इस महीने मौद्रिक नीति की समीक्षा के दौरान भारतीय रिजर्व बैंक ने सरकारी प्रतिभूतियों के बारे में एक अहम घोषणा की। अब खुदरा निवेशक भी सरकारी प्रतिभूतियों (जी-सेक) में सीधे निवेश कर सकते हैं। उन्हें इसके लिए रिजर्व बैंक में गिल्ट खाता सरकारी प्रतिभूति खाता खुलवाना होगा। ‘रिटेल डायरेक्ट’ नाम की इस सुविधा से खुदरा निवेशकों को सरकारी प्रतिभूतियों के प्राथमिक और द्वितीयक दोनों बाजारों में प्रवेश मिल जाएगा। लेकिन क्या ये प्रतिभूतियां खुदरा निवेशकों के लिए वाकई निवेश का आकर्षक विकल्प हैं?
जी-सेक में कितना खतरा?
इस तरह की प्रतिभूतियों में आम तौर पर यह खतरा रहता है कि जारी करने वाली संस्था ब्याज या मूलधन लौटाने से मुकर सकती है। चूंकि जी-सेक को भारत सरकार जारी करती है, इसलिए इनके साथ इस तरह का कोई भी खतरा नहीं होता।
अवधि से जुड़ा जोखिम कितना?
जब किसी अर्थव्यवस्था में ब्याज दरें ऊपर-नीचे होती हैं तो पहले से मौजूद बॉन्डों की कीमतों पर भी असर पड़ता है। ब्याज दरें घट रही हों तो कीमत चढ़ती हैं और दरें बढ़ती हैं तो कीमत घटती हैं। सरकारी प्रतिभूतियों में अवधि का जोखिम होता है। ब्याज दरों में परिवर्तन का लंबी अवधि के बॉन्डों पर अधिक प्रभाव होता है। चूंकि कई सरकारी बॉन्डों की अवधि कंपनियों के बॉन्डों से अधिक होती है, इसलिए ब्याज दरें बढऩे पर उनकी कीमतें कम हो जाती हैं। यदि निवेशक इस तरह के जोखिम को कम करना चाहते हैं तो उन्हें परिपक्वता तक बॉन्ड अपने पास रखने चाहिए। मुंबई में रहने वाली प्रमाणित वित्तीय योजनाकार किरण तैलंग कहती हैं, ‘अगर किसी को अगले 20 साल तक हर छमाही ब्याज पाने में एतराज नहीं है तो उसके लिए इन बॉन्डों में निवेश अच्छा रहेगा।’ ब्याज दरें चढ़ती देखकर आप बॉन्ड बेच देते हैं तो आपको नुकसान उठाना पड़ सकता है।
कितने तरल हैं ये बॉन्ड?
सरकारी बॉन्ड एक्सचेंजों पर सूचीबद्घ होते हैं तो किताबी ज्ञान तो यही कहता है कि आप जब चाहें, उन्हें बेच सकते हैं। ट्रेजरी बिल सूचीबद्घ नहीं होते हैं, इसलिए उन्हें बीच में ही बेचकर निकलना संभव नहीं होता है।
ऐसे बॉन्डों में तरलता कम होती है यानी उन्हें बेचना बहुत आसान नहीं होता। शाह कहते हैं, ‘कभीकभार खरीदार ढूंढना आसान नहीं होता। अगर आप कम संख्या में बॉन्ड बेचना चाहते हैं तब तो खास तौर पर यह काम मुश्किल होता है।’ यदि किसी व्यक्ति को बॉन्ड फौरन बेचने हैं तो कीमत में अच्छी खासी कमी के साथ यानी घाटा उठाते हुए बेचने पड़ सकते हैं।
पुनर्निवेश में जोखिम भी
जी हां। यदि बॉन्ड की परिपक्वता के समय ब्याज दरें कम हुईं तो निवेशक को पुन: निवेश कम दर पर ही करना होगा। बॉन्डों को चरणबद्घ तरीके से खरीदना इस समस्या का इलाज है। बॉन्ड इस तरह खरीदें कि नियमित अंतराल पर थोड़े-थोड़े बॉन्ड परिपक्व होते रहें।
कौन करे सीधे निवेश?
ये बॉन्ड उन निवेशकों के लिए हैं, जिन्हें बॉन्ड और बॉन्ड बाजारों के तौर-तरीकों की समझ है। टीबीएनजी कैपिटल एडवाइजर के संस्थापक और मुख्य कार्य अधिकारी तरुण बिरानी का कहना है, ‘जो समझदार निवेशक को गिल्ट में उतार-चढ़ाव की वजह जानते हैं और उन्हें परिपवक्ता अवधि पूरी होने तक रखने के लिए तैयार हैं, उन्हें ही सीधे निवेश का फायदा उठाना चाहिए।’
जी-सेक के जरिये निवेशकों को लंबी अवधि के लिए दरें स्थिर रखने का मौका मिलता है। एमबी वेल्थ फाइनैंशियल सॉल्यूशन्स के संस्थापक एम बर्वे कहते हैं, ‘अगर आप बॉन्ड उस समय खरीदते हैं, जब दरें आकर्षक होती हैं तो आप 40 साल तक के लिए दरें लॉक कर सकते हैं।’ यदि परिपक्वता तक निवेश रखेंगे तो आपको जी-सेक पर कूपन दर प्राप्त होगी। शाह की राय है कि रिटायर होने वाले 15 साल से अधिक की अवधि को ध्यान में रखकर इन्हें अपने सेवानिवृत्ति पोर्टफोलियो में शामिल कर सकते हैं।
क्या है वैकल्पिक रास्ता?
आप सरकारी प्रतिभूतियों में गिल्ट म्युचुअल फंड के जरिये भी निवेश कर सकते हैं। इन फंडों की औसत अवधि अधिक होती है, इसलिए उतार-चढ़ाव आता रहता है। निवेशक इनमें कम से कम इतनी अवधि के लिए निवेश करें, जो इन फंडों की औसत अवधि के बराबर हो।
कितना और कैसे लगता है कर?
सरकारी प्रतिभूतियों पर मिलने वाले ब्याज से स्लैब दर के हिसाब से कर वसूला जाता है। 12 साल के बाद बेचा जाए तो फायदा लंबी अवधि का माना जाता है। उससे पहले बेचने पर अल्पावधि लाभ कहा जाता है। एनए शाह एसोसिएट्स के पार्टनर गोपाल बोहरा बताते हैं, ‘दीर्घावधि लाभ पर इंडेक्सेशन के बगैर 10 फीसदी कर वसूला जाता है। अल्पावधि लाभ पर व्यक्ति के कर स्लैब के मुताबिक कर लिया जाता है।’
गिल्ट फंड में तीन साल के बाद बेचने पर ही लाभ का दीर्घावधि पूंजीगत लाभ मान लिया जाता है। उन पर इंडेक्सेशन के साथ 20 फीसदी कर वसूला जाता है। अल्पावधि लाभ पर कर स्लैब की दर के मुताबिक कर लिया जाता है।