आपने अपने बजट भाषण में कहा है, ‘असाधारण समय में असाधारण उपायों की जरूरत पड़ती है।’ तो फिर आपने क्यों नहीं परंपरा को दरकिनार किया और वित्तीय राहत पैकेज की घोषणा की?
चलिए मैं अपनी बात की शुरुआत केंद्रीय बजट वक्तव्य से करता हूं, जो आर्थिक नीतियों को लेकर चिंता का निराकरण करने का एक तरीका है। वास्तव में सितंबर, 2008 के मध्य में जब वित्तीय संकट शुरू हुआ है, तभी से सरकार सतर्क है और तेजी से बदलती हुई परिस्थितियों के अनुसार कदम उठाती रही है।
परिस्थितियों के हिसाब से सरकार ने रिजर्व बैंक के मौद्रिक नीतिगत उपायों के साथ-साथ कई प्रशासनिक और वित्तीय कदम उठाए हैं। तथ्य यह है कि वर्ष 2008-09 में जीडीपी विकास में हम सेहतमंद 7.1 प्रतिशत (अग्रिम आकलन) का इजाफा दर्ज कर सकते हैं।
और दुनिया की दूसरी सबसे तेज गति से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था ठीक समय पर उठाए गए कदमों की सफलता की ओर इशारा करती है।
वित्तीय हो या मौद्रिक, इन उपायों की घोषणा और कार्यान्वयन तथा अर्थव्यवस्था के अपेक्षित वास्तविक व वित्तीय मानदंडों पर प्रभाव में कुछ अंतर रह गया। इसे समझना बहुत अहम है। इसलिए, 7 दिसंबर, 2008 और 2 जनवरी, 2009 घोषित वित्तीय राहत पैकेजों का असर अब जाकर देखने को मिल सकता है।
मिसाल के तौर पर इस्पात में सितंबर से नवंबर, 2008 के दौरान मासिक उत्पादन में लगातार गिरावट देख कर, दिसंबर-जनवरी में उत्पादन में सुधार आया है और यह वापस मई, 2008 के स्तर पर पहुंच गया। साल-दर-साल के आधार पर दिसंबर-जनवरी के दौरान सीमेंट उत्पादन की औसतन वृध्दि में 8.2 प्रतिशत का इजाफा देखने को मिला है।
ऐसे ही रेल भाड़ा जो अक्टूबर-नंवबर, 2008 में 2.2 प्रतिशत घट गया था, उसमें भी दिसंबर, 2008 में 7 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। यह भी एक तथ्य है कि वैश्विक वित्तीय संकट और उसके पूरे असर का खुलासा होना अभी बाकी है।
हमें सामने आने वाले नए-नए मसलों का लगातार विश्लेषण करना होगा और उन्हें समझना होगा तथा ऐसे कदम उठाने होंगे जिनका असर बड़े स्तर पर हो। अगर परिस्थितियों की मांग होगी तो हम त्वरित और जरूरी कदम उठाने में भी नहीं हिचकिचाएंगे।
आपने अगले साल के लिए विकास दर 11 फीसदी अनुमानित किया है, तो भला अगले साल के लिए राजस्व वृध्दि इस साल जितनी ही क्यों है?
साल 2008-09 के लिए संशोधित अनुमानों के मुताबिक सकल राजस्व प्राप्तियां करीब 7 फीसदी अनुमानित की गई है।
अंतरिम बजट किसे ध्यान में रखते हुए पेश किया गया है?
यह बजट ‘लोगों का बजट है’ जिसके केंद्र में आम आदमी है। मैंने अपने बजट भाषण के दौरान उन उपायों की चर्चा की है जो सितंबर 2008 में वैश्विक वित्तीय संकट शुरू होने के बाद उठाए गए।
इसके अलावा, मैंने इस बात को भी सामने रखा है कि वैश्विक आर्थिक मंदी के दौर में हम अपनी विकास गति को बनाए रखने में किस तरह सक्षम रहे हैं।
साथ ही मैंने मध्यावधि के लिहाज से उन उद्देश्यों का भी उल्लेख किया, जिन्हें आने वाली नई सरकार को आम बजट पेश करते हुए ध्यान में रखना होगा।
आप बजट पर क्या कहना चाहेंगे? क्या आप इसे सुधारवादी कह सकते हैं?
बिल्कुल, मैं इस बजट को सुधारवादी बजट ही कहूंगा। यह एक ऐसा बजट है जो समग्र विकास के लिए पूरी तरह से समर्पित है।
यहां तक कि हमने इन चार महीने के लिए भी पर्याप्त आवंटन सुनिश्चित किया है जिसके माध्यम से हमारे तत्वावधान में चलाए जाने वाले विभिन्न कार्यक्रम,
उदाहरण के लिए राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (नरेगा), सर्व शिक्षा अभियान, एकीकृत बाल विकास योजना (आईसीडीएस), जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण मिशन (जेएनएनयूआरएम), और भारत निर्माण जैसी सुधारवादी योजनाओं को गति मिलती रहेगी।
अगले साल होने वाले राजकोषीय घाटे को आप किस आधार पर दिखा रहे हैं?
आंकड़ों की बात करें तो राजकोषीय घाटे में बढ़ोतरी देखने को मिलेगी। 2008-09 के संशोधित अनुमान में राजकोषीय घाटा 3,26,515 करोड़ रुपये से बढ़कर 2009-10 तक 3,32,835 करोड़ रुपये तक पहुंच जाएगा। हालांकि जीडीपी के अनुपात में देखें तो यह गिरावट 6 फीसदी से कम होकर 5.5 फीसदी ही अनुमानित है।
अगले साल विकास दर और मुद्रास्फीति के बारे में आपका क्या अनुमान है?
वित्त वर्ष 2009-2010 में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 11 फीसदी तक बढ़ने का अनुमान है। बजट दस्तावेज में मुद्रास्फीति दर के लिए अगल से कोई अनुमान नहीं लगाया गया है।