नागरिक उड्डयन मंत्री प्रफुल्ल पटेल भारत को एशिया में एयरक्राफ्ट की देखभाल, मरम्मत और ओवरहॉल (एमआरओ) हब के रुप में विकसित करने की योजना बना रहे थे, लेकिन यह योजना अभी तक अमल में नही लाई जा सकी है।
इसमें भी चीन भारत से काफी आगे है। चीन में इस तरह की गतिविधि करने वाली 300 कंपनियां कार्यरत है जबकि भारत में मैक्स एयरोस्पेस, एयरवर्क्स और इंडेमर जैसी मात्र तीन कंपनियां इस काम को अंजाम दे रही है।
वैसे लुफ्तहांसा टेकि्क, बोइंग और एयरबस एमआरओ केंद्र खोलने के लिए इच्छुक है जो भारत में एमआरओ की संख्या दोगुनी कर देगा लेकिन इसके बावजूद हम चीन से काफी पीछे ही रहेंगे। वैसे दस और कंपनियों ने इस बिजनेस में अपनी रुचि दिखाई है । इनमें गोएयर एसआईए इंजीनियरिंग के साथ संयुक्त वेंचर बनाकर आ चुकी है और किंगफिशर की गेमको के साथ संयुक्त वेंचर बनाकर आने की योजना अभी विचाराधीन है।
इस लिहाज से चीन जिस कदर आगे बढ़ रहा है उससे इस बाजार में सिंगापुर का प्रभुत्व कम होने वाला है। बोइंग भी चीन में एक नया एमआरओ बनाने की योजना बना रही है और इससे ऐसा कहा जा रहा है कि 2010 तक चीन अंतरराष्ट्रीय हब के रुप में विकसित हो जाएगा।
उड्डयन विशेषज्ञ मानते हैं कि चीन एमआरओ केंद्र खोलने के लिए करों में भारी छूट दे रहा है। बेहतरीन इंफ्रास्ट्रक्चर, सस्ते मजदूर और बड़ा बाजार- ये सारे ऐसे कारक हैं जिससे कंपनियां चीन की तरफ आकर्षित हो रही हैं और इसके उलट भारत से दूर भाग रही है।
चीन के पास 100 क्रि याशील विशेष आर्थिक क्षेत्र (सेज) , मुक्त व्यापार क्षेत्र, राज्य स्तरीय आर्थिक क्षेत्र और हाईटेक औद्योगिक क्षेत्र मौजूद है जिसमें कर की भारी छूट का प्रावधान है। इसी नीतियों से आकर्षित होकर एमआरओ कंपनियां चीन में अपने केंद्र खोलने को उत्सुक है।
अगर इस तरह से तुलना करे तो भारत में केवल दो ऐसे विशेष आर्थिक क्षेत्र हैं जहां एमआरओ कंपनियां अपना केंद्र खोल सकती है-एयर इंडिया बोइंग के लिए नागपुर और लुफ्तहांसा टेक्कि्-जीएमआर के लिए हैदराबाद। एयर इंडिया एमआरओ बिजनेस ईकाई के एक कार्यकारी ने बताया कि भारत में बहुत सारी सेज ऐसे जगहों पर है जहां से एयरपोर्ट काफी दूर है और इस स्थिति में वहां एमआरओ खोलना काफी मुश्किल है।
अगर ये एमआरओ सेज के बाहर खोले जाते हैं तो उसे 12.5 प्रतिशत सेवा कर चुकाना होगा। अगर ये कंपनियां कल-पुर्जे का आयात करती है तो इसके लिए उसे 50 प्रतिशत सीमा शुल्क भी देना होगा ,साथ ही 12.5 प्रतिशत वैट और 4 प्रतिशत चुंगी कर भी देना होगा। इस तरह भारत में एमआरओ खोलना वैश्विक मापदंड से 50 प्रतिशत ज्यादा महंगा हो जाएगा।
बोइंग के एक कार्यकारी ने बताया कि भारत में एमआरओ अगर बाधित है तो इसका मुख्य कारण कर संरचना है। बहुत सारी कंपनियां इस सिलसिले में भारत आती है लेकिन इस कर बोझ की वजह से उदसीन हो जाती है। उड्डयन मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि हम उम्मीद करते हैं कि भारत सरकार इस उद्योग के लिए कर में छूट देगी और कंपनियां एमआरओ केंद्र खोलने की तरफ आकर्षित होगी।