बीएस बातचीत
महंगाई के लक्ष्य की डेढ़ महीने में समीक्षा होने जा रही है, लेकिन इसमें कोई बदलाव नहीं होने के आसार हैं क्योंकि सरकार का मानना है कि मौद्रिक नीति ढांचे (एमपीसी) के तहत मौजूदा लक्ष्य काफी कारगर रहा है। श्रीमी चौधरी के साथ बातचीत में वित्त मंत्रालय के प्रधान आर्थिक सलाहकार संजीव सान्याल ने कहा कि दो से छह फीसदी के लक्षित दायरे में कोई बदलाव करने की जरूरत नहीं है क्योंकि सरकार मुश्किल से ही कभी इस दायरे से बाहर गई है। बातचीत के अंश:
महंगाई लक्ष्य की जल्द ही समीक्षा होने जा रही है। ऐसे में क्या इसमें कोई बदलाव होगा?
मौजूदा व्यवस्था महंगाई को नीचे लाने के मकसद में काफी सफल रही है। हम निश्चित रूप से इसकी उचित समय पर नियमित समीक्षा करेंगे। लेकिन अभी तक इस व्यवस्था ने काफी अच्छा काम किया है और मुझे नहीं लगता कि इसमें ज्यादा बदलाव करने की जरूरत है। इसके साथ ही दो से छह फीसदी का दायरा तर्कसंगत है और हम बहुत कम इस दायरे से बाहर गए हैं। मुझे लगता है कि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) बास्केट में उचित बदलाव किया जा सकता है। यह ऐसा काम है, जो सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक के बीच समय-समय पर किया जाता है, लेकिन बजट की प्रक्रिया का हिस्सा नहीं है।
वित्त मंत्री ने कहा कि यह बजट लीक से हटकर है। क्या आपको लगता है कि वह उम्मीद पर खरी उतरी हैं?
यह निस्संदेह असाधारण बजट है। इसमें इस बारे में स्पष्ट दिशा दिखाई गई है कि हम अल्पावधि में अर्थव्यवस्था को कैसा दिखाना चाहते हैं और लंबी अवधि में अपनी वृद्धि रणनीति के निहित समीकरणों को बदलना चाहते हैं। साफ तौर पर पहली और अहम चीज मांग को मजबूत करना था। महामारी का केवल मांग पर ही नहीं बल्कि आपूर्ति पर भी असर पड़ा। इसलिए उस समय मांग बढ़ाने की कोशिश करने का कोई फायदा नहीं था, जब आपूर्ति ही कमजोर थी। अब सरकार बुनियादी ढांचे में निवेश के जरिये मांग बढ़ाएगी।
बजट में पूंजीगत व्यय पर जोर देकर आपूर्ति पक्ष की अवधारणा को अपनाया गया है। लेकिन आयकर में कोई राहत नहीं दी गई, इसलिए आप मांग पक्ष के बारे में क्या कहेंगे?
इस बार में कई चीजें याद रखी जानी चाहिए। सबसे पहले करों की दरों को स्थिर रखना महत्वपूर्ण है। दूसरा, उनका प्रतिस्पर्धी होना आवश्यक है। आपको याद होगा कि 18 महीने पहले हमने कॉरपोरेट टैक्स की दरों में भारी कमी की थी। अब वे प्रतिस्पर्धी स्तर से भी नीचे हैं और हम उनमें कोई छेड़छाड़ नहीं करना चाहते हैं।
बजट में राजकोषीय मजबूती के ढांचे में बदलाव किया गया है। इस बारे में आप क्या कहेंगे?
इस वित्त वर्ष में जीडीपी के 9.5 फीसदी राजकोषीय घाटे की कई वजह हैं। महामारी की वजह से हमें स्वास्थ्य एवं कल्याण पर ज्यादा खर्च करना पड़ा। दूसरी तरह आर्थिक गतिविधियां अवरुद्ध होने से राजस्व घटा है। इसलिए घाटे को लेकर कुछ नहीं किया जा सकता था।
चालू वित्त वर्ष में अतिरिक्त उधारी की जरूरत क्यों है?
हम बदलती परिस्थितियों के हिसाब से काम कर रहे हैं। इसलिए हमें उधारी कार्यक्रम को समायोजित करना पड़ा। मुझे नहीं लगता कि अतिरिक्त उधारी में इतना बड़ा बदलाव किया गया है कि उससे बाजारों को अचंभा हो। आपने देखा भी है कि बॉन्ड प्रतिफल में मुश्किल से ही कोई बदलाव हुआ है। इसलिए मुझे नहीं लगता कि कोई हमारे इस फैसले को लेकर शिकायत कर रहा था।
बजट और आर्थिक समीक्षा में नॉमिनल जीडीपी के आंकड़ों में अंतर क्यों है?
बजट 14 फीसदी से मामूली अधिक जीडीपी वृद्धि दर पर आधारित है। यह एक सतर्कता भरा आंकड़ा है। दूसरी तरफ आर्थिक समीक्षा में 15.3 फीसदी का आंकड़ा हकीकत के ज्यादा नजदीक है। मेरा व्यक्तिगत रूप से तो यह मानना है कि जीडीपी वृद्धि आर्थिक समीक्षा के अनुमान से भी अधिक रहेगी क्योंकि यह 11 फीसदी वास्तविक जीडीपी वृद्धि पर आधारित है।
भारत की सॉवरिन रेटिंग एक प्रमुख चिंता है। क्या आपको लगता है कि इससे निवेश पर असर पड़ रहा है?
हमने आर्थिक समीक्षा में यह दिखाने के लिए स्पष्ट आंकड़े प्रस्तुत किए हैं कि वस्तुनिष्ठ संकेतकों के आधार पर भारत की भुगतान की क्षमता एवं मंशा को मद्देनजर रखते हुए उसकी रेटिंग काफी कम है। ऐसा नहीं है कि निवेशक यह बात नहीं जानते हैं, इसलिए महामारी के दौरान भी हमारे यहां निवेश की तगड़ी आवक जारी रही।
निजी क्षेत्र के खर्च, विशेष रूप से शोध एवं विकास पर सीमित कर प्रोत्साहन हैं। इसलिए अभी उनके पास किस तरह के नीतिगत विकल्प हैं?
ऐसा नहीं है कि भारत में निजी क्षेत्र के अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए कर नीतियां नहीं हैं। ऐसी नीतियां मौजूद हैं। अगर और जरूरत पड़ी तो हम अतिरिक्त प्रोत्साहन शामिल करेंगे। मेरा मानना है कि देश में निजी क्षेत्र और सरकारी क्षेत्र में गंभीर शोध एवं विकास पर जोर दिया जाना चाहिए।