वैश्विक महामारी कोविड-19 के दौरान देश के तकरीबन 90 प्रतिशत गिग वर्कर्स (ठेके पर रखे जाने वाले अस्थायी श्रमिक) को अपनी आमदनी से हाथ धोना पड़ा है। दक्षिण एशिया में निवेश वाले वैश्विक वित्तीय प्रौद्योगिकी उद्यम कैपिटल फंड फ्लरिश वेंचर्स के एक सर्वेक्षण में यह जानकारी मिली है।
इस वैश्विक महामारी से पहले ये श्रमिक आम तौर पर औसत से अधिक कमाई किया करते थे, लेकिन सर्वेक्षण में शामिल एक-तिहाई से अधिक श्रमिकों को अगस्त तक प्रति माह 5,000 रुपये (करीब 68 डॉलर) से भी कम कमाई हो रही थी। इस शोध में उनकी आर्थिक सुरक्षा में सुधार और वित्तीय आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए वित्तीय प्रौद्योगिकी की संभावना पर भी प्रकाश डाला गया है।
फ्लरिश के प्रबंध साझेदार टिलमैन एर्बेक ने कहा कि गिग वर्कर्स को नुकसान पहुंच रहा है, क्योंकि भारत में कोविड-19 का संकट बना हुआ है। भले ही उनके पास निजी बचत या सरकारी मदद के रूप में आर्थिक सहारा ही क्यों न हो। इस शोध से पता चलता है कि अधिकांश श्रमिक अपने आर्थिक भविष्य के संबंध में चिंतित हैं। फ्लरिश में हमें इस बात की उम्मीद है कि गिग अर्थव्यवस्था को सक्षम बनाने वाला यह डिजिटल प्लेटफॉर्म ही श्रमिकों को इस संकट में और इसके बाद सुरक्षा के लिए आय के नए स्रोतों और बेहतर आर्थिक साधनों से जोड़ सकता है। इस सर्वेक्षण का आयोजन अगस्त 2020 में किया गया था। उस समय देश भर में कोविड-19 के मामले बढ़ रहे थे। इस सर्वेक्षण में डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग करने वाले 770 राइडशेयरिंग ड्राइवरों, घरेलू सफाईकर्मियों और डिलिवरी का काम करने वाले कर्मचारियों को शामिल किया गया था।
सर्वेक्षण से पता चलता है कि लॉकडाउन के बाद से आय में गिरावट आई है। जहां एक और अधिकांश भारतीय गिग वर्कर्स इस वैश्विक महामारी से पहले प्रति महीना 25,000 रुपये (करीब 340 डॉलर) से अधिक कमा रहे थे, वहीं दूसरी ओर अगस्त तक 10 में लगभग नौ व्यक्ति प्रति महीना 15,000 रुपये (करीब 200 डॉलर) से कम कमा पा रहे थे। एक-तिहाई से भी अधिक गिग वर्कर्स प्रति दिन इससे भी कई गुना कम (करीब 2.3 डॉलर) कमाई कर पा रहे थे।