कीमतों में बढ़ोतरी और भारत-अमेरिका परमाणु मुद्दे के बाद यूपीए सरकार और वाम दलों में असंगठित क्षेत्र कर्मचारी बिल को लेकर टकराव के आसार बन रहे हैं।
सरकारी सूत्रों के मुताबिक संसदीय समिति के किसी बड़े सुझाव को श्रम मंत्रालय ने स्वीकार नहीं किया है।संसदीय समिति की रिपोर्ट कु छ ही दिनों में वोटिंग के लिए संसद में रखी जानी है। मूल बिल में केवल एक बात जोडी गई है- इसमें वेलफेयर योजनाओं की सूची में आम आदमी बीमा योजना को शामिल कर लिया है, जिसे लागू करने की घोषणा सरकार पहले ही कर चुकी है।
सरकार द्वारा गठित अर्जुन सेन गुप्त की अध्यक्षता वाली समिति की रिपोर्ट को मंत्रालय पहले ही खारिज कर चुका है।इस बिल को बिना परिवर्तन के पेश किए जाने के मुद्दे पर वाम दल सरकार का विरोध कर रही है।
सीपीआई (एम) के राज्यसभा के सांसद और पार्टी के ट्रेड यूनियन सीटू के राष्ट्रीय सचिव तपन सेन ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि अगर स्थायी समिति की सिफारिशों में सुधार नही किया जाता है तो इस बिल का कोई मतलब नही रह जाता है। एक सूत्र ने बताया कि जब संसद के दोनों सदनों में इस बिल को वोटिंग के लिए लाया जाएगा तो वाम दल इसका विरोध करेंगे।
जबकि वाम दल इस बिल के वर्तमान स्वरूप को लेकर विरोध जता रहे हैं वही श्रम मंत्री ऑस्कर फर्नांडीज ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि मैं इस बिल को इसी सत्र में लाऊंगा और मैं इस बात के लिए आश्वस्त हूं कि यह बिल इसी सत्र में पारित भी हो जाएगा। यह प्रस्तावित विधेयक 39 करोड़ मजदूरों को फायदा पहुंचाएगा।
केंद्रीय श्रम मंत्रालय स्थायी समिति की एक समर्पित कोष की स्थापना के सुझाव को ज्यादा महत्वपूर्ण नही मानते और वे इस सुझाव को भी नकार रहे हैं कि कल्याणकारी योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए एक अलग प्राधिकरण की स्थापना होनी चाहिए। मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि सरकार गरीबी रेखा से नीचे बसर करने वाले के लिए पहले से ही फंड उपलब्ध करा रही है । इसके लिए फंड की कोई कमी नही है।
मंत्रालय के अधिकारियों ने इस तरफ भी इशारा किया कि असंगठित क्षेत्र के कल्याण का मतलब है उनके लिए पेंशन और बहुतेरे बीमा की व्यवस्था करवाना। जब बीमा कंपनियां और सरकारी एजेंसियां इस तरह की योजनाएं चलाएंगी तो अलग से किसी प्रशासकीय इकाई की जरूरत नही होगी।
मंत्रालय ने इस बात पर भी जोर दिया कि गरीबी रेखा से नीचे बसर करने वाले सारे परिवारों के बुजुर्गों को पेंशन की व्यवस्था कर दी गई है और इससे एक बड़े भाग को लाभ पहुंचेगा। इस बिल के संबंध में वाम दलों और संसदीय कमिटी की यह भी मांग है कि कृषि क्षेत्रों के कामगारों के लिए अलग से व्यवस्था की जाए। वैसे मंत्रालय ने इस बात को इसलिए खारिज कर दिया कि ये कृषि कामगार खेती के मौसम के बाद अन्य काम में लग जाते हैं और इसलिए इनको अलग श्रेणी में रखना मुश्किल है।
सीपीआई (एम) की केंद्रीय कमिटी के एक सदस्य ने इस दलील को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि इस बिल में कही गई बहुत सारी योजनाएं पहले से ही मौजूद है। अगर सरकार इन मजदूरों की भलाई के लिए यह बिल लाना चाहती है तो इस रूप में इसे लाने से क्या फायदा होगा? इस बिल में मांगों की पूर्ति के लिए कहां प्रावधान है? सबसे महत्वपूर्ण तो यह है कि इस बात की क्या गारंटी है कि सरकार के बदलने के बाद यह योजना जारी रहेगी?