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सापेक्षिक रूप से एफपीआई का कम स्वामित्व बाजार को देता है बढ़ावा: एलेक्जेंडर रेडमैन

भारत के ऊंचे मूल्यांकन पर रेडमैन ने कहा, हालिया गिरावट के बाद भी भारतीय बाजार हालांकि महंगे हैं, लेकिन मूल्यांकन प्रीमियम नीचे आया है।

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बीएस संवाददाता   
Last Updated- November 18, 2024 | 10:18 PM IST

उभरते बाजारों के लिए कम अनुकूल इस दुनिया में भारत का भारांक बढ़ाने का मामला बनता है, यह कहना है सीएलएसए के प्रबंध निदेशक और मुख्य इक्विटी रणनीतिकार एलेक्जेंडर रेडमैन (Alexander Redman) का।

रेडमैन ने कहा, भारतीय इक्विटी में एफपीआई का सापेक्षिक रूप से कम स्वामित्व उभरते बाजारों के समकक्षों के मुकाबले भारत को बढ़त प्रदान करता है। यहां विदेशी निवेशकों का स्वामित्व 17.5 फीदी है जबकि उभरते बाजारों वाले कुछ समकक्ष देशों में विदेशी स्वामित्व 58 फीसदी तक है।

रेडमैन ने कहा, यह वास्तव में भारत के चारो ओर एक तरह की खाई खींचता है। ब्राजील में 58 फीसदी विदेशी स्वामित्व पर विचार करें तो स्थानीय निवेशक शुद्ध विदेशी बिकवाली की भरपाई नहीं कर सकते। भारत ऐसा कर सकता है और सितंबर के आखिर से अब तक विदेशी निवेशकों की तरफ से हुई शुद्ध आधार पर हुई 14 अरब की निकासी की भरपाई के लिए एसआईपी और म्युचुअल फंडों की अन्य योजनाओं के जरिये ज्यादा निवेश आया है।

रेडमैन ने कहा, हम भारत में इक्विटी बाजार की रफ्तार और देसी म्युचुअल फंडों में आए निवेश के बीच ऐसी बेहतर स्थिति नहीं पा सकते। उन्होंने कहा, सितंबर के आखिर से अब तक शुद्ध विदेशी बिकवाली अनुपयोगी रही है और स्पष्ट रूप से देसी निवेशक आखिरकार इसकी समाप्ति देखना चाहेंगे।

साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि निवेशकों को भारत में ऊर्जा कीमतों को लेकर संवेदनशीलता का भी ध्यान रखना चाहिए। रेडमैन ने कहा, भारत की ऊर्जा जरूरतों का ज्यादातर हिस्सा आयात होता है। चालू खाते व मुद्रा पर इसका असर पड़ता है क्योंकि भारत अपनी ऊर्जा जरूरतें देश में पूरी नहीं कर सकता। अब इसे कुछ कम किया जा सकता है क्योंकि भारत अपने तेल आयात का 40 फीसदी हिस्सा रूप से हासिल कर रहा है।

कंपनियों की आय पर रेडमैन ने कहा कि भारत ऐसा बाजार है जहां सकल घरेलू उत्पाद प्रति शेयर आय में परिवर्तित होता है। उन्होंने कहा, उभरते बाजारों के पोर्टफोलियो मैनेजरों का सबसे कठिन काम उभरते बाजारों के जीडीपी को ईपीएस में तब्दील करना है। इसकी वजह अर्थव्यवस्था व इक्विटी बाजारों का सेक्टोरल बेमेल होना है। भारत की स्थिति बेहतर है, ऐसे में निष्कर्ष यह है कि अगर आप जानना चाहते हैं कि भारत में ईपीएस किधर जा रहा है तो आपको विश्लेषक से पूछने की जरूरत नहीं है, आपको अर्थशास्त्री से यह पूछना चाहिए।

भारत के ऊंचे मूल्यांकन पर रेडमैन ने कहा, हालिया गिरावट के बाद भी भारतीय बाजार हालांकि महंगे हैं, लेकिन मूल्यांकन प्रीमियम नीचे आया है।

First Published : November 18, 2024 | 10:10 PM IST