विधि मंत्रालय ने सांसदों और विधायकों से जुड़े आपराधिक मामलों की शीघ्र सुनवाई के लिए गठित विशेष अदालतों का ‘व्यापक मूल्यांकन’ करने के लिए भारतीय प्रबंध संस्थान (आईआईएम), भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), विधि विश्वविद्यालयों और न्यायिक अकादमियों सहित शीर्ष संस्थानों से प्रस्ताव आमंत्रित किए हैं ताकि उनकी कार्यक्षमता, प्रभावकारिता और समग्र प्रभाव का आकलन किया जा सके।
विधि मंत्रालय के अधीन काम करने वाले न्याय विभाग की ‘न्यायिक सुधारों पर कार्रवाई अनुसंधान और अध्ययन योजना’ के तहत ये प्रस्ताव आमंत्रित किए गए हैं। वर्ष 2017 में उच्चतम न्यायालय के निर्देशों के बाद केंद्र सरकार ने सांसदों और विधायकों से जुड़े आपराधिक मामलों की त्वरित सुनवाई के लिए राज्यों में 12 विशेष अदालतें शुरू की थीं।
इनमें दिल्ली में दो और उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु और केरल में एक-एक अदालत का गठन किया गया। वर्तमान में नौ राज्यों में ऐसी 10 अदालतें कार्यरत हैं। दिसंबर 2018 में उच्चतम न्यायालय के निर्देशानुसार बिहार और केरल की विशेष अदालतों को बंद कर दिया गया था। इन विशेष अदालतों के कामकाज की निगरानी उच्चतम न्यायालय द्वारा की जा रही है।
न्याय विभाग द्वारा जारी प्रस्ताव आमंत्रण के अनुसार, ‘इस अध्ययन में इन विशेष अदालतों का व्यापक मूल्यांकन किया जाना चाहिए ताकि उनकी कार्यक्षमता, असर और समग्र प्रभाव का आकलन किया जा सके। इन अदालतों के प्रदर्शन की निगरानी उच्चतम न्यायालय द्वारा की जाती है और उन्हें आंशिक रूप से भारत सरकार द्वारा वित्त पोषित किया जाता है।’