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कर्ज चुकाने के लिए दिया चेक बाउंस होने पर होगी फौजदारी कार्यवाही

Last Updated- December 07, 2022 | 7:01 AM IST

सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला दिया है कि खाते में पर्याप्त राशि नहीं होने के बावजूद चेक जारी करने पर आपराधिक कार्यवाही उसी सूरत में शुरू की जा सकती है, जब चेक किसी प्रकार का कर्ज या देनदारी चुकाने के लिए दिया गया हो।


यदि इसे किसी प्रकार के समझौते या सेटलमेंट की शर्तें पूरी करने के लिए जारी किया गया है, तो चेक जारी करने वाले के खिलाफ निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट की धारा 138 का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। अदालत ने यह फैसला ललित कुमार बनाम उत्तर प्रदेश सरकार मामले में दिया।

पहले कंपनी के निदेशकों ने दो चेक जारी किए थे और दोनों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही की गई थी। इसी बीच एक समझौते के तहत कर्ज देने वाले को 5 लाख रुपये की राशि दी जानी थी। लेकिन यह चेक भी बाउंस हो गया, जिसकी वजह से एक और मुकदमा शुरू कर दिया गया। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कार्यवाही खत्म करने की निदेशकों की प्रार्थना अस्वीकार कर दी।

लेकिन इसके बाद अपील किए जाने पर सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि दूसरा वाला चेक समझौते की शर्तों के तहत जारी किया गया था और उसे किसी तरह के कर्ज या देय भुगतान के लिए जारी नहीं किया गया था। इस वजह से चेक बाउंस होने की दूसरी घटना में धारा 138 के तहत मुकदमा नहीं चलाया जा सकता। उच्च न्यायालय का फैसला खारिज कर दिया गया।

दुर्घटना मुआवजा

सर्वोच्च न्यायालय ने ओरियंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड की अपील सुनवाई के लिए स्वीकार कर ली है और कहा कि यदि दुर्घटना ऊटपटांग और लापरवाही से स्कूटर चलाने पर होती है और उसमें किसी अन्य वाहन के चालक का दोष नहीं होता है, तो दोपहिया वाहन पर पीछे बैठने वाले व्यक्ति को तीसरा पक्ष नहीं माना जा सकता।

केरल उच्च न्यायालय ने एक दुर्घटना में पीछे बैठने वाली महिला की मौत होने पर मुआवजा देने के लिए बीमाकर्ता कंपनी को जिम्मेदार ठहराया था। कंपनी की अपील पर सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय के फैसले को खारिज कर दिया। न्यायालय ने कहा कि बीमाकर्ता की जिम्मेदारी के दायरे में पीछे बैठने वाली सवारी तब तक नहीं आती है, जब तक अतिरिक्त खतरे से निपटने यानी उसे कवर करने के लिए जरूरी प्रीमियम का भुगतान नहीं किया जाए।

सूक्ष्म पोषक यौगिक

सर्वोच्च न्यायालय ने सीमाशुल्क (कस्टम्स), उत्पाद शुल्क (एक्साइज) और सेवा कर (सर्विस टैक्स) न्यायाधिकरण से इस मसले पर दोबारा विचार करने को कहा है कि सूक्ष्म पोषक यौगिकों यानी माइक्रोन्यूट्रिएंट कंपाउंड को उत्पाद शुल्क के लिहाज से पौधों का विकास नियमित करने वाले रासायनिक उत्पादों की श्रेणी में रखा जाए अथवा उन्हें उर्वरक माना जाए। यदि इन्हें उर्वरक माना जाता है, तो उन्हें उत्पाद शुल्क के मामले में फायदा हो जाएगा।

यह मसला न्यायाधिकरण के उस फैसले के खिलाफ केंद्रीय उत्पाद शुल्क आयुक्त की अपील में उठाया गया, जिसके मुताबिक कर्नाटक एग्रो केमिकल्स द्वारा उत्पादित माइक्रोन्यूट्रिएंट उर्वरक की श्रेणी में आते हैं। उत्पाद शुल्क विभाग ने कंपनी के नाम कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया और कंपनी पर आरोप लगाया कि उसने गलत सूचना देते हुए कहा है कि उसके उत्पादों में नाइट्रोजन है और इस तरह वह उत्पाद शुल्क का भुगतान करने से बच गई है।

विभाग ने इस आरोप के लिए उन रासायनिक रिपोर्टों को आधार बनाया है, जिनके मुताबिक कंपनी के द्वारा तैयार किए गए यौगिकों में उर्वरकों के मुख्य तत्व मौजूद नहीं हैं। कंपनी ने कहा कि उसके उत्पादों में 0.31 फीसद नाइट्रोजन है, जिसकी वजह से वे उर्वरक की श्रेणी में आते हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि मसला यह है कि क्या इतनी मात्रा होने से ही वह उत्पाद उर्वरक बन जाता है या नहीं। उसने न्यायाधिकरण से इस मुद्दे पर फिर विचार करने के लिए कहा है।

उर्वरक शुल्क रियायत

सर्वोच्च न्यायालय ने दीपक एग्रो सॉल्युशंस लिमिटेड बनाम सीमा शुल्क आयुक्त मामले में सीमा शुल्क, उत्पाद शुल्क और सेवा कर न्यायाधिकरण का फैसला खारिज कर दिया। इस फैसले में कहा गया था कि कंपनी द्वारा आयातित ‘ब्रिमस्टोन 90’ कृषि की गुणवत्ता बढ़ाने वाले उर्वरक की प्रकृति का है और यह किसी तरह का कीटनाशक या खरपतवार नाशक नहीं है, जैसा कि राजस्व सीमा शुल्क विभागों ने कहा था।

प्रतिबंधात्मक व्यापार

एकाधिकार एवं प्रतिबंधात्मक व्यापार व्यवहार आयोग ने अलंकार बॉटलिंग कंपनी की उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें कैंपा बेवरेज लिमिटेड पर गलत और प्रतिबंधात्मक व्यापार नीतियां अपनाने का आरोप लगाया गया था। अलंकार ने कैंपा के साथ सॉफ्ट ड्रिंक को बोतलों में बंद करने का समझौता 5 साल के लिए किया था। हालांकि इस समझौते का नवीकरण नहीं किया गया, लेकिन सालों तक उसी के मुताबिक काम होता रहा।

उसके बाद कैंपा ने यह काम बंद कर दिया। इस पर अलंकार आयोग में पहुंच गई और कैंपा पर प्रतिबंधात्मक व्यापार नीतियां अपनाने का आरोप लगाया, जिसकी वजह से उसे नुकसान उठाना पड़ा। आयोग ने याचिका खारिज कर दी क्योंकि उसमें करार की शर्तों के बारे में कोई बात नहीं दी जा सकी थी। अपने उत्पाद की गुणवत्ता बरकरार रखने के लिए कैंपा किसी भी समय बॉटलिंग का काम बंद करने की बात कह सकती थी।

First Published - June 23, 2008 | 1:42 AM IST

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