बॉम्बे हाई कोर्ट ने मंगलवार को इंडियन प्रीमियर लीग (IPL) की पूर्व टीम कोच्चि टस्कर्स केरला के पक्ष में बड़ा फैसला सुनाया। कोर्ट ने टीम को दिए गए ₹538 करोड़ से ज्यादा के अरबिट्रेशन अवॉर्ड को सही ठहराया और BCCI की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें इस रकम को चुनौती दी गई थी। जस्टिस आरआई छागला की बेंच ने साफ कहा कि कोर्ट इस मामले में हस्तक्षेप नहीं कर सकती, क्योंकि अरबिट्रेशन एंड कंसिलिएशन एक्ट के सेक्शन 34 के तहत कोर्ट की भूमिका सीमित होती है।
कोच्चि टस्कर्स केरला को IPL की एक नई टीम के रूप में 2011 में शामिल किया गया था। इस टीम को पहले रेंडेज़वस स्पोर्ट्स वर्ल्ड (RSW) के नेतृत्व में एक ग्रुप को सौंपा गया, लेकिन बाद में इसका संचालन कोच्चि क्रिकेट प्राइवेट लिमिटेड (KCPL) ने किया। IPL 2011 में खेलने के बाद इस टीम का कॉन्ट्रैक्ट BCCI ने सितंबर 2011 में खत्म कर दिया। BCCI का आरोप था कि फ्रेंचाइज़ी ने 10 फीसदी बैंक गारंटी समय पर नहीं दी, जो एग्रीमेंट की जरूरी शर्त थी।
KCPL का कहना था कि गारंटी में देरी उनकी गलती नहीं थी, बल्कि कई ज़रूरी मुद्दे जैसे स्टेडियम से जुड़ी समस्याएं, शेयरहोल्डिंग को लेकर नियामकीय मंजूरी, और IPL मैचों की संख्या में अचानक बदलाव इसके कारण थे। इसके बावजूद BCCI टीम से बातचीत करता रहा और उनकी तरफ से की गई कई पेमेंट्स भी स्वीकार की गईं। बाद में अचानक टीम का कॉन्ट्रैक्ट रद्द कर दिया गया और पहले से जमा गारंटी को भी BCCI ने भुना लिया।
इस फैसले के खिलाफ KCPL और RSW ने 2012 में मध्यस्थता यानी अरबीट्रेशन की प्रक्रिया शुरू की। 2015 में ट्रिब्यूनल ने फैसला सुनाया कि BCCI ने कॉन्ट्रैक्ट का उल्लंघन किया और गलत तरीके से गारंटी की रकम भी वसूली। ट्रिब्यूनल ने अपने फैसले में कहा कि BCCI की गलती की वजह से KCPL को ₹384 करोड़ और RSW को ₹153 करोड़ का नुकसान हुआ है। यानी कुल मिलाकर ₹538 करोड़ से ज्यादा की भरपाई तय की गई, जिसमें ब्याज और कानूनी खर्च भी शामिल हैं।
BCCI ने ट्रिब्यूनल के फैसले को कोर्ट में चुनौती दी और कहा कि मध्यस्थ ने अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर फैसला सुनाया। उनका यह भी कहना था कि फ्रेंचाइज़ी का गारंटी नहीं देना समझौते का गंभीर उल्लंघन था और इतनी बड़ी रकम का मुआवज़ा अनुबंध की सीमाओं से बाहर है। इसके अलावा RSW का दावा उन्होंने भारतीय पार्टनरशिप एक्ट के तहत अवैध बताया।
कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि BCCI इस विवाद के मेरिट्स पर दोबारा बहस नहीं कर सकता, क्योंकि ऐसा करना सेक्शन 34 की सीमाओं के खिलाफ होगा। जज छागला ने कहा कि सिर्फ इसलिए कि कोई दूसरा नज़रिया भी संभव हो, यह कारण नहीं बनता कि ट्रिब्यूनल के फैसले में दखल दिया जाए। कोर्ट ने माना कि ट्रिब्यूनल ने सही फैसला लिया था। अदालत ने कहा कि BCCI ने खुद ही फ्रेंचाइज़ी को बैंक गारंटी देने की शर्त से छूट दे दी थी, इसलिए टीम को हटाना अनुबंध का गलत तरीके से उल्लंघन था।