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सोना-चांदी में करें निवेश, सुरक्षित रहेगा पैसा

Last Updated- December 05, 2022 | 4:26 PM IST

डॉलर के लगातार कमजोर होने और अमेरिका में मुद्रास्फीति दर बढने से इन दिनों जिंस बाजार खासा प्रभावित हुआ है। निवेशकों के लिए बेशकीमती धातुओं में निवेश ज्यादा सुरक्षित होने की वजह से एशिया में प्लेटिनम की कीमतों ने नया रिकार्ड बनाया है। इस साल प्लेटिनम की कीमतों में 47 फीसदी तक उछाल आया है। हालांकि येन और यूरो की तुलना में डॉलर का मूल्य 7.5 फीसदी तक देखा गया। इन दिनों डॉलर के कमजोर पड़ने और बढ़ती महंगाई के चलते निवेशकों का मूल्यवान धातुओं, जैसे-सोना-चांदी, प्लेटिनम के प्रति रुझान बढ़ता जा रहा है। टोक्यो के इंटर्स कैपिटल मैनेजमेंट के कमोडिटी विशेषज्ञ काझूहिको सेंटू के मुताबिक, प्लेटिनम और सोना के फंडों की खरीदारी जारी है। मंगलवार को सर्राफा बाजार में सोमवार की तुलना में प्लेटिनम की तुरंत आपूर्ति की कीमत 0.7 फीसदी बढ़कर 2247 डॉलर प्रति आउंस तक जा पहुंचा। इस तरह अब एक आउंस प्लेटिनम न्यू यार्क बाजार में 14.5 डॉलर ज्यादा महंगे हो सकते हैं। टोक्यो सर्राफा बाजार में फरवरी 2008 में धातु की कीमतों में 4.3 फीसदी की बढ़ोतरी देखी गई। साथ ही डिलिवरी 300 येन की ट्रेडिंग सीमा को भी पार कर गया। सोमवार को टोक्यो में प्लेटिनम का हाजिर भाव 7274 येन प्रति ग्राम रहा।
अमेरिका के श्रम विभाग के रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले जनवरी में उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतों में उछाल का रुख रहा। उछाल की यह दर कयास से कहीं ज्यादा है। पिछले साल अमेरिकी मंदी कम करने के लिहाज से वहां के फेडरल बैंक के गवर्नर बेन एस बरनानके ने यूएस बेंचमार्क की ब्याज दरों में कटौती की थी। इसी के बाद सोने की कीमत 36 फीसदी तक बढ़ी थी। कम ब्याज दर के कारण डॉलर कमजोर हुआ, नतीजा शेयर बाजार में बढ़ती मुद्रास्फीति की दर के कारण चिंता बरकरार है।
सामान्यत: सोना, चांदी और प्लेटिनम जैसी जिंसों का वैश्विक कारोबार अमेरिकी डॉलर में होता है। डॉलर की तुलना में यूरो, येन आदि मुद्राओं का मजबूत होना लाजिमी है। ऐसा होने से निवेशकों की क्रय शक्ति भी बढ़ जाती है। फिलाडेल्फिया स्थित फेडरल बैंक के अध्यक्ष चार्ल्स प्लोजन के मुताबिक, वित्तीय बाजारों की स्थिरता के लिए नीति निर्माताओं को मुद्रास्फीति रोकने के लिए ब्याज दरों को बढाना चाहिए। पिछले कुछ दिनों से दक्षिण अफ्रीका स्थित संसार की बड़ी खानों में प्लेटिनम का उत्पादन घटने की आशंका है। इसके पीछे बिजली की भारी किल्लत मानी जा रही है। जनवरी में दक्षिण अफ्रीका की ज्यादातर मिलें पांच दिनों तक बिजली की आपूर्ति ठप होने के चलते बंद रही थीं। इससे निजात पाने के लिए दक्षिण अफ्रीका सरकार और खादान प्रबंधकों के बीच 90 फीसदी तक बिजली उपभोग की बात चल रही है।

First Published - March 4, 2008 | 9:52 PM IST

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