भारत का मध्यम वर्ग धड़ल्ले से खर्च कर रहा है। जुलाई में क्रेडिट कार्ड से अब तक की सर्वाधिक 1.16 लाख करोड़ रुपये की खरीदारी हुई थी। क्रेडिट कार्ड से खरीदारी की मासिक वृद्धि दर 6.5 फीसदी और सालाना वृद्धि दर दर 54 फीसदी रही। लगातार पांचवें महीने खरीदारी 1 लाख करोड़ रुपये रही। जुलाई में 15.3 लाख नए क्रेडिट कार्ड जारी किए गए थे।
इससे इन कार्ड की संख्या बढ़कर आठ करोड़ से अधिक हो गई थी। नए क्रेडिट कार्ड जारी करने के मामले में एचडीएफसी सबसे आगे रहा। उसने जुलाई में 3,44,364 नए कार्ड जोड़े और इसके कुल कार्डों की संख्या 1.794 करोड़ हो गई। इसके बाद ऐक्सिस बैंक ने 2,27,614 नए कार्ड (99.3 लाख कार्ड) और एसबीआई ने 2,18,933 नए कार्ड (1.45 करोड़ कार्ड) जारी किए।
कार्ड से खरीदारी और नए कार्ड जारी करने की दर बढ़ी है। इसके बढ़ने का कहीं अच्छा पहलू यह भी है कि महामारी के दौरान दो साल से अधिक समय अर्थव्यवस्था के पटरी से उतरने और इसके असर के बाद यह दर बढ़ी है। कार्ड के कारोबार को असुरक्षित में से एक माना जाता है। क्या ऐसे में हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि वेतन कटौती और नौकरी जाने के नुकसान से मुक्त हो गए हैं? अगर ऐसा है तो क्यों?
रिटेल क्षेत्र के वरिष्ठ बैंकर्स ने प्लास्टिक मनी में आई उछाल के लिए तीन कारणों को जिम्मेदार माना है। पहला, ऑनलाइन भुगतान करने में आरामदायक स्तर का पहुंचना। एक वरिष्ठ बैंकर ने कहा, ‘प्रति व्यक्ति रुपये के भुगतान के संबंध में यूपीआई (यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस) पर भुगतान की मात्रा भले ही कम हो सकती है लेकिन इसने लोगों की सोच को पूरी तरह बदल दिया है।’
अभी यूपीआई के नि:शुल्क मुहैया होने पर चर्चा हो रही है लेकिन इसने असलियत में उपभोक्ताओं को डिजिटल बैंक को आसानी से इस्तेमाल करना सिखा दिया है। इसके अलावा क्रेडिट ब्यूरो डेटा बनाने में भी मदद मिली है। कार्ड जारी करने वाले ने जो भी खर्च किया है, उसका ब्योरा रहता है। उपभोक्ताओं के इस खर्चे की गई राशि में घर, वाहन, सोने से लेकर व्यक्तिगत ऋण तक शामिल हैं। इसके अलावा विश्लेषकों के लिए आंकड़े भी मुहैया हो जाते हैं। एक पहलू यह भी है कि महामारी के दौर में दुकान या स्टोर पर जाकर खर्च करना और छुट्टियां मनाने पर पैसा खर्च करना बिल्कुल खत्म हो गया था और ई-कॉमर्स बहुत तेजी से बढ़ा था।
भारतीय रिजर्व बैंक के वित्तीय वर्ष 22 की पहली तिमाही के भुगतान के आंकड़ों के मुताबिक इस अवधि के दौरान क्रेडिट कार्ड की संख्या 2.02 अरब हो गई और इनसे खर्च हुए धन का मूल्य 8.77 लाख करोड़ रुपये हो गया। क्रेडिट कार्ड के पीओएस (पाइंट ऑफ सेल) 30.583 करोड़ हो गए जबकि ई-कॉमर्स में लेन-देन 30.213 करोड़ हुए थे।
क्रेडिट कार्ड से पीओएस के तहत 1040.03 अरब रुपये और ई-कॉमर्स के तहत 1,770 अरब रुपये के लेन-देन हुए थे। वर्ल्ड लाइन इंडिया की पिछली इंडिया डिजिटल पेमेंट रिपार्ट के मुताबिक, ‘क्रेडिट कार्ड के पीओएस और ई कॉमर्स की संख्या तकरीबन बराबर सी है। लेकिन पीओएस की तुलना में ई-कॉमर्स का लेन-देन कहीं अधिक हुआ है। इसी के साथ भुगतान करने का तरीका फिजिकल से डिजिटल की तरफ बढ़ रहा है।’
हालांकि नकद की गुणवत्ता में सुधार आया है। हालांकि यह शुरुआती दौर में है और इस पर अभी यकीन करना मुश्किल है। जून 2022 की वित्तीय सि्थरता रिपोर्ट (एफएसआर : जून 2022) के मुताबिक सभी श्रेणियों में उपभोक्ता क्रेडिट के भुगतान के स्तर में सुधार हुआ है। सरकारी बैंकों में मार्च में भुगतान नहीं करने का स्तर (डेलिक्वेंसी) एक साल पहले 4.90 फीसदी था जो अब गिरकर 4.45 फीसदी पर आ गया। इसी तरह निजी बैंकों का 1.40 फीसदी (2.01 फीसदी), गैर-बैंकिंग वित्त कंपनियों (आवास ऋण कंपनियों सहित) का 2.34 फीसदी और फिनटेक का 2.26 फीसदी (3.3 प्रतिशत) है।
भुगतान करने के स्तर में सुधार से यह भी प्रदर्शित होता है कि कार्डधारकों के आत्मविश्वास में सुधार हुआ है। यह कार्ड जारी करने वालों के साथ-साथ डिजिटल उधारदाताओं, प्री पेड कार्ड जारीकर्ताओं (अर्ध क्रेडिट कार्ड जारी करके नियामक आर्बिटेज का फायदा उठाने वाले)और अभी-खरीदो-बाद में – भुगतान (बॉय-नाउ-पे-लेटर) के लिए भी बेहतरीन रहेगा।
उद्योग एवं वाणिज्य मंत्रालय के तहत द इंडियन ब्रांड इक्विटी फाउंडेशन के मुताबिक 2030 तक ई-कॉमर्स का मार्केट 350 अरब डॉलर का होगा। यह स्तर अभी के मुकाबले दो गुना अधिक है। वित्तीय वर्ष 26 में ई-रिटेल मार्केट 120-140 अरब डॉलर का होगा। यह साल 2020 में 25.7 अरब डॉलर था। भारतीय रिटेल मार्केट की तुलना की जाए तो यह अभी 810 अरब डॉलर की है। यह 2026 में बढ़कर 14 लाख करोड़ डॉलर और 2030 में 1.8 लाख करोड़ डॉलर होने का अनुमान है। लिहाजा इन स्टोर और ऑनलाइन भुगतान में तेजी से इजाफा होना तय है। कार्ड कारोबार का दायरा और विस्तृत हो जाएगा।
यह दायरा और बढ़ होता, यदि आरबीआई ने गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) को क्रेडिट कार्ड जारी करने की अनुमति दी होती। केंद्रीय बैंक ने 18 साल पहले 7 जून, 2004 को परिपत्र जारी किया था। इस परिपत्र के मुताबिक क्रेडिट कार्ड के कारोबार में प्रवेश करने के लिए न्यूनतम 100 करोड़ रुपये का शुद्ध स्वामित्व वाला कोष होना चाहिए।
यह परिपत्र एनबीएफसी को क्रेडिट कार्ड जारी करने पर कोई नियामकीय प्रतिबंध नहीं लगाता। हालांकि बाद में आरबीआई ने कहा था कि वह इसकी समीक्षा करेगा। साल 2004 के परिपत्र को आरबीआई के ‘ऑनलाइन प्लेटफॉर्म और मोबाइल ऐप के माध्यम से डिजिटल ऋण पर कार्य समूह की रिपोर्ट’ के साथ देखा जाता है और इस पर बीते साल नवंबर में लोगों से राय मांगी गई थी। इससे इस क्षेत्र में चर्चाओं का नया दौर शुरू हो गया।
बैंकों के अलावा कुछ मोनालाइन इशुअर भी हैं – इनके कारोबार बैंक के कार्ड कारोबार की तरह नहीं हैं और उन्होंने डेटा एनालिटिक्स की बदौलत अपनी किस्मत आजमाई थी। इस क्रम में 1990 के दशक में जीई कैपिटल और कैपिटल वन थी। जीई कैपिटल ने भारतीय स्टेट बैंक से गठजोड़ कर लिया। हालांकि कैपिटल वन के कई प्रयास विफल हुए। उसने केनरा बैंक के साथ संयुक्त उद्यम शुरू किया- इसके बाद भारतीय जीवन बीमा निगम के साथ प्रयास किया। बाकी सभी इतिहास है।