आरबीआई गवर्नर दास की टिप्पणी: इसे विराम कह सकते हैं लेकिन यही केंद्रबिंदु नहीं है। पिछले एक वर्ष में 290 आधार अंक की प्रभावी दर से वृद्धि हुई है, जिसमें 40 आधार अंक की एसडीएफ दर वृद्धि भी शामिल है। इस 290 आधार अंक दर वृद्धि पिछले साल मार्च से 320 आधार अंकों की दैनिक औसत कॉल दर वृद्धि में बदली है। इसलिए अब तक की गई हमारी कार्रवाई के संचयी प्रभाव का आकलन करना आवश्यक है। एमपीसी ने सतर्कता का रुख अपनाए रखा है और यह अपनी भविष्य की बैठकों में आगे की कार्रवाई करने में संकोच नहीं करेगी क्योंकि यह आवश्यक हो सकता है। इसलिए काम अभी खत्म नहीं हुआ है। समग्र रूप से वृहद अर्थव्यवस्था और वित्तीय संदर्भ के लिहाज से स्थिरता बनी हुई है ऐसे में हमारी प्राथमिकता मूल्य स्थिरता को लेकर बनी हुई है।
अगर महंगाई आरबीआई के लक्ष्यों के अनुसार बनी रहती है तब क्या आपको इसके बावजूद दरों में वृद्धि करनी होगी या इसमें कोई ठहराव दिख हो सकता है?
दास: चालू वित्त वर्ष के लिए हमने जो औसत मुद्रास्फीति का लक्ष्य रखा है वह 5.2 फीसदी है और हमारा लक्ष्य 4 फीसदी है। आज जो कारक दिख रहे हैं उन सबके मिले-जुले रूप को देखते हुए, हमने आज की बैठक में यह नीतिगत निर्णय लिया है। हमारा लक्ष्य 4 फीसदी है। यदि आप सख्त मौद्रिक नीति के रुख को देखें तो यह धीरे-धीरे हमारे लक्ष्य के अनुरूप बढ़ने की दिशा में अग्रसर होने का संकेत देता है। हमें यह ध्यान रखना होगा कि 4 फीसदी का लक्ष्य है और हम उस दिशा में काम करेंगे। इसके इतर मेरे लिए इतनी सारी अनिश्चितताओं के साथ धारणाएं बनाना और यह कहना संभव नहीं होगा कि अगर ये धारणाएं काम करती हैं तो मैं इसके हिसाब से ही काम करूंगा।
टी रवि शंकर: हमने आवेदनों पर एक नजर डाली है। न्यू अम्ब्रेला एनटिटी (एनयूई) तंत्र के माध्यम से तंत्र में कुछ नवाचार बुनियादी ढांचा, मूल्यवर्धित सुविधाओं की पेशकश करने का मकसद था। हमारा डिजिटल तंत्र पहले से ही काफी सक्रिय, नवाचार से लैस है और हम कुछ नए विचारों को लाना चाहते थे। हम कुछ ऐसा नहीं चाहते थे जो किसी मौजूदा विचार या तकनीक का ही विकल्प हो। हमें जो प्रस्ताव मिले हैं, उनमें हमें कोई नवाचार या बुनियादी ढांचागत समाधान दिखाई नहीं दिया।
भारत में डिजिटल भुगतान के लिए आगे की राह क्या है?
दास: डिजिटल भुगतान अब बरकरार रहने वाला है। पिछले कुछ वर्षों में डिजिटल भुगतान के क्षेत्र में, भारत ने अभूतपूर्व प्रगति की है। पिछले वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंकों के गवर्नरों की जी-20 बैठक के दौरान, हमने यूपीआई, सीबीडीसी सहित अपने डिजिटल भुगतान के विभिन्न पहलुओं को प्रदर्शित किया। हमने अभी यह सुविधा शुरू की थी, जिसमें अन्य देशों के यात्री स्थानीय स्तर पर भुगतान करने के लिए यूपीआई का उपयोग करते हैं, भले ही उनके यहां के बैंक खाते नहीं थे। सिंगापुर के पेनाऊ को लेकर काफी दिलचस्पी बढ़ी है। भारत जैसे बड़े और अधिक आबादी वाले देश में यूपीआई की अभूतपूर्व सफलता ने भी दिलचस्पी बढ़ाई है। आरबीआई और एनपीसीआई, सिंगापुर की तरह ही समान व्यवस्था बनाने और यूपीआई को बढ़ाने के लिए कई देशों के साथ चर्चा कर रहे हैं। डिजिटल रुपये के हमारे संस्करण में भी लोगों की काफी दिलचस्पी दिखी है। एक प्रमुख शख्स ने कहा था कि सीबीडीसी में केवल एक चीज की ही कमी खली और थी नए नोटों की गंध।
क्या आरबीआई ने एसवीबी संकट के कारण अपने जोखिम की जांच वाले तंत्र में बदलाव किया है?
जैन: हमने बैंकों को दिशानिर्देश जारी किए हैं कि जोखिम की जांच करने के लिए विभिन्न स्थितियों का इस्तेमाल करने के लिए बोर्ड द्वारा अनुमोदित नीतियां होनी चाहिए। वित्तीय स्थिरता इकाई (एफएसयू) और वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट (एफएसआर) के हिस्से के रूप में, हम जोखिम की जांच करने के लिए विभिन्न तकनीक का इस्तेमाल करते हैं। पर्यवेक्षण की प्रक्रिया में हम विभिन्न मापदंडों पर पूरे पोर्टफोलियो के जोखिम स्थिति की जांच करते हैं। इसमें कोई बदलाव की आवश्यकता नहीं है।
मौजूदा स्थिति में जिन पैमानों पर नजर रखने की जरूरत है उन्हें पहले से ही शामिल किया गया है जैसे कि बैंकों के बही-खातों में ब्याज दर का जोखिम। वे हमारे नियमित जोखिम जांच की कवायद का हिस्सा हैं।
पात्र: हमारे एफएसआर में, हम इंटरकनेक्टेडनेस नाम का एक अभ्यास करते हैं। हम एक सॉल्वेंसी कंटेजियन एनालिसिस भी करते हैं। हमने पाया कि यदि हम एनबीएफसी क्षेत्र को लेते हैं, जिसमें नुकसान की अधिकतम क्षमता है और उन एनबीएफसी खास तरह से विफल होते हैं तो बैंकिंग प्रणाली को नुकसान होगा लेकिन कोई भी बैंक न्यूनतम पूंजी आवश्यकता से नीचे नहीं जाएगा।
क्या लघु वित्त बैंकों (एसएफबी) का कारोबारी मॉडल अर्थव्यवस्था की वित्तीय स्थिरता के लिए खतरा पैदा करता है?
जैन: एसएफबी अब एनबीएफसी-एमएफआई में बदल गया है। इसलिए, पहले भौगोलिक और कारोबारी संदर्भों में काफी घालमेल वाली स्थिति थी। अब, एक रोडमैप है जिसकी वजह से वे विविधता ला रहे हैं। लेकिन यह रातोंरात नहीं हो सकता। जाहिर है, उन्हें अधिक समय की आवश्यकता होती है। जहां तक उच्च लागत पर फंड जुटाने और बेहतर एनआईएम की पेशकश करने का सवाल है, हम एसएफबी मॉडल पर नजर रखते हैं और जोखिम की जांच करते हैं। इसके अलावा हमें जहां भी जोखिम की स्थिति बनती दिखती है हम बैंकों को इसका ध्यान रखने की सलाह देते हैं।