खाद्य पदार्थों, खास तौर पर सब्जियों के दाम में नरमी से खुदरा मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति जुलाई में घटकर 5.59 फीसदी पर रही, जो तीन माह का निचला स्तर है। जून में खुदा मुद्राफीति 6.26 फीसदी थी। हालांकि अर्थशास्त्रियों ने चताया है कि अगर आपूर्ति प्रभावित होती है और अर्थव्यवस्था में सुधार के साथ मांग बढ़ती है तो मुद्रास्फीति में फिर से तेजी आ सकती है। जून में ईंधन के दाम में थोड़ी नरमी आई थी लेकिन जुलाई में इसमें तेजी देखी गई। पेट्रोल की मुद्रास्फीति दर अब भी 23.70 फीसदी है। हालांकि डीजल की मुद्रास्फीति दर 28.70 फीसदी से नरम होकर 22.71 फीसदी रही। स्वास्थ्य सेवाओं में मुद्रास्फीति दर पिछले महीने में 7.71 फीसदी थोड़ा बढ़कर 7.74 फीसदी हो गई।
अच्छी बात यह रही कि दो महीने बाद उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति फिर से मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) के सहज दायरे में आ गई है। एमपीसी ने चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में मुद्रास्फीति के 5.9 फीसदी के स्तर पर रहने का अनुमान लगाया था। अगर अनुमान सही साबित हुआ तो मुद्रास्फीति अगस्त और सितंबर में बढ़ सकती है। इक्रा की मुख्य अर्थशास्त्री अदिति नायर ने कहा कि जुलाई में मुद्रास्फीति की दर एमपीसी के 6 फीसदी की ऊपरी सीमा से कम रही, जिससे आरबीआई को ततकल दरों में वृद्घि की चिंता नहीं करनी होगी।
नाइट फ्रैंक इंडिया के शोध निदेशक विवेक राठी ने कहा कि कम ब्याज दरों और लंबे समय तक समायोजित मौद्रिक रुख से परिवारों और कॉर्पोरेट लेनदारों दोनों को लाभ मिलना जारी रहेगा। डेलॉयट इंडिया में अर्थशास्त्री रुमकी मजूमदार ने कहा कि मुद्रास्फीति दर में कमी से पता चलता है कि मुद्रास्फीति मुख्य रूप से आपूर्ति शृंखला में व्यवधान से बढ़ी थी।
उन्होंने कहा कि उम्मीद है कि आने वाले महीनों में महंगाई दर में कमी आएगी। हालांकि तेल और जिंसों की ऊंची कीमतों का मुद्रास्फीति पर दबाव बना रहेगा। नायर ने कहा कि मुद्रास्फीति में ज्यादा कमी मुख्य रूप से खाने-पीने के चीजों के दाम घटने की वजह से आई है। मुख्य मुद्रास्फीति दर में मामूली कमी आई है। मुख्य मुद्रास्फीति दर जुलाई में 5.7 फीसदी रही जो जून में 5.9 फीसदी थी। हालांकि उन्होंने उम्मीद जताई कि अगली तीन तिमाहियों में मुद्रास्फीति 5 से 6 फीसदी के दायरे में रहेगी।