Representative Image
पिछले वर्षों में भारतीय स्टार्टअप में कॉरपोरेट प्रशासन में खामी के कई मसले भी सामने आए हैं, जिसकी वजह से निवेशक अब किसी निवेश पर निर्णय लेने से पहले वाणिज्यिक और वित्तीय जांच-पड़ताल पर ज्यादा समय लगा रहे हैं।
वृदि्ध चरण की निवेश फर्म फंडामेंटम पार्टनरशिप के सह-संस्थापक और जनरल पार्टनर आशीष कुमार कहते हैं, ‘किसी सौदे को कारगर रूप लेने में लगने वाला समय अब करीब 60 फीसदी तक बढ़ गया है। कानूनी और वित्तीय जांच-पड़ताल पर लगने वाला समय पहले के करीब दो महीने से बढ़कर अब तीन से चार महीने हो गया है।’
अर्थ के दमानी यह कहते हैं कि 2021-2022 के दौरान जिस तेजी से सौदे निपटाए जा रहे थे, वह टिकाऊ नहीं था।
उन्होंने कहा, ‘मेरे अनुभव के मुताबिक कम से कम जांच-पड़ताल के साथ तेजी से निवेश मानक नहीं था। अब हम यह देख रहे हैं कि ज्यादा पारंपरिक तरीके से सौदे 3 से 6 महीने में निपटाए जा रहे हैं, जिनमें कि ज्यादा गहराई से जांच-पड़ताल होती है। ’
स्टार्टअप की फंडिंग कम हो रही है, लेकिन निवेशकों का उत्साह कम नहीं है। कुछ निवेशकों ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि अब कंपनियां वृदि्ध की जगह मुनाफा कमाने की क्षमता और मार्जिन में सुधार पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं, जिससे कि निवेशकों की धारणा भी मजबूत हुई है।
आशीष कुमार कहते हैं, ‘हम बहुत सक्रिय हैं। हमें लगता है कि यह पूंजी को लगाने का बेहतर समय है। कंपनियों के बुनियादी आंकड़ों में सुधार हुआ है, मूल्यांकन ज्यादा यथार्थवादी हुआ है और कंपनियां वास्तव में कुछ गंभीर अंतर कर सकने में सक्षम हुई हैं। ’
अब साल का अंत होने को है, ऐसे में कई पुराने वीसी फंड अपने फंड चक्र को भी समाप्त करने के करीब हैं। साल 2024 आईपीओ या अधिग्रहण के लिहाज से बेहतर हो सकता है। मजबूत आर्थिक दशाओं की वजह से ओला इलेक्ट्रिक, ओयो, पेयू, गरुड़ एरोस्पेस जैसी कई कंपनियां अगले साल आईपीओ लाने की तैयारी कर रही हैं।