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‘एफएमसी की मजबूती के बाद ही वायदा बाजार में बैंक और वित्तीय संस्थानों की एंट्री’

Last Updated- December 08, 2022 | 11:06 AM IST

चार साल तक बढ़ोतरी की लंबी छलांग लगाने के बाद जिंस वायदा कारोबार अब एकीकरण की तरफ बढ़ने लगा है।


साल 2008 में कमोडिटी एक्सचेंजों में से कुछ ने कारोबार बढ़ाने के लिए धातु व ऊर्जा क्षेत्र का रुख किया क्योंकि कृषि जिंस वायदा में राजनीतिक रोड़ा अटकने लगा था। अब एक बार फिर परिस्थितियां वायदा बाजार के अनुकूल होने लगी हैं।

अब जिंस कारोबार के नियामक एफएमसी को और मजबूत बनाने की पहल की जा रही है। आयोग के अध्यक्ष बी. सी. खटुआ ने हमारे संवाददाता राजेश भयानी को दिए इंटरव्यू में साफ कहा कि गेहूं, चावल और दाल का वायदा कारोबार फिर से शुरू करवाना उनकी प्राथमिकता में शामिल है। पेश है बातचीत के मुख्य अंश।

वायदा बाजार आयोग के लिए साल 2008 झटके जैसा है? वास्तव में इस साल कुछ नहीं हुआ?

सचमुच ये साल चुनौती भरा रहा। हमने उम्मीदों के साथ साल की शुरुआत की थी क्योंकि फॉरवर्ड कॉन्ट्रैक्ट रेग्युलेशन एक्ट को संशोधित कने वाला अध्यादेश जनवरी महीने में आया।

लेकिन संकट का दौर शुरू हो गया और मई आते-आते हमें चार जिंसों के वायदा कारोबार पर अस्थायी रोक लगानी पड़ी क्योंकि महंगाई ने सर उठाना शुरू कर दिया था।

अब परिस्थितियां बदल रही हैं। बाजार ने इसे पचा लिया है। इन परिस्थितियों से सबको सीखने का मौक मिला है। बाजार के खिलाड़ियों ने महसूस किया है कि वायदा बाजार की अनुपस्थिति में खेती से जुड़े समुदाय परेशानी में होते हैं क्योंकि यहां कोई ऐसा सिस्टम नहीं है जिससे कीमतों के ट्रेंड का पता लगाया जा सके।

कारोबारियों द्वारा अभियान चलाए जाने के बाद भी किरबर की कीमत और घटेगी, किसान माल नहीं बेच रहे हैं क्योंकि वायदा बाजार में इसका भाव हाजिर बाजार से ऊंचा है। आलू किसानों के सामने कीमत का ट्रेंड नहीं होने के कारण उन्हें भयवश माल बेचने को मजबूर होना पड़ रहा है।

वायदा कारोबार का विरोध करने वाले भी अब इस बात को समझ रहे हैं कि वायदा बाजार कितना महत्वपूर्ण है और सचमुच यह कितना मददगार है।

साल 2009 के लिए एफएमसी का एजेंडा क्या है?

मेरी पहली प्राथमिकता चार जिंसों गेहूं, चावल, अरहर और उड़द केवायदा कारोबार को बहाल करने की है। चूंकि इसके कारोबार पर अस्थायी रोक लगी थी, इसलिए दोबारा नोटिफिकेशन से इसे बहाल किया जा सकता है। दूसरी प्राथमिकता है जागरूकता अभियान चलाने की।

इस अभियान को वायदा बाजार में दिलचस्पी रखने वाले खिलाड़ियों को शिक्षित करने केसाथ-साथ सार्वजनिक स्थल पर जिंसों के वायदा कीमतों का डिस्प्ले बोर्ड स्थापित कर अंजाम दिया जाएगा।

यह प्रोजेक्ट फिलहाल चल रहा है और तीन मुख्य एक्सचेंजों ने एफएमसी के साथ मिलकर एपीएमसी, बैंकों की शाखाओं और दूसरी जगहों पर कीमतों का डिस्प्ले बोर्ड लगाया है और इस पर होने वाले खर्च को मिलकर वहन कर रहे हैं।

ट्रेनिंग प्रोगाम के तहत आईआईएम अहमदाबाद के छात्र एफएमसी में ट्रेनिंग के लिए आ रहे हैं। कुछ और शिक्षण संस्थानों ने अपने पाठयक्रम में जिंस वायदा को शामिल किया है।

क्या आपको लगता है कि गेहूं और दाल का वायदा कारोबार शुरू हो पाएगा?

मुझे लगता है कि यह उम्मीद से पहले होना चाहिए। हमें नया नोटिफिकेशन जारी करना होगा। अगर सरकार प्रस्ताव को हरी झंडी दिखा देती है तो फिर हम नोटिफिकेशन जारी कर देंगे। इसके बाद एक्सचेंज एफएमसी की अनुमति से इन अनुबंधों को एक बार फिर शुरू कर पाएंगे।

क्या अपेक्षित शक्तियों के अभाव में नियामक के रूप में एफएमसी प्रभावी रूप से काम कर पा रहा है?

पिछले 5 साल में जिंस कारोबार कई गुणा बढा है। ऐसे में ये कहना मुनासिब नहीं है कि नियामक की शक्तियों के बिना ही बाजार दिन-दुना रात चौगुना तरक्की के पथ पर अग्रसर है। एफसीआर एक्ट को संशोधित करने वाला विधेयक संसद में पेश किया गया था, लेकिन पारित नहीं हो पाया।

ये संशोधन विधेयक एफएमसी को स्वायत्त बनाने के लिए किए पेश किए गए थे। एफएमसी का स्वायत्त होना बाजार की जरूरत नहीं है। लेकिन अगर बाजार को और आगे ले जाना है तो फिर नियामक के पास शक्तियां तो होनी ही चाहिए।

कौन-कौन सी नई चीजों का इंतजार है?

बाजार में और सहभागियों की जरूरत है। भारतीय रिजर्व बैंक और वित्त मंत्रालय ने संकेत दिया है कि जिंस बाजार में वित्तीय संस्थानों और बैंकों की भागीदारी की बाबत फैसला एफएमसी को मजबूत करने के बाद ही लिया जाएगा।

हमने कई ऐसे रेग्युलेशन की तैयारी कर ली है, जो तभी पेश किए जाएंगे जब एफएमसी स्वायत्त दर्जा प्राप्त कर लेगा। बिना स्वायत्तता के हम काबिल लोगों की सेवाएं नहीं ले सकते। जब तक एफसीआरए बिल पास नहीं हो जाता, हम ऑप्शन व इंडेक्स फ्यूचर शुरू नहीं कर सकते।

वायदा एक्सचेंजों ने गोदाम और स्पॉट एक्सचेंज की स्थापना के लिए गठजोड़ किया है। ऐसे में उन्हें रेग्युलेट करना मुश्किल नहीं होगा क्योंकि उनके कारोबार एक-दूसरे से जुड़े होंगे?

को-ऑर्डिनेशन के मुद्दे को देखने की जरूरत है। सभी क्षेत्रों में उपस्थिति से एक्सचेंजों को ही फायदा होगा। भारत में स्पॉट कमोडिटी मार्केट राज्य की सूची में है जबकि वायदा कारोबार केंद्र सरकार द्वारा रेग्युलेट होता है।

संसद ने वेयरहाउसिंग बिल पास किया है, लेकिन अब तक यह कानून का रूप नहीं ले पाया है। कमोडिटी एक्सचेंज गोदामों का इस्तेमाल अनुबंध की समाप्ति पर डिलिवरी के लिए करती हैं और वहां माल खास मानक पर रखा जाता है।

स्पॉट एक्सचेंजों द्वारा भी इन गोदामों का इस्तेमाल किया जा सकेगा जब वे भी खास मानक को पूरा करने वाले माल रखने को राजी होंगे।

इससे उन्हें ये फायदा होगा कि इसकी रसीद का इस्तेमाल वे एक्सचेंज के साथ किए जाने वाले कारोबार में कर पाएंगे। चूंकि ये गतिविधियां आपस में जुड़ी हुई हैं, लिहाजा इसमें विवाद की गुंजाइश तब होगी जब अलग-अलग रेग्युलेटर होंगे।

First Published - December 25, 2008 | 10:49 PM IST

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