जनवरी में महामारी का असर सफलता से झेलने के बाद फरवरी में बाउंस दर में और कमी आई है। इससे अर्थव्यवस्था में मजबूत रिकवरी और कर्जदाताओं के संपत्ति की गुणवत्ता में आगे और सुधार के संकेत मिलते हैं।
नैशनल ऑटोमेटेड क्लियरिंग हाउस (एनएसीएच) के आंकड़ों के मुताबिक फरवरी महीने में मूल्य के आधार पर बाउंस दर में जनवरी की तुलना में 100 आधार अंक की कमी आई है और यह 22.4 है। यह मई 2019 के बाद का सबसे निचला स्तर है। वहीं मात्रा के हिसाब से फरवरी में बाउंस दर 29.2 प्रतिशत रही है, जिसमें जनवरी की तुलना में 40 आधार अंक का सुधार आया है। यह बाउंस दर कोविड के पहले के महीनों जून 2019 से फरवरी 2020 की तुलना में कम है। विश्लेषकों की राय है कि हर महीने बाउंस दर में सुधार से संकेत मिलता है कि कर्जदाताओं की संपत्ति की गुणवत्ता में आगे और सुधार हो सकता है और उनके खुदरा गैर निष्पादित संपत्तियों में वित्त वर्ष 2022 की चौथी तिमाही में और कमी आ सकती है। बहरहाल हाल के भू-राजनीतिक तनावों से खुदरा पोर्टफोलियो के कुछ चुनिंदा सेग्मेंट पर दबाव पड़ सकता है।
मैक्वायरी कैपिटल के एसोसिएट डायरेक्टर सुरेश गणपति ने कहा, ‘बहरहाल हाल के भू-राजनीतिक तनावों और तेल की कीमतों पर इसके असर से खुदरा क्षेत्र में कुछ चिंता हो सकती है, खासकर ग्रामीण और वाणिज्यिक वाहन क्षेत्र में, क्योंकि ईंधन की ज्यादा कीमतों का बोझ ग्राहकों पर डाला जा सकता है।’ कोविड के पहले के वक्त (2018-20) में फरवरी में बाउंस दर मात्रा व मूल्य के हिसाब से क्रमश: 25.8 और 21.5 प्रतिशत रही है। इस तरह से देखें तो मौजूदा बाउंस दरें अभी भी कोविड के पहले के स्तर की तुलना में 100 बीपीएस ज्यादा हैं। लेकिन यह इसके पहले के महीनों की उच्च बाउंस दरों की तुलना में कम है।
इक्रा में फाइनैंशियल सेक्टर रेटिंग्स के सेक्टर हेड और वीपी अनिल गुप्त ने कहा, ‘बाउंस दर के आंकड़ों से पता चलता है कि महामारी की तीसरी लहर का उधारी लेने वालों की कर्ज चुकाने की क्षमता पर मामूली असर रहा है। यह शायद करीब 3 वर्षों का सबसे निचला स्तर है। और घटी हुई बाउंस दर मार्च में भी जारी रहने की संभावना है। बहरहाल ईंधन के दाम में संभावित बढ़ोतरी से कीमतों में आने वाली तेजी के असर से खर्च करने वाली आमदनी पर असर पड़ सकता है और उसके बाद कर्ज चुकाने की क्षमता प्रभावित हो सकती है। इस पर नजदीकी से नजर रखे जाने की जरूरत है।’