खाद्यान्नों की बढ़ती कीमतों ने महंगाई दर को सातवें आसमान पर पहुंचा दिया है। सवाल उठता है कि खाद्यान्नों की ऊंची कीमत से क्या किसानों को भी फायदा हो रहा है?
बिज़नेस स्टैंडर्ड ने इस मुद्दे पर की पड़ताल, जिसे किश्तवार पेश किया जाएगा। पहली किश्त में पढ़िए, चावल उत्पादक किसानों की स्थिति पर रिपोर्ट
उड़ीसा के कटक जिले में रहने वाले प्रशांत कुमार बेहुरा ने पिछले दिसंबर में 90 क्विंटल धान की फसल उगाई। फरवरी में उन्होंने करीब 52 टन धान व्यापारियों को 540 रुपये प्रति क्विंटल की दर से बेच दिया। यानी प्रशांत को न्यूनतम समर्थन मूल्य से 105 रुपये प्रति क्विंटल कम दर पर अपनी फसल बेचनी पड़ी। धान खरीद का न्यूनतम समर्थन मूल्य 645 रुपये प्रति क्विंटल है।
उधर, सरकार ने चावल की चढ़ती कीमतों पर अंकुश लगाने के लिए गैर-बासमती चावल के निर्यात पर पाबंदी लगा दी है। इससे सरकार को कोई राजनीतिक विरोध नहीं झेलना पड़ा, क्योंकि उसने पाबंदी के लिए पहले ही सख्त कदम उठा लिए थे। हालांकि इसका असर अक्टूबर-नवंबर में धान की नई फसल पर पड़ सकता है। दरअसल, निर्यात पर पाबंदी की वजह से किसानों को उनकी उपज की सही कीमत नहीं मिल पाएगी।
बेहुरा ने धान की खरीद मूल्य के बारे में क्षेत्र की सरकारी एजेंसी से शिकायत की थी, लेकिन सरकार ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। सच तो यह है कि सरकार मिल मालिकों से चावल खरीदने को प्राथमिकता देती है, उसके बाद ही वह किसानों से धान खरीदने का फैसला लेती है।
आर्थिक सर्वेक्षण 2006-07 के मुताबिक, पंजाब से सरकारी एजेंसियों ने सबसे ज्यादा 35.4 फीसदी चावल की खरीदारी की, जबकि उत्तर प्रदेश और उड़ीसा में सरकारी खरीद का आंकड़ा क्रमश: 11.5 और 6.3 फीसदी ही रहा है। कृषि विज्ञानी और राज्यसभा सदस्य एम. एस. स्वामीनाथन का स्पष्ट कहना है कि किसानों को बाजार मूल्य से काफी कम कीमत पर अपनी फसल बेचनी पड़ती है।
उधर, सीएसीपी ने हाल ही में धान की खरीद का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1000 रुपये प्रति क्विंटल करने की सिफारिश की है, लेकिन अभी कैबिनेट से इसकी मंजूरी मिलनी बाकी है। सीएसीपी के अध्यक्ष टी. हक का कहना है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य और बाजार कीमत में काफी अंतर है और पिछले कई सालों से इसमें बढ़ोतरी नहीं की गई है।उड़ीसा जैसी ही स्थिति देश के अन्य भागों की भी है।
उत्तर प्रदेश स्थित बलरामपुर जिले के अर्जुनपुर गांव के ललित कुमार सिंह को भी अपनी फसल न्यूनतम समर्थन मूल्य से 100 रुपये कम पर बेचनी पड़ी। उनका कहना है कि बाजार में खाद्यान्न की कीमत भले ही ऊंची हो, लेकिन हमें उसका लाभ नहीं मिल पा रहा है, क्योंकि बिचौलिए समर्थन मूल्य से भी कम कीमत पर धान खरीदते हैं।
उत्तर प्रदेश में वर्ष 20006-07 में 11.7 मीट्रिक टन धान की पैदावार हुई है, जबकि सरकार ने केवल 2.2 मीट्रिक टन की ही खरीदारी की है। इस बीच राज्य सरकार और किसान, दोनों सीएसीपी की नई सिफारिश लागू होने का इंतजार कर रहे हैं।
पंजाब के संगरूर जिले के एक किसान निर्भय सिंह ढिल्लन का कहना है कि पिछले कुछ सालों से उत्पादन लागत में तेजी से वृद्धि हुई है, लेकिन न्यूनतम समर्थन मूल्य में लंबे समय से कोई बढ़ोतरी नहीं की गई है। इसकी वजह से ज्यादातर किसान कर्ज के बोझ तले दबे जा रहे हैं।
कल देखें भाग-2
क्यों नहीं गल रही किसानों की दाल