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महंगाई को तगड़ा झटका, मंदी का खटका

Last Updated- December 10, 2022 | 8:38 PM IST

चंद महीने पहले रिकॉर्ड उछाल लगाने वाली मुद्रास्फीति ने अब नीचे गिरने का रिकॉर्ड बना दिया है। लेकिन इससे खुश होने के बजाय लोग परेशान हो रहे हैं।
मुद्रास्फीति की दर 1 मार्च को समाप्त सप्ताह में 0.44 फीसदी पर आ गई, जो पिछले 14 साल का निम्तम स्तर है। लेकिन अब यह आंकड़ा शून्य से नीचे जाने यानी अपस्फीति या डिफ्लेशन होने का खतरा भी पैदा हो गया है, जिसका मतलब है मंदी की गिरफ्त।
पिछले साल मार्च के पहले हफ्ते में मुद्रास्फीति की दर 7.78 फीसदी थी। पिछले साल कीमतें ज्यादा होने की वजह से ही इस महीने पहले हफ्ते में आंकड़े इतने कम हो गए। इस सप्ताह के दौरान ज्यादातर खाद्य और ईंधन उत्पाद और कुछ विनिर्मित उत्पाद सस्ते हुए हैं।
आरआईएस के महानिदेशक नागेश कुमार ने कहा, ‘अब डिफ्लेशन का खतरा है। इससे आरबीआई को मौद्रिक नीति में और ढील देने का मौका मिलेगा।’ वाणिज्य सचिव गोपाल कृष्ण पिल्लै ने भी कहा, ‘मुद्रास्फीति अब कोई समस्या नहीं है। हालांकि कई अन्य अर्थशास्त्रियों का मानना है कि केंद्रीय बैंक कोई कदम उठाने से पहले यह देखना चाहेगा कि ऊंची खुदरा कीमतों में गिरावट होती है या नहीं?’
हालांकि कम होती मुद्रास्फीति दर के कारण लोगों द्वारा रोज इस्तेमाल किए जाने वाले उत्पादों की कीमत में कोई गिरावट नहीं आई है। उदाहरण के तौर पर पिछले एक साल में चीनी की कीमतों में 22 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। इसी तरह दाल और अनाज की कीमतों में भी कोई कमी नहीं आई है। इन दोनों उत्पादों की कीमत में 10-11 फीसदी का इजाफा हुआ है।
क्रिसिल के अर्थशास्त्री धर्मकीर्ति जोशी ने बताया, ‘मुद्रास्फीति दर के घटने से आम आदमी को किसी तरह की राहत नहीं मिली है।’ उन्होंने कहा कि कई उत्पादों के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक अभी भी दहाई के आंकड़ों में है या फिर 10 फीसदी है।
खाद्य पदार्थों में चने की कीमत 5 फीसदी कम हुई है, जबकि चाय, फल और सब्जियों में 3-3 फीसदी की गिरावट आई है। ज्वार, अचार और मसालों में 2-2 फीसदी की गिरावट हुई है। हालांकि, समुद्री मछलियों की कीमतों में 2 फीसदी का इजाफा हुआ है। जेट ईंधन और कृषि के लिए बिजली 8-8 फीसदी सस्ते हुए हैं, जबकि लाइट, डीजल 7 फीसदी और बिटुमन कोल 2 फीसदी सस्ता हुआ है।
1975 में मुद्रास्फीति शून्य फीसदी
14 साल में पहली बार इतनी कम
उपभोक्ता मूल्य सूचकांक 9 फीसदी
6 महीने रह सकता है डिफ्लेशन
आरबीआई निपटने के लिए कर सकता है दरों में एक और कटौती
डिफ्लेशन की गूंजी आहट
मुद्रास्फीति की दर 1 फीसदी से भी नीचे आने के साथ ही आम आदमी और अर्थशास्त्रियों की पेशानी पर बल पड़ने शुरू हो गए हैं। दरअसल मंदी के इस दौर में जल्द ही यह आंकड़ा शून्य से भी कम होने के आसार हैं, जिसका सीधा मतलब होता है अपस्फीति या डिफ्लेशन। डिफ्लेशन कोई अच्छा शब्द नहीं है और अर्थशास्त्र में इसे 440 वोल्ट के झटके से कम नहीं माना जाता।
क्या है डिफ्लेशन?
डिफ्लेशन की स्थिति तब आती है, जब किसी भी अर्थव्यवस्था में दाम लगातार गिरने लगते हैं। हालांकि आम उपभोक्ता को कीमतों में कमी अच्छी लग सकती है, लेकिन डिफ्लेशन में हालत उतनी ही खराब होती है। इसमें कीमत कम होने पर मांग कम हो जाती है क्योंकि उपभोक्ता को लगता है कि अभी कीमत और गिरेगी।
माल नहीं बिकता, तो उद्योग पटरी से उतर जाता है और बेरोजगारी में बेतहाशा बढ़ोतरी हो जाती है। इससे रुपये की कीमत में इजाफा हो जाता है। रुपये की कीमत बढ़ने से कर्ज चुकाना आम आदमी के लिए भी दुश्वार होता है और कंपनियों के लिए भी। नतीजा कर्ज लेकर भागने और दिवालिया होने की घटनाएं बढ़ती हैं, जिनका नतीजा होता है मंदी।
क्या है इलाज?
इससे बचने के लिए सरकारें कई कदम उठाती हैं। आम तौर पर करों में कटौती कर दी जाती है, देश के केंद्रीय बैंक दरों में कमी करते हैं और ज्यादा मात्रा में मुद्रा भी छापते हैं। इससे नकदी की आपूर्ति बढ़ती है।
इसके अलावा निजी क्षेत्र को सहारा देने के लिए सरकार कई परियोजनाओं में पैसा लगाती है। लेकिन इन सबका नतीजा यही होता है कि आर्थिक विकास पूरी तरह पटरी से उतर जाता है और आने वाले काफी समय तक देश को इसकी कीमत चुकानी पड़ती है।

First Published - March 20, 2009 | 11:36 AM IST

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