लंबे समय से भारतीय बाजार में सुस्त पड़ा ड्र्रैगन अब अपनी ताकत बढ़ाने में जुट गया है।
चीन की प्रमुख टेलीकॉम उपकरण निर्माता कंपनी हुवावेई टेक्नोलॉजीज और जेडटीई भारत में यूरोपियन उपकरण निर्माताओं को कड़ी टक्कर दे रही हैं। वर्ष 2008 के लिए कंपनी को भारत में 80 अरब रुपये ऑर्डर मिला है, जो प्रतिद्वंद्वी कंपनियों के लिए परेशानी का सबब है।
संचार उद्योग से जुड़े सूत्रों के मुताबिक, पिछले साल तीन प्रमुख कंपनियां एरिक्सन, अल्काटेल और नोकिया-सिमेन्स का भारतीय टेलीकॉम बाजार के 80 फीसदी हिस्से पर कब्जा था। इसके अलावा, नोरटेल, मोटोरोला आदि कंपनियां भी यहां उपकरण मुहैया कराती हैं, लेकिन अब स्थिति बदल रही है और चाइनीज कंपनियां इन्हें कड़ी टक्कर देने के लिए कमर कस चुकी हैं।
पिछले साल पांचवें स्थान पर रही हुवावेई टेलीकम्युनिकेशंस के भारत में कार्यकार निदेशक यंग काई जंग ने कहा कि हमारा लक्ष्य 2009 तक दूसरा स्थान हासिल करना है। कंपनी ने पिछले साल भारत में 2800 करोड़ रुपये का उपकरण बेचा था, जबकि इस साल करीब 60 अरब रुपये के उपकरण बेचने की योजना है। इसके साथ ही कंपनी को रिलायंस कम्युनिकेशंस से 20 करोड़ रुपये के जीएसएम का ऑर्डर मिल चुका है, वहीं एयरटेल, वोडाफोन, आइडिया और टाटा से भी बात चल रही है।
जेडटीई के प्रबंध निदेशक डी. के. घोष ने बताया कि हमारी कंपनी दो साल पहले दस प्रमुख कंपनियों की सूची में शामिल नहीं हो पाई है, लेकिन इस साल हमारी योजना नंबर तीन या चार पर काबिज णहोने की है। इसके लिए कंपनी डाटाकॉम, रिलायंस कम्युनिकेशंस, स्पाइस टेलिकॉम और बीएसएनएल के साथ करार करने के लिए बोली में शामिल होंगी।
इसके अलावा, कंपनी चेन्नई में एक उत्पादन संयंत्र लागने की योजना भी बना रही है। चाइनीज कंपनियों के भारतीय बाजार में तेजी से बढ़ने की वजह है-कम कीमत पर टेलिकॉम उपकरण उपलब्ध कराना। इसके लिए हुवावेई ने 500 अतिरिक्त सर्विस इंजीनियरों की भर्ती की है, वहीं जेडटीई ने अपने कर्मचारियों की संख्सा 50 फीसदी बढ़ दी है।
इसके साथ ही हुवावेई भारतीय बाजार में अगले साल तक थ्रीजी उपकरण लाने की भी योजना बना रही है। भारती एयरटेल श्रीलंका में थ्रीजी नेटवर्क के विस्तार के लिए हुवावेई के साथ पहले ही करार कर चुकी है।
चाइनीज कंपनियों की बढ़ती पैठ की बाबत यूरोपियन कंपनियों का कहना है कि फिलहाल हमारे लिए चिंता की बात नहीं है। अगर चाइनीज कंपनियां बेहतर सेवा मुहैया कराने लगेगी, तो उसकी लागत भी बढ़ जाएगी। कम कीमत पर लंबे समय तक उपकरण बेचना संभव नहीं होगा।
चीन की नई चाल
भारतीय टेलीकॉम बाजार हथियाने चलीं चीनी कंपनियां
सस्ते उपकरण बाकी कंपनियों के लिए बने कड़ी चुनौती