बाढ़ रातोंरात नहीं आती है। सबसे पहले भारी बारिश सरकार को संकेत देती है कि ‘भईया सावधान हो जाओ। राहत और बचाव की कुछ तो तैयारी कर लो।’ फिर नदियों के जल स्तर का बढ़ना शुरू होता है।
इस स्तर पर भी कुछ तैयारी हो जाए तो जानमाल के नुकसान से काफी हद तक बचा जा सकता है। इसके बाद लगातार अपनी उपेक्षा से नाराज वरुण देवता खतरे के निशान को पार करते हैं और फिर शुरू होता है तबाही का भयानक तांडव। लेकिन जमीन से अछूते और जिला मुख्यालयों के एसी कमरों में बंद राजनेताओं और नौकरशाहों को लगता है कि बाढ़ बिना किसी चेतावनी के रातोंरात आ जाती है।
बाढ़ प्रबंधन को लेकर सरकारी संजीदगी पर एक नजर डालिए। केन्द्रीय जल संसाधन मंत्रालय ने 1992 में उत्तरी बिहार में बाढ़ नियंत्रण के लिए समिति (एनबीएफपीसी) का गठन किया। जल संसाधन मंत्रालय के सचिव को समिति का पदेन अध्यक्ष बनाया गया। समिति में ग्रामीण विकास मंत्रालय, कृषि मंत्रालय, रेल मंत्रालय, गृह मंत्रालय और बिहार सरकार के अधिकारी शामिल हुए।
गंगा बाढ़ नियंत्रण आयोग (जीएफसीसी) के एक अधिकारी ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर बताया कि पिछले 16 वर्षो के दौरान एनबीएफपीसी की सिर्फ 11 बैठकें हुई हैं। इस दौरान बाढ़ नियंत्रण के लिए छोटी बड़ी 100 योजनाएं बनाई गई, जिनमें से सिर्फ 58 पर काम शुरू हो सका।
अधिकारी ने आगे बताया कि ‘इस परियोजना के लिए केन्द्र सरकार धनराशि मुहैया कराती थी, लेकिन 2005 में राज्य सरकार पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए फंडिंग रोक दी गई। तब से परियोजना पूरी तरह से ठप पड़ी है।’ केन्द्र सरकार ने 2005 में मिनी रत्न कंपनी जल और बिजली सलाहकार सेवा (वैपकॉस) लिमिटेड को बाढ़ नियंत्रण कार्यक्रम का मूल्यांकन की जिम्मेदारी सौंप दी।
पिछले तीन साल से परियोजना का मूल्यांकन जारी है और धनराशि के अभाव में आगे का काम रुका पड़ा है। वैपकॉस के एक अधिकारी ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि ‘रिपोर्ट काफी पहले सौंपी जा चुकी हैं और पिछले साल अनुपालन रिपोर्ट भी सौंप दी गई है।’ बिहार सरकार बाढ़ से बचाव के लिए हर साल नेपाल में कोसी पर बने बाधों की मरम्मत का काम करती है। इस पर आने वाले खर्च की भरपाई केन्द्र सरकार द्वारा की जाती है।
कोसी की तर्ज पर ही गंडक उच्च स्तरीय समिति का गठन 1981 में किया गया। इस योजना का मकसद उत्तर प्रदेश और बिहार में गंडक नदी पर किए गए बाढ़ बचाव कार्यो की समीक्षा करना और निर्माण कार्यो के लिए सुझाव देना था। इस समिति का कार्यकाल समय समय पर बढ़ाया जाता रहा है। अब इस समिति का नाम बदलकर गंडक उच्च स्तरीय स्थाई समिति कर दिया गया है।
जल संसाधन मंत्रालय ने बिहार सरकार को लालबाकया, बागमती, कमला और खांदो नदी के तटबंधों को मजबूत बनाने और लंबा करने के लिए फंड मुहैया कराया है। इसके बाद 10वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान तटबंधों की मरम्मत के लिए जल संसाधन मंत्रालय ने 60 करोड़ रुपये मंजूर किए हालांकि बाद में योजना आयोग ने योजना की धीमी प्रगति के कारण इस धनराशि को घटाकर 46 करोड़ रुपये कर दिया।
नेपाल से आने वाली नदियों के भारतीय हिस्सों की मरम्मत का काम गंगा बाढ़ नियंत्रण आयोग द्वारा किया जाता है। इसके तहत लालबाकेया, बागमती और कमला नदी पर तटबंधों को मजबूत करने का काम शुरू किया गया था जबकि कांदो तटबंध की मरम्मत और विस्तार योजना को बिहार सरकार से मंजूरी का इंतजार था।
1978 में जीएफसीसी के अध्यक्ष की अगुवाई में कोसी उच्च स्तरीय समिति का गठन किया गया। यह समिति हर साल बाढ़ से हुए नुकसान का आकलन करती है और अगले साल बाढ़ आने से पहले अपनाए जाने वाले उपायों की सिफारिश करती है। मगर अफसोस, सिफारिशों से न तो बाढ़ रुकती है और न ही तबाही।
उत्तर बिहार बाढ़ नियंत्रण योजना
समय : 16 साल
बैठकें : 11
योजनाएं : 100
पूरी हुई : 58