विनिवेश एवं सार्वजनिक संपत्ति प्रबंधन विभाग (दीपम) का वित्त वर्ष 23 के लिए विनिवेश से प्राप्तियों को लेकर आंतरिक आकलन 1.2 लाख करोड़ रुपये से ऊपर का है, जबकि सरकार ने बजट में 65,000 करोड़ रुपये का विनिवेश लक्ष्य रखा है। कई साल तक महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य रखकर उसे हासिल न कर पाने और राजकोषीय घाटे को नियंत्रण में लाने के लिए अव्यावहारिक लक्ष्य से बचने के लिए सरकार ने इस बार लक्ष्य कम रखा है।
विभाग के आंतरिक मूल्यांकन में विनिवेश से 1.2 लाख करोड़ रुपये प्राप्तियों का अनुमान लगाया गया था। यह अनुमान भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन और शिपिंग कॉर्पोरेशन आफ इंडिया, आईडीबीआई बैंक आदि जैसी बड़ी कंपनियों को बेचने के लक्ष्य को ध्यान में रखकर लगाया गया। एक अधिकारी ने कहा कि फिलहाल बड़ा लक्ष्य रखने से बचने और सभी लंबित व नए प्रस्तावों की आंतरिक निगरानी और उन्हें निष्कर्ष तक पहुंचाने का फैसला किया गया।
अधिकारी ने कहा कि यह बजट में बहुत बड़ा विनिवेश लक्ष्य रखे जाने की पहले की नीति के विपरीत है, जिसमें वित्त मंत्रालय के अन्य विभागों से ज्यादा विमर्श पर जोर दिया गया है, जिससे लक्ष्य को तार्किक बनाया जा सके। यह विचार करते हुए फैसला किया गया कि दीपम ने उन निजीकरण प्रस्तावों को भी रखा है, जिनसे केंद्र को कोई प्राप्तियां नहीं होनी है। साथ ही विनिवेश के वास्तविक लक्ष्य से बेहतर जवाबदेही वाला बजट बनाने में मदद मिलेगी। वहीं रूढि़वादी लक्ष्य होने से बाजार परेशान नहीं होगा और इससे सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों (पीएसयू) के शेयरों के दाम में हेराफेरी से भी बचा जा सकेगा। बेहतर अकाउंटिंग और एक व्यावहारिक लक्ष्य होने से केंद्र के राजकोषीय अंतर की सही तस्वीर सामने आ सकेगी।
निजीकरण प्रस्तावों में देरी सरकार के नियंत्रण से बाहर रही है और इसमें रुचि लेने वाले संभावित खरीदारों के अनुरोधों को ध्यान में न रखने पर लेन देन कम होने का डर रहता है। विनिवेश लक्ष्य हासिल न हो पाने की यह भी एक वजह है, जिस पर वित्त मंत्रालय में चर्चा की गई है।
अधिकारी ने कहा कि रूढि़वादी लक्ष्य के साथ भी दीपम नए व लंबित निजीकरण प्रस्तावों की समीक्षा करेगा, जिससे उन्हें पूरा किया जा सके।
इसके पहले दीपम के सचिव तुहिन कांत पांडेय ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा था कि इस साल से सरकार ने इस बात को ध्यान में रखते हुए युक्तिकरण की कवायद की है कि विनिवेश लक्ष्य सिर्फ अकाउंटिंग के मकसद से रखा जाए। ऐसा इसलिए है, क्योंकि तमाम लेन-देन जैसे नीलाचल इस्पात निगम (एनआईएनएल) के मामले में केंद्र सरकार के कोष में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है। पांडेय ने कहा, ‘ऐसे में बहुत ज्यादा अकाउंटिंग लक्ष्य रखना एक समस्या है।’
बहरहाल बजट में रखे गए लक्ष्य से ज्यादा विनिवेश करने से सरकार को कोई नियम नहीं रोकता है। इस साल एलआईसी के आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) की पेशकश से सरकार को 78,000 करोड़ रुपये मिलने की उम्मीद है।
आईडीबीआई बैंक के अलावा सरकार 2 और सरकारी बैंकों और एक सार्वजनिक क्षेत्र की बीमा कंपनी के निजीकरण की कवायद कर सकती है। यह काम 2022 में राज्यों के चुनाव होने के बाद किया जा सकता है। बहरहाल सरकार ने इस साल बैंकों को बेचने को लेकर बजट में कुछ भी नहीं कहा है, जैसा कि पिछले बजट में घोषणा की गई थी।
इस साल के बजट में निजीकरण व विनिवेश से उम्मीदें नहीं जताई गई हैं, जैसा कि पिछले बजट में किया गया है। इसके चलते वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को यह कहने पर बाध्य होना पड़ा कि बजट में निजीकरण या विनिवेश के बारे में एक भी वाक्य इसलिए नहीं कहा गया है क्योंकि सरकार पिछले साल घोषित सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम की नीति पर चल रही है जिसमें रणनीतिक क्षेत्र में कंपनियों की संख्या कम करने और गैर रणनीतिक क्षेत्र की सरकारी कंपनियों का पूरी तरह निजीकरण करने की योजना है।