आठ प्रमुख म्युचुअल फंड कंपनियां पहले से ही सेवानिवृत्ति योजनाएं उपलब्ध करा रही हैं। प्रबंधनाधीन परिसंपत्तियों (एयूएम) के लिहाज से देश की सबसे बड़ी फंड कंपनी एसबीआई भी पिछले दिनों इस फेहरिस्त में शामिल हो गई है। इसने एसबीआई रिटायरमेंट बेनिफिट फंड (एसबीआईआरबीएफ) शुरू किया है।
फंड के ढेरों विकल्प
ये ओपन-एंड फंड हैं, जिनमें एक निश्चित लॉक-इन अवधि होती है। यह अवधि पांच साल हो सकती है या एक निश्चित उम्र (एसबीआईआरबीएफ में 65 साल) हो सकती है। दोनों में से जो अवधि पहले पूरी हो जाती है वही लॉक-इन अवधि मानी जाती है। प्रत्येक फंड बहुत सी योजनाएं मुहैया कराता है। कुछ फंड कंपनियां दो और कुछ चार तक योजनाओं का विकल्प देती हैं। प्रत्येक योजना में परिसंपत्ति का एक निश्चित आवंटन है। एसबीआई के रिटायरमेंट बेनिफिट फंड की चार योजनाओं में से एग्रेसिव 80 से 100 फीसदी आवंटन शेयरों में करती है, जौकि एग्रेसिव-हाइब्रिड में 65 से 80 फीसदी आवंटन शेयरों में होता है। कंजरवेटिव हाइब्रिड योजना में 60 से 90 फीसदी आवंटन डेट में होता है और कंजरवेटिव में डेट आवंटन 80 से 100 फीसदी तक पहुंच जाता है।
जरूरत मुताबिक योजना
एसबीआईआरबीएफ में ‘माई चॉइस’ यानी मेरी पसंद का विकल्प होता है, जिसमें निवेशक कोई भी योजना चुन सकता है और जब तक चाहे, उस योजना से जुड़ा रह सकता है। इसके अलावा ऑटो ट्रांसफर का विकल्प भी है, जहां एक निश्चित उम्र पर संपत्तियां कम जोखिम वाली योजना में चली जाती हैं। निवेशक चाहे तो 40 साल की उम्र तक एग्रेसिव योजना, 40 से 50 साल तक एग्रेसिव-हाइब्रिड, 50 से 60 के बीच कंजरवेटिव हाइब्रिड और 60 साल पार करने के बाद कंजरवेटिव योजना में बना रह सकता है। एसबीआई म्युचुअल फंड के फंड प्रबंधक गौरव मेहता ही एसबीआईआरबीएफ का भी प्रबंधन करेंगे। वह कहते हैं, ‘ये चार योजनाएं विभिन्न आयु और जोखिम क्षमता वाले लोगों की जरूरतें पूरी करेंगी। निवेशक ज्यों-ज्यों इन योजनाओं के साथ आगे बढ़ता है, उसका इक्विटी आवंटन कम होता जाता है। इससे वह जीवन के बाद के चरणों में ज्यादा कंजरवेटिव योजना में जाकर फायदा सुनिश्चित कर सकता है।’ उनके हिसाब से लॉक-इन का प्रावधान अनुशासन लाता है। मेहता कहते हैं, ‘कई बार निवेशक अल्पावधि लाभ के लिए अपना निवेश भुना लेते हैं और लंबी अवधि में मिलने वाला चक्रवृद्घि बढ़ोतरी का लाभ गंवा बैठते हैं।’
इन ब्रांडेड और समाधान आधारित फंडों से एक फायदा और होता है। प्लान अहेड वेल्थ एडवाइजर्स के मुख्य वित्तीय योजनाकार विशाल की सलाह है, ‘निवेशकों को उनका इस्तेमाल सेवानिवृत्ति के अलावा दूसरे उद्देश्यों के लिए नहीं करना चाहिए। हां, अगर उनके पास आम हाइब्रिड फंड है तो दूसरे उद्देश्यों के लिए धन वहां से निकाला जा सकता है।’ निवेशक उनमें सिस्टेमैटिक विदड्रॉअल प्लान (एसडब्ल्यूपी) विकल्प का इस्तेमाल भी कर सकते हैं। अगर निवेशक ऊंची कर श्रेणी में आते हैं तो एसडब्ल्यूपी से मिली रकम पर अन्य पेंशन योजनाओं से प्राप्त आय की तुलना में कम कर लगता है।
एक फंड हाउस तक सीमित
आदर्श स्थिति तो यह है कि निवेशक विभिन्न फंड प्रबंधकों की योजनाओं में निवेश कर अपने सेवानिवृत्ति पोर्टफोलियो में विविधता लाए। लेकिन इन फंडों में निवेश करने पर ऐसा नहीं होगा। धवन ने कहा, ‘एक व्यक्ति को आदर्श रूप में अपना पूरा सेवानिवृत्ति पोर्टफोलियो किसी एक फंड हाउस में निवेश करने के बजाय प्रत्येक परिसंपत्ति श्रेणी में सबसे अच्छे फंड प्रबंधकों के पास निवेश करना चाहिए।’ ऐसे हाइब्रिड फंडों में खर्च का अनुपात भी अधिक रहता है। अगर निवेशक ऐक्टिव या पैसिव इक्विटी फंड या अल्पावधि डेट फंड का इस्तेमाल करे तो लागत कम आएगी।
किसके लिए ये फंड सही?
जिन निवेशकों में अपनी परिसंपत्ति अन्य लक्ष्यों के लिए बेचने की आदत होती है, वे इन फंडों का दामन थाम सकते हैं। लॉक-इन फीचर उन निवेशकों के लिए उपयोगी रहेगा, जो बाजार में गिरावट के दौरान घबरा जाते हैं। जो लोग सबसे बेहतर प्रदर्शन करने वाले परिसंपत्ति वर्ग के पीछे भागते हैं, उन्हें भी अपने डायवर्सिफाइड पोर्टफोलियो (पुनर्संतुलन के लाभ के साथ) के लिए इन्हें अपनाना चाहिए।
जो निवेशक अपनी संपत्ति के आवंटन का फैसला खुद ही ले सकते हैं, वे उम्र और जोखिम उठाने की क्षमता के हिसाब से इसमें बदलाव करते हैं, समय-समय पर फिर से संतुलित करते हैं और सेवानिवृत्ति की धनराशि अन्य लक्ष्यों के लिए नहीं निकालते हैं। ऐसे निवेशक आसान ऐक्टिव एवं पैसिव डायवर्सिफाइड इक्विटी फंड और डेट फंड का इस्तेमाल करके सेवानिवृत्ति पोर्टफोलियो बना सकते हैं। निवेशक सभी परिसंपत्ति वर्गों में सबसे बेहतर फंड प्रबंधक चुन सकता है और जरूरत पडऩे पर उन्हें बदल सकता है। धवन ने कहा, ‘अपना सेवानिवृत्ति कोष बनाने के लिए ओपन-ऐंड डायवर्सिफाइड इक्विटी एवं डेट फंड और नैशनल पेंशन सिस्टम (एनपीएस) का इस्तेमाल अच्छा विकल्प है।’