बीएस बातचीत
इस साल आयुष क्षेत्र के 23.3 अरब डॉलर तक बढऩे का अनुमान है और भारत पारंपरिक दवाओं को दुनिया में ले जाना चाहता है। इसका आकार तेजी से बढऩे की संभावना है। गुजरात के जामनगर में पारंपरिक औषधि के वैश्विक केंद्र (जीसीटीएम) का उद्घाटन होने वाला है जो इसी दिशा में बढऩे वाला एक कदम है। इस बड़े आयोजन से पहले आयुष मंत्रालय और पत्तन, पोत परिवहन एवं जलमार्ग मंत्रालय के केंद्रीय मंत्री सर्वानंद सोनोवाल ने तिरुमय बनर्जी से पारंपरिक दवाओं की जरूरत और भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि में इसके योगदान पर बात की
जीसीटीएम का प्राथमिक लक्ष्य क्या है?
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) जीसीटीएम, आधुनिक विज्ञान और प्रौद्योगिकी के माध्यम से लोगों के स्वास्थ्य में सुधार के लिए दुनिया भर में पारंपरिक दवाओं की क्षमता का इस्तेमाल करेगा। यह पारंपरिक चिकित्सा के चलन और इससे जुड़े उत्पादों के लिए नीतियां और मानक तैयार करने के लिए एक ठोस आधार बनाने पर भी ध्यान केंद्रित करेगा। इसके अलावा यह विभिन्न देशों को इसे अपनी स्वास्थ्य प्रणालियों से जोडऩे में भी मदद करेगा।
इसमें डब्ल्यूएचओ की क्या भूमिका होगी?
डब्ल्यूएचओ की क्षमता और ताकत का इस्तेमाल करने पर जोर दिया जाएगा क्योंकि यह संगठन अपनी तकनीकी विशेषज्ञता और वैश्विक स्वास्थ्य परिदृश्य में व्यापक पहुंच की वजह से स्वास्थ्य के विभिन्न पहलुओं पर काम करने के साथ इसका नियमन भी करता है और पारंपरिक दवाओं तक सबकी समान पहुंच एक सुलभ लक्ष्य बन जाएगा। बीमारियों से पैदा हुई चुनौतियों का मुकाबला करने के तरीकों को केंद्र लगातार खोज रहा है और डब्ल्यूएचओ नेटवर्क के साथ यह विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों के लिए उन समाधानों का दायरा तेजी से बढ़ाएगा। यह एक ऐसा केंद्रीय संगठन बन जाएगा जो पारंपरिक चिकित्सा प्रणालियों के लिए गुणवत्ता और सुरक्षा बेंचमार्क बनाता है ताकि इसके निरंतर सुधार सुनिश्चित हो सके।
हमारी पारंपरिक दवाओं पर अन्य देशों की प्रतिक्रिया कैसी है?
आज भी दुनिया का लगभग 80 प्रतिशत हिस्सा पारंपरिक दवाओं का इस्तेमाल करता है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार, 194 सदस्य देशों में से 170 पारंपरिक दवाओं का इस्तेमाल करते हैं।
पिछले अक्टूबर में, आपने कहा था कि आयुष क्षेत्र के बाजार का आकार 2022 में 23.3 अरब डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है। क्या हम लक्ष्य को हासिल कर लेंगे? आने वाले वर्षों में इस क्षेत्र में कितना विकास होगा?
भारतीय पारंपरिक चिकित्सा बाजार की हिस्सेदारी हर साल बढ़ रही है और यह वैश्विक स्तर पर भी दिख रहा है। वर्ष 2016 में 0.5 प्रतिशत की बाजार हिस्सेदारी होने की वजह से आयुष क्षेत्र बढ़कर 2.8 प्रतिशत (4.6 गुना की वृद्धि) हो गया है। इसके और बढऩे का अनुमान है।
समाज के कुछ वर्गों में ऐसी धारणा है कि आयुर्वेद, यूनानी जैसे चिकित्सा क्षेत्र आदिम तरीकों का पालन करते हैं और किसी जटिल स्वास्थ्य मुद्दों में लगभग अप्रभावी हो सकते हैं। इस पर आपका क्या कहना है?
चिकित्सा की पारंपरिक प्रणालियों की अपनी वैज्ञानिक पृष्ठभूमि और मौलिक सिद्धांत हैं जो समय की कसौटी पर खरे उतरें हैं और पुरानी तथा जटिल स्वास्थ्य चुनौतियों से निपटने में अपनी क्षमता भी साबित की है। पारंपरिक दवाओं का व्यापक इस्तेमाल और समकालीन बायोमेडिसन के साथ इसका सह-अस्तित्व इसकी प्रभावशीलता को दर्शाता है। विशेष रूप से आयुष क्षेत्र में महामारी के दौरान अभूतपूर्व वृद्धि देखी गई है। इससे पता चलता है कि लोगों की यह धारणा मजबूत है कि पारंपरिक चिकित्सा जटिल स्वास्थ्य समस्याओं से निपटने में बेहद प्रभावी हो सकती है। आयुष मंत्रालय ने अनुसंधान परिषद का गठन किया है जो विभिन्न विषयों और एकीकृत अनुसंधान के माध्यम से साक्ष्य-आधारित चलन को बढ़ावा देने की कोशिश कर रही है जिससे इसकी वैश्विक पहुंच बेहतर हो सके।
जीसीटीएम से भारत को कितना लाभ होगा और गुजरात को ही इसकी शुरुआत के लिए क्यों चुना गया?
प्रधानमंत्री ने पहले भी कहा है कि यह केंद्र वैश्विक कल्याण के एक केंद्र के रूप में उभरेगा। भारत में जीसीटीएम स्थापित करने से देश की सभी पारंपरिक चिकित्सा प्रणालियों को बढ़ावा मिलेगा। प्राथमिक यह थी कि एक ऐसी जगह पर केंद्र स्थापित किया जाए जहां बेहतर स्वास्थ्य सेवा का एकतंत्र हो और जामनगर इस पर बिल्कुल मुफीद बैठता है।
अगले दो से तीन वर्षों में इस क्षेत्र में कितनी नौकरियों के मौके तैयार होंगे?
हम अगले 2-3 वर्षों में भारतीय अर्थव्यवस्था में और भी बड़ा योगदान देने वालों में से होंगे और इसके अलावा हम रोजगार क्षेत्र में भी बड़े पैमाने पर योगदान देते हैं।
आपने हाल ही में महामारी के दौरान 210,000 नाविकों की भूमिकाओं की सराहना की है। क्या आपको लगता है कि दुनिया भर में पारंपरिक दवाओं के प्रसार में उनकी भूमिका होगी?
हमारे नाविक भारत के इतिहास और परंपरा को दुनिया तक पहुंचाने के लिहाज से महत्त्वपूर्ण हैं। उनके माध्यम से भी है कि दुनिया को भारत के स्थापित पारंपरिक चिकित्सा तंत्र और आयुष अनुसंधान तथा कल्याण केंद्रों के बारे में पता चलेगा जो हमने तैयार किए हैं। हम उन्हें दुनिया भर में आयुष प्रणाली को आगे बढ़ाने के तौर पर देखते हैं।