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खाद्यान्न सुरक्षा : लौटना ही पड़ेगा प्रकृति की ओर

Last Updated- December 06, 2022 | 11:43 PM IST

खाद्यान्न की असुरक्षा से बचने के लिए भारत को खेती के तरीके में बदलाव लाना होगा।


अब हरित क्रांति के बाद अपनायी गयी खेती से उबरना होगा। और रुझान आर्गेनिक खेती की ओर करना होगा। ऐसा नहीं करने पर आने वाले समय में देश में खाद्यान्न संकट पैदा हो सकता है।


भारत ही नहीं, अन्य देश भी आर्गेनिक यानी कीटनाशक व खाद रहित खेती को नहीं अपनाएंगे तो अनाज की कमी हो जाएगी। यह खुलासा इंटरनेशनल एसेसमेंट ऑफ एग्रीकल्चरल साइंस एंड टेक्नोलॉजी फॉर डेवलपमेंट (आईएएएसटीडी) की अंतिम रिपोर्ट में किया गया है। भारत के साथ विश्व के 57 देश इस रिपोर्ट को लागू करने के लिए राजी हो गये हैं। इन देशों ने जोहांसबर्ग में हुए आईएएएसटीडी के सम्मेलन में इसके लिए समझौता भी कर लिया है।


दिलचस्प बात यह है कि अमेरिका, कनाडा व ऑस्ट्रेलिया को आर्गेनिक तरीके की खेती पसंद नहीं है। इन देशों ने यह कहते हुए इस समझौते को खारिज कर दिया कि यह कृषि से जुड़े उद्योगों के लिए अनुकूल नहीं है। इस सम्मेलन में भारत की नुमाइंदगी नेशनल सेंटर फॉर एग्रीकल्चरल इकॉनामी एंड पॉलिसी के निदेशक पीके जोशी ने की।


रिपोर्ट में कहा गया है कि हरित क्रांति के बाद खेती के तरीके में बहुत अधिक बदलाव आया। उत्पादन में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई। इस तरीके को अपनाकर कई देश आयातक से निर्यातक बन गए। लेकिन पिछले चालीस सालों से कीटनाशक, खाद व विभिन्न किस्म के बीजों के इस्तेमाल से मिट्टी, पानी व अन्य जैव प दार्थों की गुणवत्ता प्रभावित हुई है।


आईएएएसटीडी से जुड़े वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर खेती के इन तरीकों में बदलाव नहीं किया गया तो जल्द ही उत्पादन में बढ़ोतरी की जगह गिरावट शुरू हो जाएगी। उनका यह भी दावा है कि खेती के वर्तमान तरीकों से प्रदूषण बढ़ने के साथ पर्यावरण में भी विभिन्न प्रकार की गिरावट आएगी। कई देशों में ट्रांसजेनिक खेती को अपना लिया गया है जो बाद के समय में मिट्टी की उर्वरकता में कमी लाएगी। 


रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र है कि बांग्लादेश, इंडोनेशिया, चीन, भारत, मालदीव, फिलीपींस व वियतनाम जैसे देश प्राकृति विपदाओं की आशंकाओं से घिरे हैं। ये देश चावल, गेहूं जैसे प्राथमिक अनाजों के मुख्य उत्पादक है।  इन देशों में अन्य देशों के मुकाबले अधिक लोग खेती पर निर्भर है।


पर्यावरण बचाओ से जुड़े गैर सरकारी संगठन ग्रीनपीस के संयोजक राजेश कृष्णन कहते हैं, ‘आईएएएसटीडी के वैज्ञानिकों ने मुख्य रूप से खेती के उन तरीकों पर जोर दिया है जो प्रकृति से जुड़े हैं। कीटनाशक व खाद के लगातार प्रयोग से मिट्टी की उर्वरकता कम हो गयी है।’


आखिर क्या है आईएएएसटीडी


आईएएएसटीडी की स्थापना संयुक्त राष्ट्र की तरफ से पांच साल पहले की गयी थी। विश्व बैंक इसके काम के लिए फंडिंग करता है। इसका काम खेती से जुड़े तकनीक पर विचार कर इनमें सुधार लाने के लिए सुझाव देना है।


आईएएएसटीडी के लिए विश्व भर के 400 वैज्ञानिक काम कर रहे हैं। वैज्ञानिकों की रिपोर्ट के आधार पर विश्व के 57 देश खेती के तरीके में बदलाव लाने के लिए राजी हुई हैं।

First Published - May 15, 2008 | 10:24 PM IST

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