आयकर विभाग की ओर से प्रत्यक्ष कर संग्रह में आई गिरावट के बाद राजस्व विभाग सचेत हो गया है और इस दिशा में कठोर कदम उठाने की तैयारी में जुट गया है।
केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) ने देशभर के आयकर विभाग को इस बारे में एक निर्देश जारी किया है कि वे 1997 के बाद से लंबित कर आंकलन के मामलों को फिर से खोलें और उसके मुताबिक, कर का आंकलन करें।
इस बारे में आयकर ट्रिब्यूनल की ओर से भी सुझाव दिया गया था कि कर योग्य आय के लंबित पड़े मामलों को विभाग को सौंप दिया जाए, ताकि उस पर फिर से विचार किया जा सके।
विभाग के मुताबिक, लंबित मामलों पर फिर से विचार करने के साथ ही उस पर 1997 से ही कर का आंकलन किया जाए, विभाग के मुताबिक, इन मामलों पर आयकर कानून, 1961 की धारा 150 के तहत विचार किया जाए।
विभाग की ओर से यह कदम मुंबई के आयकर ट्रिब्यूनल के निर्णय के बाद उठाया गया है। कैपिटल मैनेजमेंट, मैक्सऑप इन्वेस्टमेंट और केमिनवेस्ट लिमिटेड के मामले की सुनवाई करते हुए मुंबई के आयकर ट्रिब्यूनल ने यह फैसला सुनाया था कि गैर-कर योग्य आय को खर्च या निवेश में शामिल नहीं किया जा सकता है।
दरअसल, इस मामले में कंपनियों ने लाभांश से प्राप्त आय को कर योग्य आय के रूप में रिटर्न में दिखाया था। यह निर्णय आयकर कानून की धारा 14 ए के तहत सुनाया गया था।
इसमें इस बात का उल्लेख है कि गैर-कर योग्य आय को अगर खर्च में शामिल कर दिखाया जाता है, तो उस पर कर भुगतान में छूट (डिडक्शन) का लाभ नहीं मिलेगा।
ऐसे में सवाल उठता है कि लंबित मामलों पर फिर से विचार करने और कर योग्य और गैर-कर योग्य आय (लाभांश) को अलग-अलग देखने से विभाग को क्या फायदा होगा।
इस बारे में देश के सभी मुख्य आयुक्तों और बोर्ड के साथ बैठक होगी, जिसमें इस मामले को अंतिम रूप दिया जाएगा।
साथ ही लगभग सभी कंपनियों को यह निर्देश जारी किया जाएगा कि 1962 से उनके कर आंकलन की फिर से जांच की जा सकती है। हालांकि फिलहाल आयकर कानून की धारा 14 ए के तहत ऐसे मामलों में 1997 के बाद के लंबित मामलों पर ही विचार करने का निर्णय लिया गया है।
दरअसल, ऐसे मामलों की जांच की जाएगी, जिसमें करदाता लाभांश से प्राप्त आय पर भी कर छूट (डिडक्शन) का लाभ लेने के लिए इसे निवेश के तौर पर दिखाते हैं। जबकि आयकर के मूल सिद्धांत के यह खिलाफ है।
आयकर विभाग के अधिकारियों का कहना है कि ऐसा करने से उन कंपनियों पर असर पड़ेगा, जिसने अपनी समूह की कंपनियों में नियंत्रण हिस्सेदारी के लिए शेयर, प्रतिभूति, डिवेंचर, म्युचुअल फंडों के जरिए निवेश किया है।
विभाग की ओर से कर छूट देते समय गैर-कर योग्य आय और कर योग्य आय में विभेद करने में मुश्किल आ सकती है।