कोरोना संक्रमण और लॉकडाउन के बीच आर्थिक मोर्चे पर थोड़ी राहत देने वाली खबर है। अप्रैल में खुदरा मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति तीन महीने के निचले स्तर पर रही, वहीं औद्योगिक उत्पादन मार्च में 22 फीसदी बढ़ा है। हालांकि अर्थशास्त्रियों ने चेताया है कि आने वाले समय में मुद्रास्फीति में तेजी आ सकती है, जिससे नीतिगत दर में कटौती की संभावना धूमिल हो सकती है। वैश्विक स्तर पर जिंसों की कीमतों में वृद्घि से मुद्रास्फीति पर दबाव बन सकता है। दूसरी ओर मई में स्थानीय लॉकडाउन की वजह से औद्योगिक उत्पादन में कमी आने का अंदेशा है।
खुदरा मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति अप्रैल में 4.29 फीसदी रही, जो मार्च में 5.52 फीसदी थी। पिछले साल कोरोना की वजह से लॉकडाउन के चलते अप्रैल में खुदरा महंगाई 7.22 फीसदी थी। हालांकि खुदरा महंगाई लगातार पांचवें महीने भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति के मध्यम अवधि के लक्ष्य 4 फीसदी (2 फीसदी घट-बढ़) के दायरे में रही है।
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के आंकड़ों के अनुसार औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) मार्च में सालाना आधार पर 22.4 फीसदी बढ़ा है। फरवरी में इसमें 3.4 फीसदी की गिरावट आई थी। इक्रा रेटिंग्स की प्रधान अर्थशास्त्री अदिति नायर ने कहा, ‘लॉकडाउन खत्म होने के बाद खुदरा महंगाई बढ़ सकती है और वित्त वर्ष 2022 की दूसरी छमाही में औसतन 5 फीसदी रह सकती है, जिससे आर्थिक वृद्घि को सहारा देने के लिए दरों में कटौती की गुंजाइश कम होगी। हालांकि आर्थिक परिदृश्य के अनिश्चित रहने की वजह से 2021 में मौद्रिक नीति समायोजन वाली ही रहेगी।’ अप्रैल-मार्च 2021 में समेकित आईआईपी में 8.6 फीसदी की गिरावट आई है, जो एक साल पहले की समान अवधि में 0.8 फीसदी घटा था। मार्च 2021 से मार्च 2019 की तुलना करें तो आईआईपी में 0.5 फीसदी की कमी आई है। केयर रेटिंग्स के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा कि लगातार दो साल तक औद्योगिक गतिविधियों में संकुचन के स्पष्ट संकेत हैं।
सूचकांक में करीब 75 फीसदी भारांश वाले विनिर्माण क्षेत्र का उत्पादन मार्च में 25.8 फीसदी बढ़ा जबकि फरवरी में यह 2.1 फीसदी बढ़ा था। एक साल पहले मार्च में विनिर्माण क्षेत्र के उत्पादन में 22.8 फीसदी की गिरावट आई थी। खनन क्षेत्र के उत्पादन में मार्च के दौरान 6.1 फीसदी की वृद्घि देखी गई, जो फरवरी में 4.3 फीसदी घटा था। इसी तरह बिजली उत्पादन भी 22.5 फीसदी बढ़ा है।