमीनें दी गई हैं और इन मुद्दों को लेकर राज्य काफी गहमा-गहमी है।
बहरहाल, राज्य सरकार अब उपजाऊ भूमि को बचाने के लिए विशेष कृषि क्षेत्र (एसएजेड) को विकसित करेगी। अधिकारियों ने बताया, ‘हमलोग अपनी कृषि को बचाना चाहते हैं इसलिए हमलोग उत्तराखंड में एसएजेड लाना चाहते हैं।’ लेकिन सूत्रों का कहना है कि बेहद विवादास्पद विशेष आर्थिक क्षेत्र (सेज) को विशेष कृषि क्षेत्र जैसे विचारों के जरिए दरकिनार नहीं किया जा सकता है। सेज की वजह से गोवा और पश्चिम बंगाल में समस्या उत्पन्न हो हुई थी।