भारतीय आउटसोर्स उत्पाद विकास (ओपीडी) कंपनियां, खासतौर पर छोटे और मझोले उद्यम मुश्किल दौर से निपटने की तैयारी कर रही हैं।
इन कंपनियों का लगभग 75 फीसदी कारोबार अमेरिका से आता था, जो अब आर्थिक संकट और मंदी की मार झेल रहा है। इसे देखते हुए कंपनियों यूरोपीय देशों की ओर अपनी बांहें फैला दी हैं।
यूरोपीय उपभोक्ता अब भारत की ओर जल्दी-जल्दी रुख करने लगे हैं और वे प्रभावशाली संपर्क भी बना रहे हैं। गुड़गांव की कंपनी नागारो सॉफ्टवेयर के कार्यकारी उपाध्यक्ष मानस फुलोरिया का कहना है। यूरोपीय मझोली कंपनियां भारत में अपनी खुद की ऑफशोर इकाइयां लगाने में झिझक महसूस नहीं कर रहीं।
यूरोपीय बाजारों में अपनी जगह बनाने पर फुलोरिया का कहना है, ‘नागारो कई रणनीतियों के साथ आगे बढ़ रही है। सबसे पहले कंपनी ग्राहकों तक पहुंचने से पहले वहां का बाजार के साथ ताल-मेल बैठाने के लिए कंपनी जन संपर्क में निवेश करेगी। उसके बाद हम वहां फ्रैंकफर्ट, स्टॉकहोम में अपना कार्यालय खोलेंगे और कोपेनहैगन में कंपनी साझेदारी में ऑफिस खोलने की संभावनाएं तलाश रही है। आखिर में कंपनी गैर-अंग्रेजी भाषाओं में महारत हासिल करने के लिए भाषा प्रशिक्षण, स्थानीय संसाधनों और व्यापक अनुवाद की मदद लेगी।’
उन्होंने कहा, ‘मौजूदा समय में रन रेट के मामले में यूरोप से स्कैंडिनैविया और जर्मनी (हमारे लिए आज तक के बड़े बाजार) से कारोबार में 30 प्रतिशत योगदान मिलता है। बाकी का अमेरिका से मिलता है। हमारी इन रणनीतियों के साथ यूरोप से राजस्व के अगले दो वर्षों में 50 प्रतिशत तक बढ़ने की उम्मीद है।’ वैश्विक ओपीडी बाजार आज लगभग 43 हजार करोड़ रुपये का है और इसके 2010 तक बढ़कर दोगुना होने की उम्मीद है। यूरोप से अभी लगभग 17.2 हजार करोड़ रुपये का कारोबार ओपीडी कंपनियों को मिलता है।
हालांकि 8,600 करोड़ रुपये से कुछ ज्यादा भारत को मिलता है। यूरोपीय ओपीडी बाजार के 2010 तक 34.4 हजार करोड़ रुपये के होने की उम्मीद है और इसमें से लगभग 17.2 हजार करोड़ रुपये का कारोबार भारत को मिल सकता है। चेन्नई की ऐस्पायर सिस्टम्स के उपाध्यक्ष सुनील जेएनवी के अनुसार यूरोप से कंपनी को मिलने वाले कारोबार को ध्यान में रखते हुए कंपनी ने यूरोप के लिए एक मार्केटिंग और सेल्स टीम
बनाई है।