इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने इलेक्ट्रॉनिक कलपुर्जों के विनिर्माण से जुड़े पक्षों से पूछा है कि इस क्षेत्र में प्रस्तावित उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना तैयार करने के लिए कौन से मानक रखे जाएं। मानक चार प्रमुख मापदंड पर आधारित होने चाहिए: इन उत्पादों में प्रतिस्पर्धी देशों के बनिस्बत भारत की कमजोरी, भारत में इन उत्पादों के लिए विनिर्माण कारखाने लगाने के लिए निवेश की योजना बना रही देसी और विदेशी कंपनियों की पहचान, कजपुर्जों और सब-असेंबली के प्रमुख मूल उपकरण विनिर्माता खरीदार और ऐसे उत्पादों के निर्यात की संभावना।
इंडियन सेल्युलर ऐंड इलेक्ट्रॉनिक्स एसोसिएशन, इलेक्ट्रॉनिक्स इंडस्ट्रीज एसोसिएशन ऑफ इंडिया और भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) तथा भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग महासंघ (फिक्की) जैसी प्रमुख उद्योग संस्थाएं सुझावों पर काम कर रही हैं। सूत्रों ने कहा कि रिपोर्ट इस महीने में तैयार होने की उम्मीद है।
इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने उद्योग के भागीदारों से कई दफा परामर्श किया है और जून में नई सरकार के गठन के बाद 100 दिन के एजेंडे के तहत इस योजना को रफ्तार दिए जाने की उम्मीद है। इससे मंत्रालय को यह तय करने में भी मदद मिलेगी कि नई सरकार के गठन के बाद पेश होने वाले बजट में इस योजना की खातिर कितनी रकम आवंटित की जाए।
इंडियन सेल्युलर ऐंड इलेक्ट्रॉनिक्स एसोसिएशन के चेयरमैन पंकज मोहिंद्रू ने कहा, ‘मानदंड वास्तविक निवेश को बढ़ावा देता है। 50 अरब से ज्यादा मोबाइल उत्पादन का पैमाना तैयार हो चुका है और हम इसमें बड़ा निवेश आने की संभावना देख रहे हैं। कलपुर्जों के नेटवर्क और उपलब्धता में कमी का गहन विश्लेषण किया गया है और हमें भरोसा है कि 5 साल में हमारे पास 75 अरब डॉलर का कलपुर्जा नेटवर्क होगा।’
सरकार ने मोबाइल उपकरणों के लिए पीएलआई योजना तैयार करते समय जो मापदंड तय किए थे, कलपुर्जा क्षेत्र से जुड़े लोगों के सामने बतौर पहली शर्त उसी तरह के मापदंड रखे गए हैं।
इंडियन सेल्युलर ऐंड इलेक्ट्रॉनिक्स एसोसिएशन के स्वतंत्र विश्लेषण में पता चला कि चीन की तुलना में भारत में उत्पादन लागत 18 से 22 फीसदी ज्यादा है और वियतनाम के मुकाबले यहां उत्पादन 9 से 11 फीसदी महंगा है। इस तरह मोबाइल उपकरणों के लिए 4 से 6 फीसदी प्रोत्साहन की बुनियाद तैयार हुई और किल्लत से निपटने के लिए यह प्रोत्साहन दिया।
कलपुर्जों और सब-असेंबली के लिए भी इसी तरह की कवायद पूरी होने वाली है, जिसके लिए पीएलआई के तहत सहायता की जरूरत होगी। इससे यह पता लगाने में मदद मिलेगी कि उनमें से कौन प्रतिस्पर्धी है। उदाहरण के लिए भारत पहले से ही चीन को मोबाइल चार्जर निर्यात कर रहा है।
दूसरी शर्त ऐसी कंपनियों को चिह्नित करना है जो कलपुर्जा और सब-असेंबली में बड़ा निवेश करना चाहती हैं। हितधारकों ने कहा कि मोबाइल असेंबली से इतर कलपुर्जा और सब-असेंबली इकाइयों के लिए ज्यादा पूंजी की जरूरत होती है क्योंकि उन्हें होड़ में आने के लिए बड़े स्तर पर उत्पादन करना होगा।
तीसरी शर्त इन कलपुर्जों के खरीदारों की पहचान करने की है। उदाहण के लिए मोबाइल उपकरणों के लिए पीएलआई योजना के तहत कई पात्र कंपनियां प्रोत्साहन का दावा नहीं कर सकीं क्योंकि उत्पादन में लगातार इजाफा करने और निवेश लक्ष्य पूरा करने के लिए उन्होंने मूल उपकरण विनिर्माताओं के साथ असेंबलिंग के करार नहीं किए थे।
चौथी शर्त पीएलआई योजना के अनुरूप है, जिसका उद्देश्य भारत को निर्यात के लिए विनिर्माण केंद्र बनाना है। मोबाइल उपकरण के मामले में यह काफी सफल रहा है। उदाहरण के तौर पर भारत ने वित्त वर्ष 2024 में 15.5 अरब डॉलर मूल्य के मोबाइल उपकरणों का निर्यात किया, जो देश के कुल इलेक्ट्रॉनिक निर्यात का 53 फीसदी है।
हितधारकों ने कहा कि वे कराधान नीतियों पर भी सरकार के साथ चर्चा करेंगे। कलपुर्जों पर आयात शुल्क घटाना होगा। उन्होंने कहा कि अभी इस बारे में स्पष्टता नहीं है कि सरकार चीन की कंपनियों के लिए प्रतिबंधित प्रत्यक्ष विदेशी निवेश नीति की समीक्षा करेगी या नहीं। असल में चीन दुनिया भर में भारी मात्रा में कलपुर्जों और सब-असेंबली की आपूर्ति करता है। यह भी स्पष्ट नहीं है कि पीएलआई की पात्रता के लिए चीन की कंपनियों को भारत में संयुक्त उपक्रम के तहत कारखाने लगाने की अनुमति मिलेगी या नहीं।