भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने पिछले साढ़े तीन साल में पहली बार बैंकिंग तंत्र में सबसे अधिक नकदी डाली है। इससे संकेत मिलता है कि बैंकों को अतिरिक्त नकदी की किल्लत हो रही है।
आरबीआई ने 21 अक्टूबर को बैंकिंग तंत्र में 72,860.70 करोड़ रुपये की नकदी डाली, जो 30 अप्रैल, 2019 के बाद से सबसे अधिक है। इसके बाद 24 अक्टूबर को भी केंद्रीय बैंक ने 62,835.70 करोड़ रुपये की नकदी डाली है। बैंकिंग तंत्र में तरलता बढ़ाने से स्पष्ट है कि बैंकों के पास नकदी की किल्लत है। माना जा रहा है कि जीएसटी भुगतान और त्योहारी सीजन में नोटों का परिचालन बढ़ने से बैंकों के पास नकदी में कमी आई है। पहले बैंकों के पास अधिशेष नकदी थी जिसे वापस लेने के लिए आरबीआई ने कई उपाय किए थे।
आरबीआई द्वारा अप्रैल से औसतन 7 लाख करोड़ रुपये की नकदी खींची जा रही थी जो अक्टूबर में घटकर 1 लाख करोड़ रुपये से कम रह गई थी। इस महीने अब तक 14 बार अतिरिक्त नकदी खींची गई है और सात बार नकदी डाली गई है। विश्लेषकों के अनुसार आरबीआई बैंकों को उधार से पूंजी जुटाने के लिए रीपो विंडो की सुविधा नहीं दे रहा है क्योंकि पूंजी बाजार में दरें उच्चतम ब्याज दर के करीब है।
आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज प्राइमरी डीलरशिप में फिक्स्ड इनकम रिचर्स के प्रमुख ए प्रसन्ना ने कहा, ‘आप कह सकते हैं कि आरबीआई उच्च दरों को बर्दाश्त कर सकता है लेकिन ओवरनाइट की औसत दर सीमांत स्थायी सुविधा (एमएसएफ) से ऊपर जाने देने के पक्ष में नहीं है। इसलिए जब तक दरें एमएसएफ के आसपास रहती हैं तब तक आरबीआई पूंजी बाजार में हस्तक्षेप नहीं करेगा।’
आरबीआई ने अंतिम बार 21 सितंबर को बैंकों के लिए रीपो विंडो की सुविधा दी थी। उस समय तरलता करीब 20,000 करोड़ रुपये कम थी। कुल मिलाकर बैंकिंग तंत्र में अभी भी अधिशेष नकदी है और अक्टूबर में आरबीआई की एमएसएफ विंडो से उधारी बढ़ी है। इसका अर्थ यह है कि जिन बैंकों को पूंजी की जरूरत है वह अधिक दरों पर आरबीआई से उधारी जुटा रहे हैं। पूंजी बाजार में ऊंची दरों के कारण बैंकों और कंपनियों के लिए कर्ज की लागत काफी ज्यादा बढ़ गई है। ऐसे में कंपनियां डेट बाजार से भी पूंजी जुटा रही हैं। हालांकि वाणिज्यिक प्रतिभूतियों और जमा सर्टिफिकेट की दरें भी पिछले कुछ हफ्तों में करीब 70 आधार अंक तक बढ़ गई हैं।
इंडिया रेटिंग्स ऐंड रिसर्च के निदेशक सौम्यजित नियोगी ने कहा, ‘आरबीआई द्वारा रीपो विंडो की सुविधा नहीं देने से संकेत मिलता है कि केंद्रीय बैंक पूंजी बाजार की ऊंची दरों को लेकर सहज है क्योंकि अल्पावधि की दरों को मुद्रा को सहारा देने का पहला उपाय माना जाता है।’
बार्कलेज के प्रबंध निदेशक और एशिया के उभरते बाजार (चीन को छोड़कर) के प्रमुख राहुल बाजोरिया ने कहा कि बाजार में नकदी की टिकाऊ स्थिति के लिए आरबीआई की धारणा की वजह यह हो सकती है कि सरकार का व्यय कम हो रहा है।