उर्वरक सब्सिडी के बढ़ते बोझ और उर्वरक की किल्लत जैसी समस्याओं से केंद्र की संप्रग सरकार लंबे समय से जूझ रही है।
इस मुद्दे पर बिजनेस स्टैंडर्ड ने उर्वरक विभाग में दो साल तक सचिव रहे जे. एस. शर्मा से लंबी बातचीत की। सोमवार से दूरसंचार विवाद निपटान और अपील न्यायाधिकरण (टीडीसेट) में बतौर सदस्य पदभार संभालने जा रहे शर्मा ने जो मैथ्यू को काफी कुछ बताया। प्रस्तुत है बातचीत के प्रमुख अंश :
सवाल: सरकार के काफी प्रयासों के बावजूद देश के कई इलाकों में उर्वरक की किल्लत अभी भी बनी हुई है। ऐसा क्यों है ?
उर्वरक की उपलब्धता हमेशा मांग से अधिक रही है। उत्पादन का अपर्याप्त होना इसकी वजह नहीं है बल्कि ठीक से वितरण न होना ही इस समस्या की जड़ में है। इस तथ्य को हमने 2006 में ही समझ लिया था और 2007-08 से पूरे देश में उर्वरकों के वितरण पर नजर रखने के लिए एक तंत्र बनाया गया। इस उर्वरक निगरानी व्यवस्था (एफएमएस) ने समस्या को दूर करने में काफी मदद की। आज इसी का नतीजा है कि देश के हरेक जिले में उर्वरकों की आपूर्ति की सही सूचना ठीक समय पर मिल जा रही है।
सवाल : तो आपका कहना है कि उर्वरकों की किल्लत कोई गंभीर समस्या नहीं है?
हां, देश में उर्वरकों की कोई किल्लत नहीं है। राज्य सरकारों ने जितना उर्वरक चाहा है, उतना जिले स्तर तक पहुंचा दिया गया है। जिले से नीचे के स्तर पर हो सकता है कहीं इसकी आपूर्ति में समस्या हो। लेकिन सरकार इस दिक्कत को भी दूर करने की कोशिश कर रही है।
सवाल : कहीं ऐसा तो नहीं कि अनुमान लगाने में ही कोई चूक है? आखिर, उर्वरक की जरूरत का आकलन किया कैसे जाता है?
यह सब पूर्व-नियोजित होता है। सरकार के पास देश के हरेक जिले से सभी किस्म के उर्वरकों की मांग और उसकी आपूर्ति का (हर महीने का)आंकड़ा होता है। हरेक महीने की उर्वरक आपूर्ति योजना महीना शुरू होने से 15 दिन पहले ही तैयार कर लिया जाता है। उर्वरक विभाग खरीफ और रबी दोनों ही फसल सत्रों की शुरुआत से ऐन पहले राज्य सरकारों के साथ बैठक करता है। इस बैठक में राज्य सरकारें विभाग के सामने महीने के अनुसार उर्वरक की होने वाली संभावित मांग को रखती हैं। इसके बाद उर्वरक विभाग उत्पादकों के साथ बैठक कर उत्पादन की योजनाएं बनाता है।
फिर इस योजना को राज्य सरकारों को भेज दिया जाता है। जहां से जिलेवार उर्वरक वितरण की योजनाएं बना कर जिलों को भेज दिया जाता है। अब हमने आदेश दिया है कि राज्य सरकारें इस रेकॉर्ड को तैयार करें कि किस तिथि को किस ब्रांड का कितना खाद उस जिले तक पहुंचा। पहले क्या था कि जैसे ही उर्वरक कंपनियां राज्य को उर्वरकों की आपूर्ति कर देती थीं, उन्हें सब्सिडी का भुगतान कर दिया जाता था। लेकिन बदली व्यवस्था में जब तक यह सुनिश्चित नहीं कर लिया जाता कि माल जिले तक पहुंच गया है, तब तक सरकार सब्सिडी राशि का भुगतान नहीं कर रही है। इससे उर्वरक की आपूर्ति व्यवस्था में काफी सुधार आया है।
सवाल : अनुमान है कि वित्तीय वर्ष 2008-09 के दौरान उर्वरक सब्सिडी का बोझ 1.2 लाख करोड़ तक पहुंच जाएगा। सरकार के पास इस बोझ को हल्का करने के क्या उपाय हैं?
उर्वरक सब्सिडी बढ़ने की मुख्य वजह आयात होने वाले कच्चे माल का महंगा होना है। इससे राहत पाने का एक मात्र तरीका इसके घरेलू उत्पादन को बढ़ाना है और सरकार ऐसा कर भी रही है। हाल ही में फॉस्फेट और पोटाश वाले उर्वरकों के लिए लाइसेंस जारी किए गए हैं। हमने इस दिशा में पांच साल के लिए नीति निर्देश तैयार किए हैं।
सवाल : उर्वरकों के संतुलित उपभोग के लिए सरकार ने कोई नीतिगत कदम उठाए हैं?
उर्वरकों की किल्लत दूर करने के लिए ऐसे कई निर्णय हमने लिए हैं। उर्वरकों की आपूर्ति पर लगने वाले वास्तविक किराए को वापस लाया जा रहा है। जबकि डीएपी पर दबाव को हल्का करने के लिए सिंगल सुपर फॉस्फेट को बढ़ावा दिया जा रहा है। यही नहीं मिश्रित उर्वरकों की कीमतें घटायी गई हैं। साथ ही कोटेड उर्वरक को सब्सिडी के तहत लाया जा रहा है।