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महिला-पुरुष असमानता को बढ़ा सकता है कोरोना

Last Updated- December 15, 2022 | 4:44 AM IST

यह जाहिर हो चुका है कि कोरोना महामारी सामाजिक स्तर पर भेदभाव पैदा कर सकती है। प्रबंधन सलाहकार फर्म मैकिंजी ऐंड कंपनी द्वारा हाल ही में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, अधिकांश क्षेत्र हालिया संकट से नकारात्मक रूप से प्रभावित हुए और उनके विश्लेषण से पता चलता है कि कोरोना महामारी के चलते महिलाओं की आजीविका अधिक असुरक्षित है।  रिपोर्ट में कहा गया है, ‘असमानता काफी ज्यादा है। अमेरिका और भारत के बेरोजगारी सर्वेक्षण में महिला-पुरुष असमानता के आंकड़े उपलब्ध हैं और ये बताते हैं कि कोविड-19 के चलते महिलाओं को नौकरियों में नुकसान की दर, पुरुषों को नौकरी हानि के मुकाबले 1.8 गुना ज्यादा है।’
मैकिंजी ग्लोबल इंडिया में पार्टनर तथा रिपोर्ट की सह-लेखक अनु मडगावकर के अनुसार, कोरोना से पहले भारतीय कार्यबल में महिलाओं का हिस्सेदारी 20 फीसदी थी और हाल में नौकरियां गंवाने के मामलों में उनकी हिस्सेदारी लगभग 17 प्रतिशत है। हालांकि बेरोजगारी सर्वेक्षणों से पता चलता है कि वे वास्तव में समग्र नौकरी नुकसान में 23 प्रतिशत हिस्सेदारी रखती हैं।
आखिर इस असंतुलन की वजह क्या है? मडगावकर कहती हैं, ‘हमारे विश्लेषण में मिला एक कारण यह बताता है कि वैश्विक स्तर पर महिलाओं की नौकरियों पर संकट, पुरुषों के मुकाबले 19 प्रतिशत अधिक हैं, क्योंकि महिलाओं को कोविड-19 महामारी से नकारात्मक रूप से प्रभावित क्षेत्रों में विषमतापूर्ण प्रतिनिधित्व दिया जाता है।’ इसका अर्थ यह है कि अगर केवल क्षेत्र विशेष आधारित आंकड़ों की गणना करें तो तस्वीर और भयावह हो सकती है।
उदाहरण के लिए, महिलाओं को पहले से ही विनिर्माण क्षेत्र में कम-प्रतिनिधित्व दिया जाता है और कोरोना संकट के चलते इसे और अधिक बढऩे की संभावना है। इसके अलावा भावनात्मक पहलू भी अपनी भूमिका निभाएगा। मडगावकर कहती हैं, ‘बात यह है कि आमतौर पर पुरुषों की नौकरियों को परिवार के स्तर पर काफी अहम माना जाता है।’ उनके अनुसार, ‘शोध के अनुसार, दक्षिण एशिया के 50 फीसदी उत्तरदाताओं का मानना है कि जब नौकरियां कम होती हैं, तो पुरुषों को नौकरी मिलनी चाहिए न कि महिलाओं को। यह सामाजिक पूर्वग्रहों को दर्शाता है।’
भारत में असंतुलन को लेकर दो प्रमुख तथ्य सामने आते हैं। देश के कुल कार्यबल में जहां महिलाओं की हिस्सेदारी 20 फीसदी है, वहीं नौकरियों को नुकसान के मामले में महिलाओं की हिस्सेदारी 23 फीसदी है और जब तक इसे रोकने के लिए कदम नहीं उठाए जाते, तब तक महिला-पुरुष असमानता बढ़ती रहेगी। मैकिंजी के अनुसार, अगर इसे रोकने के लिए कदम उठाए जाएं तो साल 2030 तक वृद्धिशील जीडीपी में 712 अरब डॉलर का इजाफा हो सकता है। हालांकि इन चुनौतियों के बीच कुछ आशा की उम्मीद भी दिखती है। महिलाओं द्वारा किए जाने वाले कार्यों, जैसे चाइल्डकेयर, सीनियर केयर, घरेलू सेवाएं आदि कम पहचाने जाने वाले कार्यों के लिए भी एक संगठित तंत्र विकसित किया जाए। मडगावकर कहती हैं, ‘जिन गतिविधियों का मापन किया जाता है, उनका आर्थिक मूल्य होता है और उन्हें बेहतर तरीके से प्रबंधित किया जाता है।’

बायोटेक ने मानव परीक्षण किया शुरू
भारत बायोटेक ने कोविड-19 रोधी टीके कोवैक्सीन का मनुष्य पर परीक्षण रोहतक के पीजीआईएमएस में शुक्रवार को शुरू कर दिया। हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने ट्वीट के जरिये यह जानकारी दी। विज ने कहा, ‘भारत बायोटेक के कोरोनावायरस के टीके का मनुष्य पर परीक्षण पीजीआई रोहतक में शुरू हो गया। उन्होंने लिखा, ‘आज तीन लोगों का पंजीकरण किया गया। किसी पर टीके का कोई प्रतिकूल प्रभाव
नहीं दिखा।’ भारत बायोटेक को पिछले दिनों ही उसके कोरोना रोधी टीके कोवैक्सीन का क्लीनिकल परीक्षण शुरू करने के लिए देश के दवा नियामक की मंजूरी मिली थी। देश में इस समय कोरोनावायरस की रोकथाम के लिए सात टीके विकास के विभिन्न स्तर पर हैं जिनमें से दो को मनुष्य पर क्लीनिकल परीक्षण शुरू करने की मंजूरी मिल चुकी है। इस महीने की शुरुआत में जायडस कंपनी ने कहा था कि उसे टीके के मानव पर परीक्षण शुरू करने के लिए प्राधिकारियों से स्वीकृति मिल गई है। भाषा

First Published - July 17, 2020 | 11:31 PM IST

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