छोटी व सूक्ष्म वित्त कंपनियों के औसत उधारी लागत में वित्त वर्ष 2018 और 2021 के दौरान 1.2 से 1.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। क्रिसिल ने एक विश्लेषण में कहा है कि कुल मिलाकर बाजार में कम ब्याज दरों के बावजूद ऐसा हुआ है।
कोविड-19 की दूसरी लहर से इस बैंकों पर दबाव बढऩे की संभावना है।
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने कोविड-19 महामारी से निपटने और कम ब्याज दर का दौर बरकरार रखने के लिए व्यवस्था में 5.75 लाख करोड़ रुपये डाले हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि इसके बावजूद जिन इलाकों में बैंकिंग सेवाएं नहीं हैं और आमदनी के दस्तावेज कम रखने वाले अनौपचारिक क्षेत्र के ग्राहकों को ककी तकलीफें कम नहीं हुई हैं।
इसके विपरीत बड़ी वित्तीय फर्मों और हाउसिंग फाइनैंस कंपनियों (एचएफसी) को नकदी बढऩे का फायदा मिला है। इन फर्मों की उधारी की लागत गिरकर वित्त वर्ष 2018 के स्तर पर आ गई है। वहीं बड़ी एमएफआई ने भी पिछले 3 साल में 100 आधार अंक (1 प्रतिशत) की कमी की है।
क्रिसिल ओमडयार इंडिया की संयुक्त रिपोर्ट के मुताबिक उधारी की लागत बढऩे और धन की सीमित उपलब्धता के कारण गैर बैंक फर्मों का संकट सितंबर 2018 के आईएलऐंडएफएस संकट के बाद बढ़ा है और उन पर कोरोना की भी मार पड़ी है। इस दोहरी माल से छोटे और सूक्ष्म गैर बैंकों ने अपनी खुदरा संपत्ति पर ध्यान केंद्रित किया है।
पिछले वित्त वर्ष में नकदी की अधिकता ने इन फर्मों की स्थिति थोड़ी अलग कर दी थी। पहले जहां कर्जदाताओं द्वारा उन्हें धन देने से मना कर दिया जाता था, रिजर्व बैंक द्वारा कर्ज की किस्त टालने की छूट दिए जाने से उन्होंने भी अपने ग्राहकों की किस्त टाली थी। इसकी वजह से महामारी के बाद उनका संकट और बढ़ गया और नकदी प्रवाह का अंतर बढ़ गया, कर्ज दिया जाना कम हुआ और उधारी की लागत भी बढ़ गई।
इनमें से कुछ कर्जदाता पिछले वित्त वर्ष में बड़े एनबीएफसी और विदेशी निवेशकों से धन जुटाने में सक्षम थे, लेकिन यह माध्यम बैंकों व पूंजी बाजार की तुलना में महंगा था।