भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर शक्तिकांत दास ने शुक्रवार को कहा कि यूनीफाइड पेमेंट इंटरफेस (यूपीआई) में भारत की निरंतर भागीदागी, खासकर कोविड-19 महामारी के दौरान और उसके बाद, इस बात के सबूत देती है कि राष्ट्रीय सीमाओं से परे विस्तार होने से डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचा वैश्विक सार्वजनिक संपत्ति के रूप में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
उन्होंने यह भी कहा कि भारत का प्रायोगिक अनुभव बताता है कि किस तरह से डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचा प्रभावी तरीके से वित्तीय समावेशन, उत्पादकता बढ़ाने व लागत बचाने में भूमिका निभा सकता है।
जी-20 के फाइनैंशियल ट्रैक नैशनल इवेंट में बोलते हुए दास ने कहा, ‘भारत के अनुभव ने दिखाया है कि किस तरीके से डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचे का इस्तेमाल वित्तीय समावेशन को बेहतर बनाने और लागत घटाकर उत्पादकता बढ़ाने में किया जा सकता है।’
उन्होंने आगे कहा कि यूपीआई में हमारी लगातार सक्रियता, खासकर महामारी के दौरान और उसके बाद, से हमें अनुभव मिला है कि यूपीआई जैसे डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचा वैश्विक सार्वजनिक बेहतरी का अहम हिस्सा हो सकता है, जब हम राष्ट्र की सीमाओं से परे जाते हैं।
भारत में 2016 में यूपीआई पेश किया गया था, जो अब देश में सबसे लोकप्रिय भुगतान का माध्यम बन गया है। इससे जुलाई में 15.34 लाख करोड़ रुपये का 10 अरब डॉलर लेन-देन हुआ है।
दास ने यूपीआई जैसी वैश्विक सार्वजनिक संपत्ति के सृजन व वित्तपोषण में निजी क्षेत्र की भूमिका पर भी जोर दिया है। उन्होंने कहा कि निजी क्षेत्र का जुड़ना सिर्फ इसलिएजरूरी नहीं है कि इससे कारोबारी वृद्धि के लिए सकारात्मक माहौल बनाने में तेजी आएगी, बल्कि इससे इसकी वाणिज्यिक व्याहारिकता भी सुनिश्चित होगी।
दास ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) में ‘कोटा’ की समीक्षा जल्द पूरा करने की जरूरत है। उन्होंने कहा है कि इससे आईएमएफ संकट में फंसे देशों की मदद और बेहतर तरीके से कर सकेगा। दास ने कहा कि हाल के अनुभवों से पता चलता है कि पहुंच की कमी की वजह से वित्तीय संकट के समय देश आईएमएफ के बजाय अन्य निकायों से मदद मांगते हैं। दास ने कहा कि किसी देश को आईएमएफ का समर्थन उस देश के ‘कोटा’ पर निर्भर करता है।
उन्होंने कहा, ‘16वीं सामान्य कोटा समीक्षा के साथ कामकाज के संचालन से संबंधित मुद्दों को तेजी से पूरा किए जाने की जरूरत है।’ उन्होंने कहा कि पर्यावरण अनुकूल गतिविधियों की ओर बदलाव के वित्तीय प्रभाव की अनदेखी नहीं की जा सकती है।