बीमा कंपनी के अधिकारियों और विश्लेषकों का कहना है कि बगैर दावा किए गए जीवन बीमा फंड में ऑनलाइन और बीमा कंपनी के अधिकारियों द्वारा बेची गई पॉलिसियों की तुलना में एजेंटों के जरिये बेची गई पॉलिसियों की राशि अधिक है।
बगैर दावा किए गए जीवन बीमा फंड उन बीमा पॉलिसियों से जुड़े हैं, जिनमें मृत्यु से जुड़े लाभ या आश्रितों को मिलने वाले लाभ का दावा लाभार्थियों या पॉलिसीधारकों द्वारा नहीं किया गया है।
फेडरल एजेस लाइफ इंश्योरेंस के एमडी और सीईओ विग्नेश शहाणे ने कहा, ‘बीमा कंपनियां बैंकाश्योरेंस ग्राहकों के बैंक ब्योरे की आसानी से पुष्टि कर सकती हैं और पैन नंबर के आधार पर बैंक से नया बैंक खाता, संपर्क का विवरण और पता भी हासिल कर सकती है। पॉलिसियों में ग्राहक के मोबाइल व ईमेल को डिजिटल माध्यम से अद्यतन किया जा सकता है और इससे ग्राहकों से तत्काल जुड़ने की सुविधा मिल जाती है।’
शहाणे ने कहा कि एजेंसी के माध्यम से बीमा होने पर एजेंट के कंपनी छोड़ने के बाद ग्राहक से जुड़ पाने में मुश्किल आती है।
हाल ही में भारतीय बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण (IRDAI) ने मास्टर सर्कुलर में संशोधन जारी किया था, जिसमें फंड को बगैर दावा वाली राशि घोषित करने से पहले बीमाकर्ताओं को ग्राहकों से संपर्क के लिए 12 महीने का वक्त दिया था, जो पहले 6 महीने था। अधिसूचना में ग्राहकों के साथ संपर्क, संपर्क के ब्योरे का उन्नयन आदि को भी शामिल किया गया है।
ग्लोबलडेटा में सीनियर इंश्योरेंस एनॉलिस्ट स्वरूप कुमार साहू ने कहा कि पिछले 5 साल में दावा न की गई राशि में से 90 प्रतिशत से ज्यादा भारतीय जीवन बीमा निगम से जुड़ी हुई है।
उन्होंने कहा, ‘LIC ज्यादातर कारोबार एजेंटों के माध्यम से करती है, ऐसे में हम अनुमान लगा सकते हैं कि एजेंटों द्वारा बेची गई पॉलिसी की हिस्सेदारी कुल बगैर दावे वाले बीमा फंड में अधिक है। बहरहाल इसके सही आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं।’
जीवन बीमा उद्योग में दावा न किए गए बीमा फंड की राशि वित्त वर्ष 2023 में तेजी से घटकर 2.06 करोड़ रुपये रह गई, जो एक साल पहले 4.82 करोड़ रुपये थी।