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कैंसर का इलाज शायद हो, ‘दवाओं’ का नहीं!

Last Updated- December 05, 2022 | 4:57 PM IST

हाल ही में पेटेंट अधिकार हासिल करने के लिए नोवर्टिस और रॉश में हुई कानूनी हील-हुज्जत कैंसर की दवाओं की असल कहानी की शायद महज एक झलक भर है।


इन दवाओं को लेकर कंपनियों में किस कदर घमासान मचा हुआ है, इसकी बानगी नीतिगत मुद्दों पर शोध करने वाले एक समूह के अध्ययन में मिल जाती है। इसके मुताबिक, कैंसर के इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवाओं के लिए बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने 350 से अधिक आवेदन भर रखे हैं।


2005 और 2006 में कैंसर दवाओं के लिए 413 दवाओं केपेटेंट के लिए आवेदन पेटेंट कार्यालय में जमा किए गए थे। इनमें से 358 आवेदन नोवर्टिस, एवेंटिस, ब्रिस्टल मेयर्स स्क्विब, फाइजर, बोएरिंगर, रॉश और एबॉट जैसी चोटी की बहुराष्ट्रीय कंपनियों से आए थे। भारतीय दवा कंपनियों से भी ढेरों आवेदन इस पेटेंट कार्यालय को मिले। कैंसर की दवाओं के पेटेंट के लिए होने वाली इस मारामारी की वजह है, यहां कैंसर के 25 लाख मरीजों का होना।


इससे मरने वाले लोगों की संख्या के लिहाज से यह देश के दस खतरनाक  रोगों में से एक है। राष्ट्रीय कैंसर निबंधन कार्यक्रम के आंकड़े बताते हैं कि हरेक साल देश में कैंसर के 7 लाख नए मामले आते हैं जबकि इनमें से 3 लाख लोगों की मौत हर साल हो जाती है। एक पेटेंट विशेषज्ञ का मानना है कि इस रोग की भयानकता के बावजूद लगभग सारे आवेदनों को हरी झंडी मिलना मुश्किल ही है।


अमेरिका का उदाहरण देते हुए उनका कहना था कि 1995 के बाद से अब तक अमेरिका में कैंसर की केवल 2 दवाओं को ही पेटेंट मिल सके हैं। जाहिर है, सभी को पेटेंट अधिकार मिलना काफी मुश्किल है। जहां तक भारत की बात है, 1995 से पहले कहीं भी तैयार दवाओं को पेटेंट का अधिकार नहीं मिल सकेगा। इन शोधों से जुड़े ज्यादातर लोगों का कहना है कि जो आवेदन आये हैं, उनमें से अधिकतर उन दवाओं केउत्पाद हैं जिसका कि भारत में पेटेंट ही नहीं मिल सकता।


इन लोगों के अनुसार अधिकांश आवेदन पेटेंट के लायक ही नहीं है इसलिए इसकी छंटनी करते वक्त संबंधित अधिकारी को काफी सतर्क रहने की जरूरत है।


 इन शोधकर्ताओं की चिंता इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाती है कि दिल्ली उच्च न्यायालय ने हाल ही में दिए अपने एक अंतरिम आदेश में हॉफमैन लॉ रोश की पेटेंट की हुई कैंसर रोधी दवा एरलॉटिंब को बेचने की अनुमति प्रतिद्वंद्वी दवा कंपनी सिप्ला को भी दे दी थी। टैरसिवा ही पहली और अब तक की एक मात्र दवा है जिस पर उसकी निर्माता कंपनी को प्रॉडक्ट पेटेंट अधिकार मिल सका है।

First Published - March 24, 2008 | 12:50 AM IST

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